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________________ द . १२० श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ ++++ ++ ++++++ + ong युग-पुरुष तुम्हें शत-शत वंदन . 0 श्रीचन्द सुराना 'सरस' युग-पुरुष ! तुम्हें शत-शत वन्दन । तेरे अन्तर में दीप्त हुआ आँखों से करुणा का अमृत वह दिव्य साधना का तेजस् :१: बहता है प्रतिपल ज्यों निर्झर तव-भालपट्ट पर दमक रहा पीड़ित-व्याकुल मानव का मन यह विमल ब्रह्म-रस का ओजस् हो जाता शान्त जिसे पीकर ओ महाप्रणव के आराधक ! तुमने साधा है अन्तर मन। युग-पुरुष तुम्हें शत-शत वन्दन । तुम सरस्वती के वरदपुत्र ! पाकर वाणी का अमिय-परस भरते शब्दों में प्राण-प्रखर कितनों ने पाया नवजीवन तेरे हर स्वर में गूंज रहा कितनों का अन्तर कालुष हर श्री जिनवाणी का पंचमस्वर है बना दिया तुमने कुन्दन । अपनी सिद्धि के अमृत से दो जन-जीवन को संजीवन । युग-पुरुष ! तुम्हें शत-शत वन्दन । 0000 0000 1500 श्रद्धामय बन गये स्वयं गुरु, जन-जन की श्रद्धाएं पाकर श्रद्धाएं-श्रद्धाएं लो, श्रुतिगत होता यही एक स्वर श्रद्धा से बढ़कर क्या है जो, गुरु-चरणों में अर्पण करदे पितरों की स्मृति में सन्ताने, श्राद्ध सहित कुछ तर्पण करदे श्रद्धा सबकी लेते, देते-सबको शुभ आशीर्षे गुरुवर दुष्कर कार्य यही करते हैं, सर्वशुभंकर गुरुवर पुष्कर अलग एषणाओं से रहते, कहते कुछ भी नहीं किसी से हैं अध्यात्म महायोगीश्वर, सिद्ध हो रहा स्वतः इसी से गुरु की महिमाओं से परिचित, जगत कभी भी क्या हो पाया श्रद्धा से ही नत होता है, जो भी गुरु-दर्शन को आया विकसित होते विकसित रहते, श्रद्धामय ये सुमनस प्यारे बहुत उल्लसित विकसित मन से, सर्व समय जाते स्वीकारे मैं भी श्रद्धा-सुमन चढ़ा दूं, और बढ़ा दूं चरणों में कर भले नहीं कोई पहचाने मिल ही जायेगा स्वर में स्वर केवल श्रद्धा मिले सभी से, मेरी श्रद्धा यह कहती है गुरुवर पुष्कर के प्रति श्रद्धा-भाव सहित बढ़ती रहती है - श्री नेमीचन्द जी पुगलिया श्रद्धामय गुरु 8 0000 00 0000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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