SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .६६ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ सद्गुणों के पुञ्ज Inule 0 एल० बी० शाह, बेंगलोर श्रेष्ठ समुन्नत ग्रीवा, उन्नत देदीप्यमान ललाट, तेजस्वी होते नहीं देखा। गहन से गहन समस्याओं का भी वे सहज नयन युगल, विशाल वक्ष, आजानुबाहें जिनमें अपूर्व सामर्थ्य समाधान कर देते हैं, जिसे देखकर अनुभवी और विचारक है ऐसा प्रभावशाली सौम्य व्यक्तित्व जिसे उपाध्याय पूष्कर दंग रह जाते हैं। आप महान साधक हैं। आपकी साधना मुनिजी के नाम से लोग जानते हैं। उनके तेजस्वी व्यक्तित्व का दिव्य दीप निरन्तर जलता रहता है। गुरुदेव श्री के के कारण सामान्य जन उनके सम्मुख जाने का साहस नहीं प्रोस्टेट ग्रन्थि का आपरेशन सेंट मार्था अस्पताल में डाक्टर करते, किन्तु महान् आश्चर्य है उनके सन्निकट जाने पर लाजी जोसेफ के द्वारा सम्पन्न हुआ। मैं वहाँ गुरुदेव श्री मातृतुल्य वात्सल्य पाकर उठने का दिल भी न होता । बेंग- की निरन्तर सेवा में था। मैंने देखा कि आपरेशन की लोर वर्षावास में मैंने ऐसा ही अनुभव किया है। भयंकर वेदना में भी साधना की भव्य मुस्कराहट उनके जिस दिन कर्नाटक की राजधानी बेंगलोर में गुरुदेव ने चेहरे पर अठखेलियाँ कर रही थी। अस्पताल में भी रात्रि प्रवेश किया उसी दिन मैं उनकी सेवा में पहुंचा । यों तो के शान्त वातावरण में वे ध्यान में तल्लीन होते थे मैंने मेरा और उनका सम्बन्ध गुरु-शिष्य का बहुत ही पुराना निवेदन किया-गुरुदेव ! आराम करो। किन्तु गरुदेव को है। यदि यह कह दूं कि उनका तथा उनकी परम्परा का साधना में ऐसा आनन्द आता कि वे वेदना को भी भूल सम्बन्ध सात पीढ़ी से है तो यह सत्य के अधिक सन्निकट जाते । मैंने यह भी देखा कि वे जब साधना में विराज हैं; किन्तु कर्नाटक में व्यापार होने के कारण राजस्थान जाते हैं तब बाह्य व्याधियाँ उन्हें कोई भी परेशान नहीं में कम रहने से उनकी सेवा का जो लाभ मिलना चाहिए करती। वे अपने अन्य बाह्य कार्यों को छोड़ सकते हैं किन्तु था वह नहीं मिल पाया। यों गुरुदेव श्री के मैंने अनेकों साधना को छोड़ना उन्हें इष्ट नहीं है। आपरेशन के समय बार दर्शन किये, किन्तु बैंगलोर पधारने पर मैंने यह दृढ़ परिस्थितिवश वे बाह्य रूप से ध्यान में नहीं बैठ सकते थे, संकल्प कर लिया कि जब तक गुरुदेव श्री बेंगलोर में रहेंगे किन्तु आन्तरिक रूप से उनकी साधना सतत चलती रहती तब तक मैं देह की छाया की तरह उनकी सेवा में रहूँगा। थी। मुझे हर्ष है मेरा दृढ़ संकल्प पूर्ण हुआ। अनेकों बार ऐसी छह माह तक बहुत ही सन्निकट रहकर मैंने अनुभव परिस्थितियाँ भी आयीं जिससे मुझे सेवा से वंचित होना किया कि गुरुदेव श्री के सम्बन्ध में जैसा मैंने पहले सुना पड़ता, पर गुरुदेव श्री की असीम कृपा से मुझे पूर्ण सफ- था उससे कई गुने वे महान् हैं, वे गुणों के भण्डार हैं। लता प्राप्त हुई। श्रमणसंघ की ज्योति हैं। उनका आचार निर्मल है, छह महीने तक निरन्तर सेवा में रहकर मुझे अपार विचार पवित्र है और हृदय बहुत ही 'विशुद्ध है। मेरी एक आनन्द हुआ। जो आनन्द मुझे जीवन भर न मिला वह जबान तो क्या शेष नाग की हजार जबान भी उनके गुणों आनन्द गुरुदेव श्री के चरणों में मिला । मैंने अनुभव किया का वर्णन नहीं कर सकती। मैं अपार श्रद्धा के साथ गुरुदेव कि गुरुदेव श्री बहुत ही पवित्र आत्मा है। मुझे जोश बहुत श्री की पूर्ण स्वस्थता की और दीर्घायु की मंगल कामना ही जल्दी आता है और बोलने की आदत भी विशेष है। करता हैं । आपकी वरद छत्र-छाया में मेरा व मेरे परिवार तथापि गुरुदेव श्री ने मेरे पर कभी रोष नहीं किया। का धार्मिक दृष्टि से सदा विकास होता रहे यही मंगल समय-समय पर वे मुझे 'हित शिक्षा देते रहे हैं। वे स्वयं कामना है। बहुत कम बोलते हैं, मितभाषी हैं, मैंने कभी उन्हें उग्र .0 ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy