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________________ प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन १ . +++++..... महान् हैं शब्दों के बाट उनको तोलने में सदा असमर्थ रहे गुणों का अभिनन्दन है। गुरुदेव श्री अपने कर्तृत्व से हैं । उनका जीवन सद्गुणों का खिला हुआ बगीचा है महान बने हैं। उन्होंने विकास की हर दिशा में यश प्राप्त जिसकी मधुर सौरभ भक्त-भंवरों को आनंदित करती किया है। इसलिए समाज उनका अभिनन्दन कर रही है। रही है। मैं गुरुदेव श्री के श्री चरणों में अत्यन्त विनय के साथ हमारे लिए यह गौरव की बात है कि हम गुरुदेव श्री अपने हृदय की असीम श्रद्धा समर्पित करता है। उनकी का विराटकाय अभिनन्दनग्रंथ निकाल कर उनका सार्व- कृपादृष्टि सदा बनी रहे जिससे हम विकास के पथ पर जनिक अभिनन्दन कर रहे हैं। गुरुदेव का यह उनके सद- निरन्तर बढते रहें। 00 बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री चम्पालाल जी कोठारी, बम्बई परम श्रद्धय सद्गरुवर्य श्री पुष्कर मुनि जी महाराज यों जोधपुर, अहमदाबाद और पूना वर्षावास में भी सेवा का व्यक्तित्व अत्यन्त प्रभावशाली है। उनका व्यवहार बहुत का अवसर प्राप्त होता रहा । मैंने देखा गुरुदेव श्री एक ही शालीन है। अपरिचित से अपरिचित व्यक्ति को भी विशिष्ट निर्भीक सन्त हैं। सत्यपथ पर निरन्तर बढ़ने वाले अनायास ही अपनी ओर आकृष्ट करने वाला है, जैनेतर हैं। भय और प्रभोलनों से कभी भी विचलित नहीं होने कुल में जन्म ग्रहण करके भी जैनधर्म को स्वीकार करके वाले हैं । बालकेश्वर-बंबई के वर्षावास में स्वार्थी तत्त्वों उसकी आराधना और प्रभावना में जिनका जीवन लगा ने गुरुदेव श्री का विरोध भी किया। मैं विरोध का प्रतिहुआ है उनके गुणों की गणना करना संभव नहीं है । वे वाद करना चाहता था। किन्तु गुरुदेव ने कहा-विरोध क्या हैं -- इस प्रश्न के स्थान पर वे क्या नहीं हैं-यह ज्योति के पूर्व होने वाला धुआ है, जो एकक्षण अपना अधिक उपयुक्त है । ये दया के सागर हैं, गुणों के आगर प्रभाव दिखाता है। पर वह चिरस्थायी नहीं होता। हैं, सदगुणों के उपासक हैं, महान् क्रांतिकारी हैं, समाज- जरा-सी हवा आयी नहीं तो वह नष्ट हो जाता है। मैंने सुधारक हैं, संगठन प्रेमी हैं, शिक्षा और स्वाध्याय की देखा, गुरुदेव श्री के आत्म-विश्वास ने अपना चमत्कार ज्योति प्रदीप्त करने वाले हैं, श्रमणसंघ के उपाध्याय हैं, दिखाया। विरोध करने वाले ही उनके श्री चरणों में गिर विराटं हृदय के धनी हैं, जप व ध्यान योगी हैं, प्रसिद्ध गये, गिरे ही नहीं, किन्तु गुरुदेव श्री के परम भक्तों में से वक्ता हैं, राजस्थान के शेर हैं, महान लेखक हैं, प्रसिद्ध हो गये । यह है गुरुदेव श्री की अपार निष्ठा और बहुमुखी कथाकार हैं, तेजस्वी कवि हैं, ओजस्वी वक्ता हैं, प्रबल प्रतिभा । प्रचारक हैं, महान घुमक्कड़ हैं, जिनके हृदय में जोश है, गुरुदेव श्री की महान विशेषता है कि वे अपने वाणी में ओज है, कदमों में दृढ़ता है। वे जिधर भी प्रवचनों में सैद्धान्तिक और तात्त्विक बातों का विश्लेषण पधारे अपनी चारित्रिक सौरभ से जन-मन को आकर्षित करते हैं। वे आग बुझाने वाले हैं, आग को लगाने वाले किया। नहीं। यही कारण है कि गुरुदेव श्री के प्रवचनों को सुनगुरुदेव श्री की हमारे परिवार पर सदा कृपा रही है। कर लोग वैमनस्य को भूल जाते हैं और स्नेह की सरसमेरे पूज्य पिता श्री हरकचन्द जी पूज्य गुरुदेव श्री के सरिता प्रवाहित हो जाती है । यही कारण है जहाँ भी परम भक्तों में से थे । और मेरी मातेश्वरी गुरुदेव श्री गुरुदेव श्री पधारे, वर्षावास किये वहाँ पर जनमानस में की मुख्य श्राविकाओं में से थीं। हमें विरासत में ही गुरु- स्नेह की अभिवृद्धि हुई, राग-द्वेष की कमी हुई। देव की सेवा का अवसर मिला है । कोठारी परिवार की मैं ज्योतिपुंज सद्गुरुदेव श्री का हार्दिक अभिनन्दन गुरुदेव श्री के प्रति गहरी निष्ठा रही है । मैं अपना परम करता हूँ। वे सदा स्वस्थ रहें, और दीर्घायु होकर जैन सौभाग्य समझता हूँ कि गुरुदेव श्री की सेवा का मुझे शासन की अत्यधिक प्रभावना करें और हमारे जैसे भक्तों अनेक बार अवसर प्राप्त हुआ । मेरी बिनम्र प्रार्थना को को आशीर्वाद प्रदान करते रहें जिससे हम धर्म को अपसन्मान देकर गुरुदेव श्री ने हमारी जन्मस्थली पीपाड़ में और नाते हुए अपने जीवन को ज्योतिर्मय बनावें। हमारे व्यवसाय केन्द्र बालकेश्वर-बंबई में वर्षावास किये । www.jainelibrary.org. Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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