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________________ प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन ९५ . ०० श्री के परम भक्तों में से थे। गुरुदेव श्री की प्रारम्भ से ही हिलोरें लेता हुआ दिखायी देता है और शीतल पवन हमारे परिवार पर असीम कृपा रही है। गुरु-कृपा से ही थिरकता हुआ आता है। मैं जब भी गुरु-चरणों में बैठा हमारा प्रत्येक दृष्टि से विकास हुआ । गुरुदेव श्री ने हमारी तब मुझे अपूर्व आनन्द की प्राप्ति हुई। दिल करता है जन्मभूमि पीपाड़ में तीन वर्षावास किये । और हमारे कि सदा उनके चरणों में बैठे, पर संसार के मोह-मायाजाल व्यवसाय केन्द्र बम्बई में भी चार चातुर्मास किये । इन में फंसे हुए व्यक्तियों का इतना भाग्य कहाँ ? जो गुरुचातुर्मासों में हमें गुरुदेव श्री की सेवा का सौभाग्य मिलता चरणों की निरन्तर सेवा का लाभ ले सके। गुरुदेव श्री रहा । गुरुदेव श्री अध्यात्मयोगी हैं। उनकी आध्यात्मिक जैन समाज की एक विशिष्ट विभूति है । उनके जीवन का ज्ञान और ध्यान की साधना उत्कृष्ट है। वस्तुतः सन्त प्रत्येक कोना हीरे की तरह चमकदार है । मैं गुरुदेव श्री के जीवन की यही सबसे बड़ी उपलब्धि है। संसार की विविध चरणों में अपनी अनन्त श्रद्धा के सुमन समर्पित करता हूँ। व्याधियों से सन्त्रस्त व्यक्ति जब इन सन्त प्रवरों की सेवा और आशा करता हूँ कि गुरुदेव श्री चिरकाल तक पूर्ण में पहुंचते हैं, तो उन्हें वैसा ही आनन्द मिलता है जैसा स्वस्थ रहकर हमारा नेतृत्व करते रहें। उनकी पवित्र भयंकर गर्मी में झुलसते हुए व्यक्तियों को बम्बई में सन्ध्या छत्र-छाया में हमारा धार्मिक व आध्यात्मिक विकास होता के समय चौपाटी पर मिलता है। जहाँ अनन्त सागर रहे। तीर्थराज पुष्कर श्रीमती सुशीला उगमराज मेहता, बेंगलोर उपाध्याय पुष्कर मुनि जी महाराज का स्थानकवासी और युवतियाँ ही अधिक थी। और उनमें एक तरह से समाज के मुनिप्रवरों में एक अनूठा स्थान है। आपके तप, प्रतिस्पर्धा लग रही थी कि हम आगे बढ़ें साधना में । त्याग व आध्यात्मिक तेज की महिमा और गरिमा अनूठी गुरुदेव श्री के मांगलिक में अपूर्व चमत्कार दिखायी है। आप जहाँ पधारते हैं वहाँ पर एक मेला-सा लग जाता दिया । बेंगलोर जैसी नगरी में जहां लोगों को तनिक मात्र है । क्योंकि आपश्री पुष्कर तीर्थराज जो ठहरे । आपश्री के भी समय नहीं मिलता, वहाँ हजारों की संख्या में लोग सन्निकट पहुँचते ही भव-भव के पाप व सन्ताप मिट जाते मध्याह्न में बारह बजे और रात्रि को नौ बजे मांगलिक हैं । और अद्भुत आनन्द का अनुभव होता है। सुनने के लिए पहुंचते थे। गुरुदेव श्री की एक महान् विशेआज, बीसवीं सदी में भौतिकवाद की आँधी आ रही षता मैंने यह देखी कि वे बड़े व्यक्तियों से ही नहीं, छोटे है। उस आँधी में आज का मानव खिंचा चला जा रहा है व्यक्तियों से भी प्रेम से वार्तालाप करते हैं। उनके दरबार उसे धार्मिक साधना से नफरत है, आध्यात्मिक साधना के में छोटे और बड़े का कोई भेद नहीं। यही कारण है कि प्रति कोई लगाव नहीं । पाश्चात्य सभ्यता में पला-पुसा सभी आपश्री को चाहते हैं। सभी के अन्तर्मानस में आपके होने के कारण वह धर्म को अफीम की गोली समझता है। प्रति अपूर्व निष्ठा है। पर, मुझे आश्चर्य हुआ कि ऐसे युवक जिन्होंने उपाश्रय का भगवान महावीर ने कहा-एक क्षण का भी प्रमाद मुंह नहीं देखा, जो कभी सन्तों के सम्पर्क में नहीं आये, नहीं करना चाहिए । मैंने देखा भगवान का यह सन्देश पूज्य वे भी पूज्य गुरुदेव श्री के बेंगलोर वर्षावास में गुरुदेव श्री गुरुदेव श्री के जीवन में साकार रूप से उतरा हुआ है। वे के आध्यात्मिक तेज से प्रभावित होकर व्यसनों से मुक्त वृद्ध अवस्था में भी नियमित समय पर जप करते हैं, नियहुए। उनके जीवन में धार्मिक भावनाएँ अंगड़ाइयाँ लेने मित समय पर प्रवचन करते हैं, लोगों से स्नेह से वार्तालगीं। वे साधना के अभिमुख हुए। मैं इसे प्रस्तुत वर्षावास लाप भी करते हैं और लेखन, पठन आदि में भी लगे रहते की बहुत बड़ी उपलब्धि समझती हूँ। हैं । ज्ञान और ध्यान ये दोनों उन्हें प्रिय हैं। इस वर्षावास में गुरुदेव श्री की बिना प्रेरणा के भी पूज्य गुरुदेव श्री के दर्शन से मेरे तथा मेरे पति के तपस्या की बाढ़ आ गयी। जिन व्यक्तियों ने कभी भी जीवन में धर्म के प्रति एक लगन पैदा हुई। हमारे जीवन एक उपवास नहीं किया, उन व्यक्तियों ने भी हंसते और में एक नया मोड़ आया। ऐसे दिव्यपुरुष के चरणों में मैं मुस्कराते हुए मासखमण किये। और उससे भी अधिक अपनी अनन्त श्रद्धा समर्पित करती हूँ। तप की साधना की। इस साधना में वृद्धों की अपेक्षा युवक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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