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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
स्मृतियों के झरोखे से
जीवन के वे उजले क्षण
C श्री सुरेशमुनि शास्त्री
जो कभी धुंधले नहीं पड़ सकते
मुद्दतें गुजरीं, कभी याद भी आयी न तेरी । और तुझे भूल गए हों, ऐसा भी नहीं ॥
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी आज मरुधर-प्रांत में स्थानकवासी जैन समाज के एक जाने-माने तथा ख्याति प्राप्त संत हैं; राजस्थान के इस छोर तक ही नहींसुदूर कर्नाटक प्रांत तक उनकी प्रतिष्ठा एवं ख्याति है ! समाज और संघ के प्रति स्वयं को उत्सर्ग एवं समर्पित करने वाले, शीर्षस्थ संतों में आज उनकी गणना है !
शालीनता तथा सौम्यता के एक जीवन्त प्रतीक हैं। उनसे बात करने में मुझे गौरव एवं आनन्द की अनुभूति होती थी। मुझे देखते ही वे प्रफुल्ल हो उठते थे । उनकी तबियत और आँखों में एक अजीब-सी मस्ती झलकती छलकती रहती थी। जब भी उनसे बात होती अथवा मिल-बैठने का प्रसंग आता तो मैं देखता, उनका चेहरा फूल-सा खिला रहता था । मुझे लगता, उनकी हँसती- मुस्कराती सूरतमूरत और प्रसन्न प्रकृति हजार-हजार मुख से यह बोल रही है—
व्यक्ति क्या है—यह व्यक्ति को अत्यन्त निकट से देखने-परखने पर ही जाना-पहचाना जा सकता है, मेरे मन का चिर - विश्वास रहा है ! और भी स्पष्ट शब्दों में कह दूं तो, किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का आभास पाने का एक ही उपाय है और वह है, उस व्यक्ति के निकटतम सम्पर्क में आने का सुअवसर !
बात सन् १९५५ की है ! राजस्थान प्रांत के महान् संत महास्थविर श्री ताराचन्द जी महाराज का अपने शिष्य-प्रशिष्य मण्डल के साथ आगरा नगर में पदार्पण हुआ था तभी मुझे उनके परम शिष्य श्री पुष्कर मुनिजी के सम्पर्क में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । उनके साथ उस प्रथम मिलन से मेरे मन में जो आल्हाद उभरा था, उसकी मधुर - स्निग्ध स्मृति से आज भी मन पुलकित हो उठता है और हृदय आदर से भर जाता है !
उस प्रथम साक्षात्कार में मैंने पाया कि पुष्कर मुनिजी सरलचित्त, प्रसन्नवदन और मिलनसार स्वभाव के एक मनस्वी यशस्वी तथा तेजस्वी संत हैं ! उनके सरल- निश्छल और आत्मीयतापूर्ण व्यवहार से मेरा मन विभोर हो जाता था ! उस प्रथम परिचय में ही वे मुझसे ऐसे मिले, जैसे कोई चिर-परिचित संगी-साथी हों। उनके सरल- विनम्र, वार्ता-व्यवहार के फलस्वरूप उनके और मेरे बीच अपरिचय की कोई रेखा न रह गयी थी। मुझे लगा कि वे सहृदयता, का प्रचारक जाग उठता था ।
हर आन हँसी, हर आन खुशी,
हर वक्त अमीरी है बाबा ! जब आलम मस्त फकीर हुए,
फिर क्या दिलगीरी है बाबा !! जीवन का यह ज्वलंत तथ्य है कि अनुभूति एवं अभिव्यक्ति के माध्यम से ही किसी व्यक्तित्व में जीवन्तता तथा सजीवता आती है और लोक-जीवन को भी उससे जीवन के नये आयाम का बोध परिबोध होता है । इसी दृष्टि से समाज और संघ में उपदेष्टा संत का बहुत ऊँचा स्थान है। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि एक विद्वान् एवं अध्यात्म-योगी संत होने के साथ, श्री पुष्कर मुनिजी भाषण मंच के एक प्रखर प्रवक्ता भी हैं । उनके विद्वत्तापूर्ण प्रवचनों तथा ओजस्वी भाषणों ने आगरा नगर के जनमानस को पर्याप्त आन्दोलित एवं प्रभावित किया था । जन हित की दृष्टि से उनके प्रवचनों के लिए 'अचल भवन' आदि अनेक स्थानों पर सार्वजनिक आयोजन भी किए गये थे। अपने प्रवचनों में वे अपना धार्मिक दृष्टिकोण तथा आध्यात्मिक पक्ष पूरी शक्ति और प्रबल निष्ठा के साथ ऐसी सरल शैली में प्रस्तुत करते थे कि लोक-मानस झूम जाता था । सचमुच, भाषण- मंच पर उनके भीतर
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