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________________ तृतीय खण्ड : गुरुदेव की साहित्य धारा २१३ ० . ___ रूपक का उदाहरण देखिए कि यह संसार मदान्ध और फिर अन्धा हाथी है। इसमें सम्पत्तिशाली एक ओर गुलछरे उड़ा रहे हैं और अपने कर्मों के वशीभूत हो अनेक प्रकार के अनर्थकर मौज का अनुभव करते हैं, किन्तु सत्य यह है कि वे उतने ही दु:ख के बीज बो रहे हैं । दूसरी ओर इसी जगत् में त्यागी तपश्चर्यावान् सच्चे सन्त भी हैं जो जन्म और मृत्यु के बन्धन से छूटने का प्रयास कर रहे हैं । किन्तु यह झूमता हुआ अन्धा हाथी संसार चला ही जा रहा है । मुनिश्री जी के ही शब्दों में देखिए प्रीणन्त्यन्ये चयितविभवा भुक्तभोगप्रपञ्चाः, धन्यंमन्या स्वकृतिविवशाः पापकृत्यानि कर्तुम् । सन्त्येकेऽमी विरतहृदया मृत्युजन्मक चिन्ताः, संसारोऽयं विविधविषयव्याप्तचित्तोऽन्धहस्ती ।। क्या बढ़िया स्वभावोक्ति है- देखिए भावापन्न प्रभवति तत: प्रेमसम्पृक्तचित्तम्, लोकं दृष्ट्वा मधुर वचनैश्चापि संक्षिप्तवृत्तः । शान्तं कत्तुं प्रतिदिनमयं धर्मबालोष्णरश्मिः, पुण्यश्लोक: सरसवचसा तर्पयत्येव जन्तून् । संसार के प्रेमबन्धन में जकड़े हुए भावुक भक्त को मीठे सान्त्वनापूर्ण वचनों से इधर-उधर की बात पूछकर शान्त करते हैं । क्योंकि साधु कभी सावध भाषा का प्रयोग नहीं करते । अतः वे शान्त रहने के लिए प्राणियों को उद्बोधन देते हैं। इस प्रकार काव्य में अनेक अलङ्कार भिन्न-भिन्न रूप में प्रयुक्त हैं । शब्दालङ्कार का तो यह सजीव उदाहरण कहा जा सकता है। निश्चय ही मैं समीक्षक के रूप में कह सकता हूँ कि काव्य की कथावस्तु को देखते हुए, जहाँ तक जैनधर्म के सिद्धान्त से गृहीत शब्दावली के सार्थक उपयोग से यह काव्य अल्पकाय होने पर भी महाकाव्य कहे जाने का अधिकारी है। मुझको पूर्णविश्वास है कि संस्कृत-साहित्य की श्री वृद्धि में यह काव्य अवश्य सहायक होगा और संस्कृत के नवीन कवियों के लिए प्रेरक होगा। विज्ञषु विद्वत्सु किमधिकम् श्री पुष्क र-वाणी ---------------- ----------------------------- ताला खोलन के लिए चाभी की आवश्यकता होती है। किसी भी काम को सफलता पूर्वक सम्पन्न करने के लिए युक्ति की जरूरत होती है । इसी प्रकार आत्म-उत्थान करने के लिए शास्त्र या गुरु रूप चाभी की नितांत आवश्यकता है। ----------------- गुरु एक प्रकार से ट्रांसफार्मर का काम करते हैं। ट्रांसफार्मर हाईवोल्टेज करेट को लो (Low) वोल्टेज में परिणत कर उसे आम जनता के लिए उपयोगी बना देता है । गुरु-शास्त्रों की गंभीर और दुर्बोध युक्तियों को सरल और सुबोध बनाकर शिष्यों के समक्ष रखते हैं, जिनके उपयोग से अल्पज्ञ भी अपना कल्याण कर सकते हैं। 2-0-0-0-0-0--0-0----0-0--0-0----------------------------- ---0--0--0-0-0--0-3 m---0-0--- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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