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________________ १७६ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ पूना में भी आपश्री के दो वर्षावास हुए। पहले वर्षावास की अपेक्षा द्वितीय वर्षावास अधिक प्रेरणादायी रहा । इस वर्षावास में अनेक मूर्धन्य मनीषियों से सम्पर्क बढ़ा । तथा जैनदर्शन स्वरूप और विश्लेषण 'धर्म का कल्पवृक्ष : जीवन के आंगन में,' 'भगवान महावीर की प्रतिनिधि कथाएँ' आदि अनेक ग्रन्थों के विमोचन भी हुए। आपश्री की प्रेरणा से विश्वविद्यालय में जैन-चेयर की संस्थापना हुई । पुष्कर गुरु सहायता फंड की संस्थापना हुई । तपस्या का ठाठ भी ज्यादा रहा। जयपुर में आपश्री के तीन वर्षावास हुए और जोधपुर में चार वर्षावास हुए। इन वर्षावासों में अध्ययन चिन्तन-मनन के साथ ही जैन-एकता के लिए आपश्री ने अथक परिश्रम किया । आपश्री के वर्षावासों में उत्कृष्ट तप की व जप की साधना होती है । आपश्री ने जहाँ भी वर्षावास किये, वहाँ पर स्नेह-सद्भावना का निर्माण किया । युवकों में धर्म के प्रति आस्थाएँ जागृत की। आपश्री की कर्नाटक प्रान्त की विहार यात्रा भी अत्यन्त यशस्वी रही है । कर्नाटक प्रान्त में आप जहाँ भी पधारे वहाँ पर अपूर्व उत्साह का संचार हुआ । जन-जन के अन्तर्मानस में जैनधर्म व दर्शन को समझने की निर्मल भावना अंगड़ाइयाँ लेने लगी। अनेक शिक्षण संस्थाओं में आपके प्रवचन हुए। रायचूर, जहां एक सौ दस घर स्थानकवासियों के होने पर भी ग्यारह मासखमण तथा अन्य ६१ व अन्य तपस्याएँ अत्यधिक हई । बेंगलोर वर्षावास में लगभग ५० मासखमण और तप की जीति-जागती प्रतिमा अ० सौ० धापुवाई गोलेच्छा ने १५१ की उग्र तपस्या की तथा अन्य लघु तपस्याएँ इतनी हुई कि सभी विस्मित हो गये । 'पुष्कर गुरु जैन युवक संघ' और 'पुष्कर गुरु जैन पाठशाला' की तथा 'पुष्कर गुरु जैन भवन' का भी निर्माण हुआ। इन विहार-यात्राओं में कभी भयंकर गरमी का अनुभव हुआ, तेज लूओं ने भी आपकी परीक्षा ली। और कभी सनसनाती हुई सर्दी से ठिठुरते रहे । तो कभी वर्षा के कारण भीगते हुए रास्ता पार किया । बम्बई के विहार में नदी-नालों से बचने के लिए रेल की पटरी के मार्ग पर चलना होता है। यहाँ पर कंकड़ों के मारे पैर छलनी हो जाते हैं । वर्षा के दिनों में भीगी हुई चिकनी मिट्टी के चिमट जाने से चलना भी दूभर हो जाता है । इस प्रकार अनेक कठिनाइयों के बावजूद भी आपकी विहार यात्रा का अजस्र स्रोत चालू है। एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में, एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त में, आप उसी सहज भाव से जाते-आते हैं जैसे कोई व्यक्ति अपने ही भव्य भवन के विविध कमरों में जाता-आता है । आप चाहे किसी भी प्रान्त में जायें, वहाँ आपको कोई परायापन महसूस नहीं होता । वसुधैव कुटुम्बकम् की उदात्त भावना के कारण आपको सर्वत्र अपार आनन्द की अनुभूति होती है। संक्षेप में आपश्री के वर्षावासों की सूची इस प्रकार है। ई० सन् वि० संवत् क्षेत्र का नाम प्रान्त का नाम १६२४ १९८१ समदडी मारवाड़ १९२५ १९८२ नान्देशमा मेवाड़ १९८३ सादड़ी मारवाड़ १६२७ १९८४ सीवाना मारवाड़ १९२८ १९८५ जालौर मारवाड़ १९२६ १९८६ सीवाना (सकारण) मारवाड़ १९३० १९८७ खाण्डप मारवाड़ १६३१ १९८८ गोगुन्दा मेवाड़ १९३२ १९८९ पीपाड़ १९३३ १९९० भंवाल मारवाड़ १९३४ १९६१ ब्यावर मारवाड़ १९३५ १६६२ लीमड़ी गुजरात १९३६ १९६३ नासिक महाराष्ट्र १९३७ १९९४ मनमाड महाराष्ट्र १९३८ १९९५ कम्बोल मेवाड़ १६३६ सीवाना मारवाड़ १६४० १९९७ खण्डप मारवाड़ १९४१ १९९८ समदड़ी मारवाड़ संख्या मारवाड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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