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________________ तिल-तिल जलकर इस जग को आलोक दिया है, श्रमण शक्ति के पुत्र ! अमर हैं आप लोक में । लोक सुधारक जनसुखकारक भवभयहारकउपाध्याय - चरणों में यह अक्षत चन्दन हो । उपाध्याय पुष्कर मुनिवर का अभिनन्दन हो ॥ हिन्दी राजस्थानी संस्कृत भाषा के कवि, उच्च कोटि के लेखक, उच्चकोटि के साधक । सम्प्रति मुनिवर धमणसंघ के उपाध्याय है, भारतीय विद्याओं के सश महामान्य ! है धन्य आज मेवाड आपसे, है प्रतिभा के धनी ! धन्य है आज लोक यह - सूझबूझ के धनी ! आपका निर्देशन पा, · नीर-क्षीर का किया विवेचन घवल हंस हे ! - विश्ववन्द्य निर्ग्रन्थ-पन्थ के पथिक ! स्थविरवर, स्थानकवासी जिन समाज अब है अशोक यह । Jain Education International मानसवासी ! सदा सत्य के ही अन्वेषक | सदा विजय हो, दया-धर्म के हैं उपदेशक ! ज्ञानी हैं पर लेशमात्र भी मान नहीं है, कहीं आपका कहो - आज सम्मान नहीं है ? जिनशासन के समुत्थान में हे विषपायी ! भूपेन्द्र मुनि (रजत शिष्य) उपासक । महावीर के भक्त भुला पायेंगे क्या ये, किये आपने हैं कितने विषपान नहीं हैं ? इसी तरह मुनिवर ! हमको आशीष दीजिए, त्याग आपका अणु-अणु को प्रतिबोधन देगा । सन्तकृपा से अति पावनतम यह तन-मन हो । उपाध्याय पुष्कर मुनिवर का अभिनन्दन हो ॥ प्रथम खण्ड : श्रद्धाचंन ******✦✦✦✦✦✦✦✦✦ For Private & Personal Use Only अभि १११ नन्दन हो महागुणी पुष्कर मुनि त्रिदश दिल को देव एक रदन को राज तू । रमा ईश अहमेव गज ईश को रमन तू । मुनिश्री महेन्द्रकुमार 'कमल' योग की अगम गम समन दमन धम, जिन मग अहर्निश सगन मगन है । पदन परन जह तारन तरन तह, करण-हरण एक, चरता लगन है । हटन हम नमन, छूट देवछिनले न करत खिन, जगत जगन है। ऐसे महामुनि गुनि दुनियो भनत सब, 'भूपन' नैनन निरिख्या आपने, बेनन गुरु मुख पुनि जग जनन से, श्रवण भिरन यह 'पुष्कर' पगन है ॥ वरस्या मेह । सुन्या गुण जेह ॥ O www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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