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________________ १७२ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन प्रन्य ऋषिजी म०, चन्देरिया चित्तौड़नासी समुदाय के मूर्धन्य मी म०, आचार्य श्री alm मo, मरुधरकेसरी जी डी० लिट्, परि जी, ५० मुनिश्रा कान्तिसागर जी, आचव महोदधि आचार्य विजयरुदेव RANVAR ब्यवहार में ऐसा कार्य किया जाय जिससे एकता में बाधा उपस्थित न हो। दोनों ओर से यह प्रयास होना चाहिए। एक ओर का प्रयास सफल नहीं हो सकता । आचार्य तुलसी जी ने भी गुरुदेव श्री के स्वर में स्वर मिलाते हुए कहा'आपका चिन्तन सुलझा हुआ है और उसी दृष्टि से हम प्रयास करेंगे तभी सफल हो सकेंगे।' इस प्रकार राजनैतिक, सामाजिक, शैक्षिक, आध्यात्मिक प्रभृति विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित शताधिक व्यक्ति, चिन्तक व मूर्धन्य मनीषीगण श्रद्धय सद्गुरुवर्य के सम्पर्क में आये हैं और आते रहते हैं। किन्तु विस्तार के भय से मैं उन सभी संस्मरणों को यहाँ नहीं दे रहा हूँ । आचार्य श्री आत्मराम जी महाराज, आचार्य श्री काशीराम जी महाराज, गणि उदयचंद जी म०, आचार्य श्री जवाहरलाल जी म०, उपाचार्य श्री गणेशीलालजी म. आचार्य नानालाल जी म०, आचार्य हस्तीमल जी म०, आचार्य खूबचंदजी म०, आचार्य सहस्रमल जी म०, दिवाकर चौथमल जी म०, उपाध्याय किस्तूरचंद जी म०, मालवकेसरी सौभाग्यमल जी म०, शतावधानी श्री रत्नचंद्र जी म०, आचार्य गुलाबचंद जी म०, आचार्य रूपचंद जी म०, कविवर नानचंदजी म०, मुनि सन्तबाल जी, आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषिजी म०, उपाध्याय अमर मुनि जी म०, प्रवर्तक पन्नालाल जी म०, कविवर्य चौथमल जी म०, मरुधरकेसरी मिश्रीमल जी म०, उपाध्याय मधुकर मुनि जी, उपाध्याय फूलचंद जी म०, आचार्य श्री घासीलालजी म०, आचार्य पुरुषोत्तमलाल जी म०, आदि स्थानकवासी समुदाय के मूर्धन्य मनीषीगण तथा पुरातत्ववेत्ता पद्म श्री जिनविजय जी, गुरुदेव श्री से चन्देरिया चित्तौड़ तथा अहमदाबाद में अनेकों बार मिले। और इतिहास तत्वमहोदधि आचार्य विजयेन्द्रसूरि जी, इतिहासवेत्ता मुनि श्री कल्याणविजय जी, डा० मुनि कान्तिसागर जी, आचार्य रामचंद्रसूरि जी, आचार्य विजय धर्मसूरि जी, आचार्य समुद्रसूरि जी, पं० मुनि श्री यशोविजय जी, पं० मुनि श्री अभयसागर जी, डा० मुनि नगराज जी डी० लिट०, प० मुनि श्रीनथमल जी, चारित्र-चक्र चूडामणि दिगंबर आचार्यशांतिसागर जी; आचार्य प्रवर देशभूषण जी, महन्त दर्शनराम जी, डा० एस० एस० बारलिंगे, डा० टी० जी० कलघटगी, डा० प्रेम सुमन जैन, डा० कमलचन्द सोगानी, डा० भागचन्द 'भास्कर', डा० संगमलाल पाण्डेय, इतिहास रत्न श्री अगरचंद जी नहाटा, जस्टिस श्री टी० के० तुकोल, जस्टिस इन्द्रनाथ मोदी, जस्टिस सोमनाथ मोदी, श्री ऋषभदास जी रांका, डा. जगदीश चन्द जी जैन, डा० ए० डी० बत्तरा, डा० आनन्द प्रसाद दीक्षित, डा० नथमल टाटिया, आचार्य निरंजननाथ, दिनेश नंदिनी डालमिया, डा० डी० एस० कोठारी, सेठ अचलसिंह जी, श्री सोलिसिटर जनरल चिमनभाई चक्कूभाई शाह, पद्मश्री सेठ मोहनलाल जी चोरडिया, सेठ विनयचंद दुर्लभ जी, खेलशंकर दुर्लभजी, सेठ हीराचंद बालचंद आदि व्यक्तियों से गुरुदेव श्री की विभिन्न विषयों पर विचार-चर्चाएं हुई। और सभी गुरुदेव श्री के स्नेह-सौजन्यपूर्ण सद्व्यवहार से प्रभावित हुए । वस्तुतः स्नेह ऐसा सुनहरा धागा है जिसमें हर कोई बांधा जा सकता है। उपसंहार परम श्रद्धेय सद्गुरुवर्य विश्व की जगमगाती एक महान विभूति है, मनीषी और मनस्वी सन्त हैं । आपका जीवन सहस्रदल कमल के समान सुवासित व रमणीय है, जो प्रतिफल प्रतिक्षण अपने मधुर सौरभ के खजाने को लुटाता रहता है, तेजस्वी सूर्य के समान दिव्य आलोक प्रदान करता है और गंगा के निर्मल प्रवाह की तरह सरसता का संचार करता है, इसीलिए वह वन्दनीय, वर्णनीय और अर्चनीय है। सद्गुरुवर्य का विराट जीवन ज्ञान, दर्शन, चारित्र्य की परम पावनी त्रिपथगा है। जो भी उनके निकट सम्पर्क में आता है वह अनिर्वचनीय आनन्द, अगाध तृप्ति और अन्तहीन विश्रांति का अनुभव करता है । वस्तुतः आपका जीवन रमणीयता का अक्षय-कोष है। दिनभर कर्मयोगी की तरह कार्य करते रहने पर भी शरीर पर थकान, मुख पर म्लानता और मानसिक विक्षोभ की एक रेखा भी आपके चेहरे पर नहीं दिखायी देगी। प्रत्येक क्षण वही तत्परता, वही लीनता, वही जीवन और जगत् के गम्भीर रहस्यों का अन्वेषण करती हुई भाव-मुद्रा, वही मधुर मुस्कराहट और वही निर्माण की छटपटाहट । वे स्वयं समय की पकड़ में नहीं आते, किन्तु समय तब तक उनकी पकड़ से छूट नहीं सकता जब तक वे उसके छलछलाते रस को अच्छी तरह निचोड़ नहीं लेते। कविकुलगुरु कालिदास ने रमणीयता की जो परिभाषा की है वह आपके जीवन में जीवित और जागृत दिखायी देती है-"क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः ।" आपश्री ने अपने जीवन के बहुमूल्य उनहत्तर वासन्ती बहारों को पूर्णरूप से जन-जन के जीवनोत्कर्ष की मंगलमय भावना हेतु समर्पित किया और आज भी उसी मस्ती में अनन्त सौरभ, अनन्त आनन्द और अनन्त प्रकाश को कुबेर की तरह बाँट रहे हैं । उस विराट व्यक्तित्व को यह जड़ लेखनी कैसे अभिव्यक्ति दे सकती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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