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________________ दर्शन और विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में पुद्गल : एक विश्लेषणात्मक विवेचन ३६१ . Ammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm000- 00-00++++++ ++++ + +++++++ ++++++ ++++++ Oranam This दर्शन और विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में पुद्गल : एक विश्लेषणात्मक विवेचन AmpA * राष्ट्रसंत आचार्य श्री आनन्द ऋषिजी 'पुद्गल' शब्द दार्शनिक चिन्तन के लिये अनजाना नहीं है । न्याय-वैशेषिक दर्शन जिसे भौतिक तत्व और सांख्य प्रकृति नाम से कहते हैं, उसे जैनदर्शन में पुद्गल संज्ञा दी है। बौद्धदर्शन में पुद्गलशब्द का प्रयोग आलयविज्ञान, चेतना-संतति के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। जैनागमों में भी उपचार से पुद्गल युक्त (शरीरयुक्त) आत्मा को पुद्गल कहा गया है। परन्तु सामान्यतया प्रमुखता से पुद्गल शब्द का प्रयोग अजीव मूर्तिक द्रव्य के लिये हुआ है। विज्ञान के क्षेत्र में भी पुद्गल मैटर (Matter) और इनर्जी (Energy) शब्दों द्वारा जाना समझा जाता है । विज्ञान के समग्र विकास, संशोधन आदि का आधार पुद्गल ही है । परमाणु के रूप में जो पुद्गल का ही भेद है, तो पुद्गल ने आज समस्त विश्व मानस पर अपना अधिकार जमा लिया है। परमाणु की प्रगति ने तो विश्व को उसकी शक्ति, सामर्थ्य आदि से परिचित होने के लिये जिज्ञासाशील बना दिया । दर्शन के क्षेत्र में पुद्गल के विषय में क्या, कैसा, चिन्तनमनन और निर्णय किया गया एवं विज्ञान के क्षेत्र में पुद्गल परमाणु के रूप में कब आया, उसका आविष्कर्ता कौन था और अब तक विकास के कितने सोपानों को पार कर 'किस मंजिल तक पहुँच सका है ? आदि इन दोनों पक्षों को एक साथ यहाँ प्रस्तुत करते हैं। दर्शन पक्ष पाश्चात्य जगत की यह धारणा रही है कि पुद्गल परमाणु सम्बन्धी पहली बात डेमोक्रेट्स (ई० पू० ४६०३७०) नामक वैज्ञानिक ने कही थी। लेकिन पौर्वात्य दर्शनों और उनमें भी भारतीय दर्शनों का अवलोकन करें तो भारतवर्ष में परमाणु का इतिहास इससे भी सैकड़ों वर्ष पूर्व का मिलता है । चिन्तन और मनन की दृष्टि से काल गणना का निर्णय किया जाये तो उसे सुदूर प्रागैतिहासिक काल में भी आगे तक मानना पड़ेगा। वैशेषिक दर्शन में परमाणु का उल्लेख अवश्य है, लेकिन वह नहीं जैसा है, उसमें क्रमबद्ध विचार प्रणाली का अभाव है, लेकिन जैनदर्शन में पुद्गल और परमाणु के विषय में सुव्यवस्थित विवेचन किया गया है। जैनधर्म और दर्शन की प्रागैतिहासिक प्राचीनता स्वयं सिद्ध है और अब ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह सर्वानुमोदित हो चुका है कि जैनधर्म वैदिक और बौद्ध धर्म से भी प्राचीन है। इस प्रकार परमाणु का अस्तित्व जैनदर्शन के साथ बहुत प्राचीन सिद्ध हो जाता है। फिर भी हम वर्तमान जनदर्शन का सम्बन्ध तीर्थंकर महावीर से माने तो उनका काल ई० पू० ५६८ से लेकर ५२६ तक का है जो डेमोके टस् से कुछ अधिक सौ वर्ष पूर्वकालिक है। अतः यह सिद्ध हो जाता है कि पाश्चात्य जगत में डेमोक्रेट्स ने परमाणु शब्द का प्रयोग किया है लेकिन वह उसका आविष्कर्ता नहीं था। पुद्गल का अर्थ 'पुद्गल' जैन पारिभाषिक शब्द है । बौद्धदर्शन में अवश्य पुद्गल शब्द का प्रयोग हुआ है लेकिन उसका नितान्त भिन्न अर्थ में प्रयोग होने से विज्ञान सम्मत पदार्थ (Matter) के आशय से मेल नहीं खाता है। जबकि जैनदर्शन का पुद्गल शब्द विज्ञान के पदार्थ का पर्यायवाची है । तथा पारिभाषित होते हुए रूढ़ नहीं किन्तु व्योत्पत्तिक हैपूरणात् पुत् गलयतीति गलपूरणालनान्वर्ष संज्ञत्वात् पुद्गला:-अर्थात् पूर्ण स्वभाव से पुत् और गलन स्वभाव से गल इन दो अवयवों के मेल से पुद्गल शब्द बना है, यानी पूरण और गलन को प्राप्त होने से पुद्गल अन्वर्थ संज्ञक है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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