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________________ २१८ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ ++++ ++++++++++++.......... .++ + + ++ + +++++++++++++++++++++ + +++ + +++ +++++++ +++++ +++ +++++ +++++ +++ प्राणी सच्चे दुख का अनुभव करता है । संसार के प्रांगण में कौटुम्बिक जीवन जोकर कौन सुखी रह सकता है ? तात्त्विक दृष्टि से परिवार के समस्त सदस्य स्वार्थी हैं । सांसों की गति के साथ ही ये सहयोगी हैं तथा मरण के साथ इनका साहचर्य असम्भव है। इस तथ्य का निरूपण विश्व के समस्त धर्मों ने बड़ी गम्भीरता से किया है लेकिन जैन-दर्शन इस संदर्भ में सर्वोपरि है। निम्नस्थ कहावतें संसार के (दुनियां के) वास्तविक रूप को उजागर करती हैं (१) दुनियाँ चंद रोजा है। (दुनियाँ कुछ दिनों की है।) (२) दुनियाँ जाए उम्मेद है। (दुनियाँ नष्ट हो जाए पर आशा फिर रहती है।) (३) दुनियां जाहिर परस्त है। (दुनियाँ दिखावट को पसन्द करती है। (४) दुनियाँ दुरंगी मकाए सराय । कहीं खैर-खूबी, कहीं हाय-हाय । (कपट की सराय यह दुनियाँ दुरंगी है। यहां कहीं आनन्द-मंगल है तो वही परेशानियों पर परेशानियाँ हैं ।) (५) दुनियाँ धुन्ध का पसारा है। (दुनियाँ एक माया है।) (६) दुनियाँ धोखे की टट्टी है । (दुनियाँ मिथ्या है।) (७) दुनियाँ बउम्मेद कायम है। (संसार आशा पर टिका है।) (८) दुनियाँ बेसबात है । (दुनियाँ नश्वर हैं।) (६) दुनियाँ मुर्दा पसन्द है। (दुनियाँ मरे हुओं की ही प्रशंसा करती है, जीवित को कोई नही पूछता। (१०) दुनिया में चार पैसे बड़ी चीज है। (दुनियाँ में धन की ही पूछ है।) (११) दुनियाँ मतलब की गरजी । (दुनियाँ स्वार्थ की है।) (१२) दुनियाँ है और खुशामद । (दुनियाँ में आप खुशामद करके ही अपना काम बना सकते हैं।) . (१३) दुनियाँ है और मतलब। (मतलब के सिवा दुनिया में कुछ भी है।) (१४) दुनियाँ ठगिए मक्कर से । रोटी खाये शक्कर से। (दुनियां में चालाकी से ही लाभ उठाया जा सकता है । सीधे की यहाँ गुजर नहीं हैं।) (हिन्दी कहावत-कोश, पृष्ठ २०६-२०७) जैन कवि भूधरदास ने संसार का कितना मर्मस्पर्शी चित्र इन पंक्तियों में चित्रित किया है काहू घर पुत्र जायो काहू के वियोग आयो, काहू घर राग रंग रोया रोटी परी है। जहाँ भान ऊगत उछाह गीत गान देखे, सांन समय ताही थान हाय हाय परी है। ऐसी जगरीत देख क्यों न भयभीत होत. हा!. हा!, नरमूढ़ तेरी मति कौन हरी है। मानुस जनम पाय सोबत विहाय पाय, खोबत करोरन को एक-एक घरी हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने विनयपत्रिका (जैन शतक) में संसार को बड़ा ही भयानक और सघन वन कहा है। यहाँ कर्म रूपी वृक्ष बड़े ही सघन हैं । वासनाओं की लताएँ लिपट रही हैं और व्याकुलता के अनेक पैने काँटे बिछ रहे हैं । (दृष्टव्य पद ५६) । इसी प्रकार गोस्वामीजी ने इस दुनिया को केले के पेड़ के समान निस्सार एवं कपट का घर बताया है। -(द्रष्टव्य विनय पत्रिका पद १८८) संत कबीर ने संसार को कागज की पुड़िया बताकर इसे बूंद पड़े पर गल जाना कहा है (यह संसार कागज की पुड़िया बूद पड़े गल जाना है।) कविवर बनारसीदास का यह कथन इस संसार के सम्बन्ध में बड़ा ही स्पष्ट है, तात्त्विक है और वास्तविक है यह संसार असार रूप सब, ज्यों पट पेखन खेला। सुख-सम्पति शरीर जल बुदबुद विनशत नाहीं वेला ॥ (अध्यात्म पदावली, पृष्ठ ३०५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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