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________________ द्वितीय खण्ड : जीवनदर्शन १५३ . .. . .. ... . . ०० भी बाल-दीक्षा दे चुके थे। विरोध की आँधी इतनी तेज रूप से आयी कि यदि दूसरा व्यक्ति आपके स्थान पर होता तो वह टिक भी नहीं सकता था, पर आप विचलित नहीं हुए । समाचार-पत्रों के पृष्ठ रंगे हुए आते रहे । उत्तेजनापूर्ण शब्दों में विरोधी व्यक्ति लिखते रहे। किन्तु आप जानते थे कि आंधी की उम्र लम्बी नहीं होती। उसके बाद वर्षा आती है और आकाश निर्मल हो जाता है। वही स्थिति अन्त में हुई। विरोध करने वालों के मन में अपने अकृत्य के प्रति पश्चात्ताप हुआ। और जो विरोध कर रहे थे वे आपके चरणों में झुक गये। आपने कभी भी विरोध करने वाले का विरोध नहीं किया । आपकी साधुता को देखकर बम्बई महासंघ के मूर्धन्य मनीषी अध्यक्ष श्रीचिमनभाई ने हजारों की जनता के बीच कहा-"पुष्कर मुनि जी जेवा साचा साधु गोत्या पण न मले।" यह है आपकी अगाध सहिष्णुता जिससे आलोचक भी आपके चरणों में नत होते रहे हैं। आपके जीवन में अनेकों बार ऐसे प्रसंग आये हैं, किन्तु आप सदा यही कहते रहै प्रभात के पूर्व अन्धकार जरा गहरा होता है। अन्धकार को देखकर घबराओ नहीं। उसके पीछे सहस्ररश्मि सूर्य का चमचमाता प्रकाश रहा हुआ है । यदि तुम सत्यपथ पर हो, न्याय के मार्ग पर चल रहे हो, तो तुम्हें भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है । आलोचना वह धुआँ है जो सत्य का पवन चलते ही नष्ट हो जाता है। आध्यात्मिक साधना : उपलब्धियां व चमत्कार भारतीय-साधना पद्धति में जप का अधिक महत्त्व रहा है। यह आभ्यन्तर तप है, स्वाध्याय का एक प्रकार है। जप आधि-व्याधि और उपाधि को नष्टकर समाधि प्रदान करता है। जप में अद्भुत शक्ति है। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा-हे अर्जुन, यज्ञों में मैं जपयज्ञ हूँ-"यज्ञानां जपयज्ञोस्मि ।" जप में दो अक्षर हैं। "ज" जन्म का विच्छेद करने वाला है और "प" पाप का नाश करने वाला है । अतः जप से संसार का उच्छेद होता है। ध्यान से मन की शुद्धि होती है, जप से वचन की शुद्धि होती है और आसन से काया की शुद्धि होती है । सिद्धि के लिए जप की अनिवार्य आवश्यकता है। एतदर्थ ही भारत के एक तत्त्व चिन्तक ने लिखा है "जपासिद्धिः जपासिद्धि जपासिद्धिर्न संशयः" जप में महान् शक्ति है । जो कार्य अन्य शक्ति से संभव नहीं वह असंभव कार्य भी जप से संभव है। नियमित रूप से नियमित समय पर सद्गुरुदेव से सविधि महामन्त्र नवकार को लेकर यदि जाप किया जाय तो अवश्य ही सिद्धि मिलती है, ऐसा सद्गुरुदेव का दृढ़ विश्वास है । वे स्वयं प्रतिदिन नियमित रूप से जाप करते हैं । वे भोजन की अपेक्षा भजन को अधिक महत्त्व देते हैं । पूज्य गुरुदेव श्री के जीवन में जप की साधना साकार हो उठी। वे खूब रसपूर्वक जप करते हैं। और जो भी उनके सम्पर्क में आता है उसे भी वे जप की प्रबल प्रेरणा प्रदान करते हैं। वे अपने प्रवचनों में अनेक बार फरमाते हैं-अन्य मन्त्र-तन्त्रों के पीछे पागल होकर क्यों घूम रहे हो? महामन्त्र नवकार जैसा प्रभावशाली अन्य कोई मन्त्र नहीं है। एकनिष्ठा, एकतानता के साथ उसका जाप करो तो तुम्हें अनिर्वचनीय आनन्द की उपलब्धि होगी। श्रद्धय गुरुदेव श्री को जप और ध्यान की साधना गुरु-परम्परा से प्राप्त है। जप की सिद्धि के लिए गुरुजनों की कृपा अत्यन्त आवश्यक है । यदि उनके द्वारा प्राप्त विधि से जप किया जाय तो अद्भुत शक्ति पैदा होती है। गुरुदेव प्रातः, मध्याह्न और रात्रि में जप-साधना नियमित रूप से घण्टों तक करते हैं । आपकी साधना में किसी भी प्रकार की लौकिक कामना व भावना नहीं है। किन्तु जप का अलौकिक प्रभाव मैंने स्वयं अपनी आँखों से अनेकों बार देखा है। प्रत्यक्ष अनुभव किया है कि जो लोग रोते और बिलखते हुए आते हैं वे गुरुदेव श्री का मांगलिक सुनकर हँसते और मुस्कराते हुए विदा होते हैं । हजारों व्यक्ति ऐसी उपाधियों से ग्रसित थे जिनका डाक्टर और वैद्य उपचार नहीं कर सके थे, उन्हें भी गुरुदेव की वाणी से स्वस्थ होते हुए देखा है। मैं कुछ प्रसंग पाठकों की जानकारी के लिए यहाँ दे सन् १९६६ में श्रद्धय गुरुदेव नासिक में विराज रहे थे। एक बहिन रोती हुई आयी-महाराज श्री, गजब हो गया । एक नौ वर्ष के नन्हें से बच्चे की आँखों की रोशनी चली गयी । नेत्र विशेषज्ञों ने भी हाथ झटक दिये । अब उसका क्या होगा ? कहती हुई बहिन का गला भर आया। उसकी आँखों से मोतियों के समान आंसू टपक पड़े। गुरुदेव श्री का दयालु हृदय द्रवित हो उठा । वे उसके घर पर पधारे। मांगलिक सुनाने के पश्चात् पूछा- मुन्ना, तुझे कुछ दिखायी देता है ? मुन्ने ने कहा-गुरुदेव, कुछ धुन्धला-धुन्धला दिखायी देता है। तीन दिन तक मांगलिक सुना और उसकी नेत्र-ज्योति पुनः आ गयी । बहिन नेत्र विशेषज्ञों के पास गयी। नेत्र विशेषज्ञ हैरान थे । वे गुरुदेव के समीप आये और कहा-'आपके चमत्कार से चमत्कृत होकर हमें भी आस्तिक होना पड़ा।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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