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________________ २४ अंगुत्तरनिकाय (३-२४०) तथा महावस्तु (२-१२६) में देखें ३५ भगवती १६१६ सूत्र ५८० Jain Education International २५ महापुराण १२।१५५ से १६१ तथा उत्तरपुराण ७४ /२५८-२५६ २६ महापुराण १५।१२३-१२६ २७ चंद मंडल सरिसं पोलियं लहेसि २८ राया भविस्सई - उत्तरा० ३ टीका-अभिधान राजेन्द्र ७, पृ० १००२ २६ महापुराण ४१।६३-७ε ३० नवनीत (मार्च) १९५५, ३१ देखें - भगवती सूत्र श्री अमोलकऋषिजीकृत अनुवाद पृष्ठ २२-२४ २५ तथा जैन सिद्धान्त बोल संग्रह : भाग ३, पृष्ठ २२६-२३० ३२ आवश्यक मलयगिरिवृत्ति, पृ० २७० ३३ भगवती सूत्र १६।६ सूत्र ५८० में मोक्षगामी के चौदह स्वप्नों में इस स्वप्न का अर्थ बताया है-उसी भव में मोक्ष प्राप्ति होना । -०--०-पुष्कर वाणी-०--०-० स्वप्नशास्त्र : एक मीमांसा ++++++++++++++++++++++++ वह अपनी पढ़ाई और माता-पिता तक को की है। वह संसार के नाशवान पदार्थों में मूल जाता है । प्रभु और गुरु को भी याद नहीं इन्हीं भौतिक खिलौनों में मन लगाये रहता है । अज्ञानी मनुष्य बालक के समान नादान है । बालक खिलौनों से खेलता है, वे ही उसे प्रिय लगते हैं। खिलौनों में रमकर भूल जाता है। यही दशा अज्ञानी मनुष्य इतना रम जाता है कि अपना स्वरूप भी करता और सतत बालक की तरह खिलौना टूटने-फूटने पर बालक रोता है। छीना जाने पर दुःखी होता है, ऐसा ही अज्ञान - मोहग्रस्त मनुष्य करता है, घन आदि वस्तुयें छूटने पर रोना- कलपना और उन्हें ही सब कुछ मान बैठना बिल्कुल बालक जैसी वृत्ति है । XTE For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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