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________________ प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन १०१. ओजपूर्ण गम्भीर वाणी में श्रोता प्रभावित हो रहे थे । मेरी श्री देवेन्द्र मुनिजी शास्त्री द्वारा लिखित गुरुदेवश्री की जिज्ञासा पर स्नेहियों ने बतलाया कि आप राजस्थानकेसरी जीवनी को पढ़ने पर मुझे ज्ञात हुआ कि आपश्री विचारक स्थानकवासी सन्त प्रवर श्री पुष्कर मुनि जी महाराज हैं। हैं, चिन्तक हैं, लेखक हैं, कवि हैं, कथा-शिल्पी हैं, प्रसिद्ध ___ कुछ दिनों के पश्चात् इन सद्गुरुवर्य के निकट सम्पर्क वक्ता हैं, सफल संगठक हैं, सद्गुरु हैं, तप-जप-निरत सन्त में आने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। गुरुवर्य के प्रधान हैं तथा बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। क्षण-भर के उनके शिष्य प्रसिद्ध साहित्यमनीषी श्री देवेन्द्र मुनि जी शास्त्री सम्पर्क में आनेवालों को इस बात का स्पष्ट पता लग को, जो श्री पुष्कर मुनि-अभिनन्दन ग्रन्थ के सम्पादन जाता है कि आपश्री सहृदयता, नियमबद्धता, परदुःखकार्य में संलग्न थे तत्सम्बन्धी कार्य के लिए एक कातरता, सरलता, सरसता, स्नेह-सौजन्यता, मातृवत् लिपिक की आवश्यकता हुई तो उस कार्य के लिए वात्सल्य आदि सद्गुणों के आगार हैं। मैं उनकी सेवा में उपस्थित हुआ। मैं प्रतिदिन अभि- ऐसे आदर्श सद्गुरुवर्य का अभिनन्दन करके जैन नन्दनग्रन्थ के लेखन कार्य हेतु उनके पास पहुँच जाता; समाज उनके प्रति अपने कर्तव्य का पालन कर रहा है। मुनिश्री जी लिखवाते। लिखते समय मुझे ऐसा अनुभव गुरुवर्य के प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धार्चना समर्पित करते हुआ कि वस्तुतः गुरुदेव श्री का व्यक्तित्व और कृतित्व हुए, सद्गुरुवर्य श्री पुष्कर मुनि जी महाराज स्वस्थ रहअद्भुत है । प्रतिदिन उनके दर्शन एवं निकट सम्पर्क में भी कर हम सब का पथ-प्रदर्शन करने हेतु "जीवेत शरदआने का सुअवसर प्राप्त होता रहता जिससे मैं उनकी श्शतम्"-यही मेरी हार्दिक मंगल कामना है। आध्यात्मिक साधना के अलौकिक चमत्कार से प्रभावित जैन जगत के हे श्रमण सन्त, होता रहता । और उनके ऊर्जस्वल व्यक्तित्व एवं वर्चस्वी चरणों में अपित श्रद्धा सुमन । कृतित्व से परिचित हुआ, जिस व्यक्तित्व में सुन्दर सुनील वक्ता, लेखक, पुष्कर मुनि को, समुद्र का गांभीर्य है, देदीप्यमान दिवाकर का तेज है, राका शत सहन वन्दन-अभिनन्दन । निशाकर की सौम्यता है; उत्तुंग हिमाद्रि की अचलता है, पवन का वेग है, धरित्री की क्षमाशीलता है, तथा ध्र व नक्षत्र का स्थैर्य है । जन-मन-कल्याण के लिए सतत प्रयत्न शील इस सन्तवर्य के मन की निर्मलता व मोहकता, हृदय जीवन्त और प्राणवन्त व्यक्तित्व के धनी की सरसता एवं विशालता, बुद्धि की विचक्षणता तथा रतनलाल मोदी व्यवहार की स्नेह-सौजन्यता से में अत्यधिक प्रभावित हुआ। महापुरुष का वर्णन करते हुए अंग्रेजी भाषा के उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी एक जीवन्त और प्राण वन्त व्यक्ति हैं और वे श्रमण संघ के उपाध्याय हैं, इस पद सुविख्यात लेखक कारलाइल ने यह कहा है कि अगर आप महापुरुष की महानता को आंकना चाहते हैं तो यह जान की गरिमा और महिमा कम नहीं है । बाह्य वेष-भूषा से लीजिए कि वह अपने से छोटे व्यक्तियों के साथ किस वे एक जैन सन्त हैं, किन्तु हृदय की निर्मलता, मन की विराट्ता, स्नेह की सरसता और संवेदन-क्षमता के कारण प्रकार का व्यवहार करता है । इस कसौटी पर कसके देखें वे सभी सम्प्रदाय, पंथ के मानने वालों के आदरणीय हैं, तो सद्गुरुवर्य के हृदयरूपी हिमालय से अपने शिष्यों एवं भक्तों के लिए वात्सल्य की मंगा और करुणा की यमुना उपास्य हैं। मैंने जब भी उन्हें देखा है, तब जागृत और सदा बहती रहती है। उनकी बाह्य आकृति जितनी सुन्दर, प्रसन्न देखा है। शैथिल्य के कहीं भी दर्शन नहीं हुए। नयनाभिराम और आकर्षक है उतना ही उनका मन गंगा प्रमाद और अवसाद उनमें और उनके सन्निकट नहीं है। की तरह निर्मल, स्फटिक की तरह स्वच्छ, संगीत की तरह वे परिस्थिति के दास नहीं किन्तु परिस्थिति उनकी दास है। दृढ़ आस्था के बल पर वे परिस्थिति को चुनौती देते मधुर एवं ऊषा की तरह मोहक है। हैं । वे परम्परा से उच्छिन्न नहीं है किन्तु समुचित नवीनता आधि-व्याधि-उपाधि से सन्त्रस्त लागा का सुख- को ग्रहण करने में भी उन्हें बाधा नहीं है। वे समाज का शांति-समाधान प्रदान करनेवाली उनको, ध्यान एवं नेतृत्व करने में सक्षम है इसीलिए वे अभिनन्दनीय हैं, जपसाधना से प्राप्त विशेष शक्ति का, एकाध बार स्वयं अभिवन्दनीय हैं। उनके अपूर्व आत्मतेज से मुझे सदा लाभ अनुभव करने का मुझे सुअवसर प्राप्त हुआ तो मेरे आश्चर्य हुआ है, इसलिए मैं अपनी हार्दिक श्रद्धा समर्पित करता की सीमा न रही और मेरी श्रद्धा की अभिवृद्धि हुई। मैने हआ गौरव अनुभव करता हूँ। देखा तपःशक्ति से आकृष्ट होकर श्रद्धालु जनता प्रवचनभवन की दिशा में मधुमक्खियों की तरह दौड़ पड़ती हैं। 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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