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________________ तृतीय खण्ड : गुरुदेव को साहित्य धारा २२३ . ........... ३५. व्यापारी पर कितना ही धन हो, पर उसकी वणिक् वृत्ति नहीं जाती। व्यापारी हर काम में लाभ-हानि का विचार करता है। -जैन कथाएं भाग २५, पृ०६० ३६. जब जल बहकर चला जाए तो पुल बाँधने से क्या लाभ? इसी तरह मनुष्य के मरने पर औषधि देना और सिर मुंडाने के बाद मुहूर्त पूछना व्यर्थ है । जो वस्तु हाथ से निकल गई, उसके लिए शोक करना व्यर्थ है। -जैन कथाएं भाग २४, पृ० ९४ जैन कथाओं के कुछ अभिप्राय अभिप्रायों के सम्बन्ध में आवश्यक विचार पूर्व में किया जा चुका है यहाँ केवल इनका उल्लेख किया गया है : स्वप्न-दर्शन, (पृष्ठ ३), ७२ कलाओं का अध्ययन (पृष्ठ ६), भाग्य परीक्षा (पृष्ठ १०), सियार का मानवबोली में बोलना (पृ० ४४), चिन्तामणि रत्न की प्रशस्ति (पृ० ८२), एक लकड़ी के हाथी में सैनिकों को छिपाना (पृ० १२६), अग्नि प्रकोप (पृ० १२७), आदि । -जैनकथाएं भाग १ सन्तान-अभाव दुःख (पृ० १) नवकार मंत्र का प्रभाव (पृ० ५), राज्य की खरीद (पृ० ४), प्रश्नों के उत्तर (पृ० ६), जहाज का सागर के बीच तूफान में फंसना एवं सहसा यक्ष का प्रकट होकर सहायता करना(पृ० १५), यक्षद्वीप का उल्लेख (पृ. १५), सती का अपमान एवं सतीत्व की रक्षार्थ सागर में कूदना (पृ० १७), बाजार में नारी की बिक्री (पृ० १९), आकाशवाणी (पृ. २४), किंजल्प पक्षी की चर्चा (पृ. ४७), आठों सिद्धियों की प्राप्ति (पृ० ३६) सिंहलद्वीप (पृ० ४४), समुद्र यात्रा में पति वियोग से पीड़ित सती का विलाप (पृ० १४६) मुनि का उपदेश (पृ० १५८) आदि। -जैन कथाएं भाग २ अद्भुत फल का चमत्कार (पृ०७१), विपत्ति में फंसी हुई सती की कुम्भकार द्वारा सहायता (पृ. ७६), रत्लद्दीप (पृ. ८०), ताम्रपत्र में लिखी हुई रहस्यात्मक भाषा के पढ़ने पर आधे राज्य को देने की घोषणा (पृ० ८१), मुनि द्वारा आगामी भव का उल्लेख (पृ० १९)। -जैन कथाएँ भाग ३ परकायप्रवेश (पृ० २०), मनुष्य जाति की कृतघ्नता (पृ० १३१), परोपकारवृत्ति वाली बंदरी (पृ० संख्या १३१), शाप (पृ० १६२) आदि । -जैन कथाएं भाग ४ स्वाध्याय का चमत्कार (पृ० ३१), महामारी रोग का फैलना (पृ० १२२) आदि। -जैन कथाएं भाग ५. एक अद्भुत तुम्बी का चमत्कार-पर्याप्त धन की प्राप्ति (पृ० ६), चक्रेश्वरी शासनदेवी का वरदानवन्ध्या को पुत्र-प्राप्ति (पृ० २८), स्वयंम्बर (पृ० ४६) भारंड पक्षी (पृ० १३१) मानव रक्त से कपड़े रंगने का व्यापार करना (पृ० १३१), पूर्वभवों के वृत्तान्त को सुनकर विरक्ति होना (पृ० १६७), नागपाश में बंधना (पृ. १६६) आदि। -जैन कथाएं भाग ६ पशु-पक्षियों की भाषा समझने की शक्ति प्राप्त होना (पृ०८), कौवा और हंस का साथ-साथ उड़ना, कौवे का राजा पर बीट करना एवं क्रुद्ध राजा का तीर छोड़ना तथा लक्ष्य भ्रष्ट होना, जिससे हंस की मृत्यु तीर लगने से होना (पृ० ६२), आकाशगामिनी विद्या-प्राप्ति (पृ० १२२) । -जैन कथाए भाग ८ यक्षिणी का राजा के रूप-यौवन पर मुग्ध होना (पृ० १७४) । -जैन कथाए भाग १२ कर्णपिशाचिनी का चमत्कार (पृ० ११८)। -जैन कथाएं भाग १४ राजकुमारी को जहरीले सांप का काटना, एवं नवकार मंत्र के उपांशु जाप से सर्प-विष के प्रभाव का शमन, गारुड़ी मंत्र का प्रयोग, कथित राजा की, राजकुमारी को जीवन-दान देने वाले को अपने समस्त राज्य का अर्पण करना (पृ० ५७)। -जैन कथाए भाग १५ गुप्तचरों का जाल बिछाना, विषहर जड़ी के प्रभाव से सर्प-दंश से स्वस्थ होना, मंत्रों से अधिष्ठित धागे के पहनने से मनुष्य का तोता बनना, आदि (पृ. १७७ एवं १७९)। -जैन कथाएं भाग १६ समस्या के समाधान न करने पर सात गाँव के जलाने का पाप लगना-शर्त (पृ. १२५), लकड़ी के बकरे का मानव बोली में बोलना (पृ० ११८), पति की (संग्राम में) मृत्यु होने पर पत्नी का काष्ठ-भक्षण करना (पृ० १४), सहसा आई हुई हंसी का कारण बताना (पृ० १५२), ऐन्द्रिजालिक का कौतुक दिखाना, आदि (पृ० १५३)। -जैन कथाएं भाग २१ कथाओं की रचना-प्रक्रिया, भाषा सौष्ठव एवं शैली की प्रांजलता जैन-कहानियों का रचना विधान बड़ा ही सरस, सरल एवं आकर्षक है। इसमें न शाब्दिक काठिन्य है और न भावों की दुर्बोधता । ये कथाएँ साधारण जनता के लिए लिखी गई हैं अतः इन्हें इतना सुबोध बनाया गया है कि अशिक्षित . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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