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________________ प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन १३ . + + + ++ +++ + + ++ ++ ++ +.. . . . .. . .... .... ... . .. .. .. .. .. प्रोजस्वी जीवन और तेजस्वी कृतित्व आचार्य श्री कांतिऋषि जी महाराज (खम्भात सम्प्रदाय) उपाध्याय पुष्कर मुनिजी महाराज के दर्शन मैंने सर्व- किन्तु वह अभिलाषा पूर्ण न हो सकी। इस वर्ष बम्बई प्रथम खम्भात में किये थे। उस समय आप अपने श्रद्धय बालकेश्वर में आपके दर्शनों का तथा सेवा करने का सुअवसद्गुरुवर्य श्री ताराचन्द जी महाराज के साथ पधारे थे। सर प्राप्त हुआ। और आपश्री के तेजस्वी प्रवचनों को भी आपका अध्ययन प्रारम्भ था। आपने खम्भात से सोलह सुनने का अवसर मिला। महावीर जयन्ती पर बम्बई मील दूर पेटलाद में संस्कृत भाषा की उच्च परीक्षाएँ चौपाटी पर एक विराट् सभा का आयोजन था। उस सभा प्रदान की थीं। मैंने उस समय देखा आप में अपने सद्गुरुदेव में श्वेताम्बर स्थानकवासी, मूर्तिपूजक, तेरापंथी तथा दिगम्बर के प्रति गहरी निष्ठा थी, विनय था। आपके उस विनय सभी समुदाय के प्रमुख सन्त व सतीवृन्द उपस्थित हुए। गुण को देखकर मुझे “विद्या ददाति विनयम्" की उक्ति आपश्री का भगवान महावीर के जीवन-दर्शन पर सारसहज ही स्मरण हो आयी । मैंने संघपति होने के नाते सेवा गर्भित प्रवचन हुआ जिसे सुनकर मेरे आल्हाद का पार न कर अपना कर्तव्य अदा किया । आपके आचार व विचार रहा। आपके प्रवचनों में गम्भीर अध्ययन के साथ ही की उत्कृष्टता की छाप मेरे अन्तर्मानस पर बहुत ही गहरी रूपक तथा चुटकुले और अत्यन्त मधुर भजन चलते हैं जो गिरी। उसके पश्चात् पुनः सन् १९४६ में आप श्री का विषय को सरल व सरस बना देते हैं। इससे श्रोता पदार्पण खम्भात में हुआ। उस समय आप श्री दस सन्तों के मस्तिष्क की टेढ़ी-मेढ़ी तंग पगडंडियों में न उलझकर साथ पधारे थे। आपके साथ लिमडी सम्प्रदाय के पूनमचन्द सीधा हृदय की अतल गहराई में पहुंच जाता है। जी महाराज भी थे। पूर्वापेक्षया आप में प्रतिभा की तेज- पुनः वर्षावास के पश्चात् आपश्री के दर्शनों का स्विता अत्यधिक बढ़ गयी थी। आपने आगम साहित्य के सौभाग्य मुझे पूना और घोड़ नदी (महाराष्ट्र) में मिला। साथ दार्शनिक साहित्य का गहराई से अध्ययन किया था मैंने बहुत ही सन्निकटता से आपके जीवन को देखा, आपके जिसके फलस्वरूप आपके प्रवचन मौलिक तथा हृदयस्पर्शी विचारों को सुना। अतः साधिकार कह सकता हूँ, कि होते थे। खम्भात में आपके प्रवचनों को सुनने के लिए आपका अध्ययन गम्भीर है और चिन्तन बहुत ही स्पष्ट है बरसाती नदी की तरह जनता उमड़ पड़ती थी। उसके और हृदय बहुत ही उदार है। मैं गुजरात का सन्त और पश्चात् आप श्री सौराष्ट्र होकर राजस्थान पधार गये और आप राजस्थान के सन्त, किन्तु मैंने कभी भी आपमें भेदमैंने भी अपने स्नेही साथियों के साथ आर्हती प्रव्रज्या ग्रहण भाव की संकीर्ण दृष्टि नहीं देखी। मैं आपश्री के ओजस्वी की। जीवन से और तेजस्वी कृतित्व से बहुत ही प्रभावित हुआ सन् १९७५ में भगवान महावीर निर्वाण शताब्दी का हैं। आप जैन धर्म की ज्योति को जगमगाते रहें और खूब भव्य आयोजन था। उस समय आप श्री अहमदाबाद का जैन शासन की प्रभावना करें यही मेरे हृदय की मंगल अपना शानदार वर्षावास पूर्ण कर बम्बई पधारे । मेरे मन कामना है। में कई वर्षों से आपके दर्शनों की उत्कृष्ट अभिलाषा थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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