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________________ १०० श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ ++ ++++++ + + + + +++ + +++++ अनुभव हुआ कि बिजली का कोई तेज झटका लगा है। किन्तु ऐसे योगियों का सान्निध्य स्वयं ही संतप्त हृदय को धीरे-धीरे कम्पन कम हुआ, सुखद अनुभूति होने लगी। मन शान्ति प्रदान करने में सक्षम होता है, जैसेकी आकुलता, अपने आप शान्त होने लगी । स्वयं को बहुत तीव्रातपोपहत-पान्थ-जनान् निदाघे । ही हलका, निर्भय, शान्त महसूस करने लगा । यह एक प्रोणाति पद्मसरसः सरसोऽनिलोऽपि ॥ अद्भुत परिवर्तन था, जो मैंने जीवन में पहली बार -धूप के समय प्रचण्ड ताप से व्याकुल प्राणी को अनुभव किया । तर्क हार गई, श्रद्धा जीत गई। पद्मसरोवर की शीतल हवा शान्ति और तृप्ति प्रदान ____ मैं यह मानता हूँ कि आत्मा अक्षयशक्ति का पुज है, करती है। प्रत्येक आत्मा अपनी साधना-उपासना के बल पर यह गुरुदेव श्री के प्रति जन-समाज की जो अगाध भक्ति, अद्भुत शक्ति प्राप्त कर सकता है । सोया हुआ दिव्य बल आस्था और श्रद्धा उमड़ रही है उसका यही कारण है कि जागृत कर सकता है, पर बातों के बल से नहीं, साधना के वे एक निस्पृह योगी, शान्त तपस्वी, करुणाशील सन्त और बल पर, उपासना के बल पर, निस्पृहता और निर्द्वन्द्वता परमार्थ-सेवी महात्मा है । उनकी दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के के बल पर । गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी महाराज साहब पावन-प्रसंग पर हम अत्यन्त श्रद्धापूर्वक उनका अभिनन्दनमें मैंने जिस विशिष्ट अध्यात्म-चेतना का दर्शन किया है, वन्दन करते हुए उनकी निरामय दीर्घ जीवन की कामना वह उन्होंने दीर्घकालीन-साधना के बल पर ही प्राप्त की करते हैं। है। वे इस शक्ति का, ऊर्ध्व-चेतना का प्रयोग नहीं करते, पथ-प्रदर्शक श्रमण सन्त ० एस० श्रीकण्ठमूर्ति, (वेंगलूर) भारत धर्म-प्रधान देश है। यहाँ पर अनादिकाल से कि उसमें आचार्य या गुरु का स्थान ऊँचा और महत्त्वपूर्ण वैदिक, जैन, बौद्ध आदि विविध धर्मों का प्रचार एवं प्रसार है। 'मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, के पश्चात् आचार्यवेवो अबाधगति से चलता आ रहा है। इत महान देश के भव' की उक्ति इसका समर्थन करती है। अज्ञान अन्धकार विभिन्न भागों के जन-समुदाय की, धर्म, भाषा, आचार- में पथ-भ्रष्ट हो भटकनेवाले निर्बल एवं दुर्बल जन को विचार, आहार-वस्त्र रीति-नीति की विविधता एवं सही पथ-प्रदर्शन तथा प्रकाश का दर्शन करानेवाले ये ही विभिन्नता के बीच में धर्म के एकान्त-सूत्र की अन्तर्वाहिनी आचार्य, भिक्षु, श्रमण, साधु-सन्त हैं। इसी बात का स्पष्टीने, अटक से कटक तक तथा काश्मीर से कन्याकुमारी तक करण और मण्डन करते हुए कबीर ने कहा है-"गुरु बिन फैले हुए इस विशाल भूभाग को एक बना रखा है। विश्व कौन बतावे बाट ?" सांसारिक माया-मोह में फंसे हुए लोगों में कई महान् साम्राज्य हुए जो कालान्तर में काल-कवलित की आँखें खोलकर संसार की झंझट से हमेशा के लिए मुक्त हो गये, परन्तु अतीत काल से आधुनिक काल तक भारत हो जाने का मार्ग बतलानेवाले इन सन्तों के कारण ही देश ने अपने अस्तित्व को अक्षुण्ण बना रखा है । इसीलिए भारत देश धर्मानुरागी और धर्मप्रेमी रहा है । स्थानकवासी तो कवि इकबाल ने गाया है श्रमणसंधीय उपाध्याय गुरुवर्य राजस्थान केसरी अध्यात्मयूनानो मिस्रो रूमां, सब मिट गये जहाँ से। योगी प्रसिद्ध वक्ता श्री पुष्करमुनि जी इसी परम्परा के अब भी मगर है बाकी, नामो-निशां हमारा ॥ एक सन्त रत्न हैं। सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा ॥ जहाँ तक मुझे स्मरण है दिनांक १७ - ६ - १९७७ और देश के इस अक्षुण्ण अस्तित्व का आधार है यहाँ को प्रतिदिन की तरह मांगीलाल गोटावत हिन्दी कॉलेज के जन-मानस में निहित धर्मभावना और धर्मानुराग। में, जहाँ का मैं एक प्राध्यापक रहा, पहुँचा तो भारी चहल जन-सामान्य में इस धार्मिक चेतना को बनाये रखकर पहल देखी । कम्पाउण्ड वाहनों से भरा हुआ था । सारा उसकी वृद्धि करते रहने का श्रेय देश के विभिन्न धर्म एवं हॉल स्त्री-पुरुषों से खचाखच भरा हुआ था। रंगमंच पर सम्प्रदायों के गुरु, आचार्य, मुनि, साधु-सन्तों को रहा है। चार-पांच श्वेतवस्त्रधारी मुखवस्त्रिकायुक्त मुनियों के बीच भारत मात्र के ही नहीं, अपितु विश्वभर के किसी भी जरा उन्नत आसन पर बैठे हुए एक भव्य सन्त का प्रवचन धर्म के इतिहास का अवलोकन करें तो यह स्पष्ट होता है चल रहा था। उनके आकर्षक एवं तेजपूर्ण व्यक्तित्व तथा 0 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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