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________________ Ο O Jain Education International ११० श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ उपाध्याय पुष्कर मुनिवर का ज्योतिर्धर, अध्यात्मयोग के आराधक जो, भारतीय सन्तों में मुनिवर प्रमुख सन्त हैं । सरल हृदय, गुरुभक्त, विनय के सागर हैं जो, जिन संस्कृति-आगम ग्रन्थों के ज्ञानवन्त हैं। भक्ति, ज्ञान औ कर्मयोग का हुआ समन्वय, जिसमें वह साधना आपकी अहो । धन्य है । इसीलिए तो मिली सिद्धियाँ इस जीवन में, मुनिवर के सम प्रखर तपस्वी कौन अन्य है । अंगारों में सोने को गलना पड़ता है, तब जाकर कुन्दन का सचमुच रूप दमकता । अन्धकार के कण-कण को विदलित करके ही, तरुण सूर्य प्रातः अम्बर में सदा चमकता । जप-तप से ही सच्ची सिद्धि मिला करती है, संचित कर्मों का तप से ही होता है क्षय । उपकारक ही रही आपकी योग-साधना, मत्र्यलोक में प्राप्त कर लिया है यश-अक्षय । का सन्देश सुनाया, जिनवाणी - कल्याणी भक्तों के अन्तर्तम का तम हरण किया है । अशरणशरण ! अहो ! पुष्कर मुनिवर चरणों में सन्त " कमल" का अपरिहार्य शत शत वन्दन हो । उपाध्याय पुष्कर मुनिवर का अभिनन्दन हो । मत्त-मधुप सी मधुर और ओजस्वी वाणी सत्य, अचेतन में भी चेतनता लाती है । सदियों से सोये समाज में मुनि-सिंहों की, हुँकारें ही युग को जागृत कर जाती 1 सच्चरित्र ला देते हैं युग में परिवर्तन, श्रमणसंघ में सचमुच अनुशासन का बल है । महानाश की ज्वाला को जो शान्त कर सके, मुनिवर के मानस में उस करुणा का जल है । एकसूत्र में बांध दिया है जन-मानस को, धन्य हुई साहित्य साधना मिल मुनिवर से । वरदहस्त मिल गया जिसे वह धन्य हो गया, कितनों को निर्मुक्त कर दिया अपने कर से । खुली हुई हैं संस्थाएं लोकोपकारिणी, प्रगति पन्थ के राही क्या रुकते राहों में । कितनी निर्मलता है मुनिवर के भावों में, सागर-सा गर्जन होता उनकी आहों में । For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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