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________________ TA O O. ० Jain Education International ६० श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ प्रेरणा के अक्षय पुंज श्री देवीलाल जी धोका उपाध्याय श्रद्धय सद्गुरुवर्य पुष्कर मुनि जी महाराज हमारे देश के एक महापुरुष हैं। उन्होंने देश में एक नई ज्योति जलायी है । नई आभा से जन-जन के मानस को आलोकित किया है । यदि हम उनके द्वारा बताये हुए रास्ते पर चलें तो अपने जीवन का निर्माण कर सकते हैं । किन्तु उस पर चलने के लिए महान् उत्साह और दृढता की आवश्यकता है। हम वह शक्ति प्राप्त करें जिससे दृढ़ता के साथ उधर बढ़ सकें । जानता हूँ जब वे गुरुदेवश्री के दर्शन पर आपश्री का पूर्वजों के प्रबल पूज्य गुरुदेवश्री को मैं तभी से गृहस्थाश्रम में थे । मैंने अनेकों बार किये, उनकी सेवा की। हमारे प्रान्त महान् उपकार है । आपने तथा आपके प्रयास से ही हम धर्म के अभिमुख हो सके । गुरुदेव श्री ने अपार कष्ट सहन करके भी हम लोगों को प्रेरणा देने हेतु इधर पधारते रहे हैं और इस प्रान्त में समय-समय पर वर्षावास भी किये हैं । वस्तुतः आप प्रेरणा के अजस्र स्रोत हैं । मैं लेखक नहीं, किन्तु गुरुदेव श्री का अपने आपको परम भक्त मानता हूँ। और मैं समझता हूँ कि भक्ति में जो शक्ति है वह भगवान के हृदय को भी पिघला सकती है । पूज्य गुरुदेव महान् हैं। उनके गुणों के सम्बन्ध में जितना भी उत्कीर्तन किया जाय उतना ही कम है। क्या रत्नाकर के रत्नों का पार आ सकता है ? नहीं, वैसे ही सद्गुरुदेव के गुणों का पार नहीं है। मैं उनके श्री चरणों में भावपूर्ण वन्दन कर अपनी असीम श्रद्धा के सुमन समपित करता हूँ । * सद्गुणों का खिला हुआ बगीचा 0 श्री डालचन्द परमार अध्यक्ष, श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय, उदयपुर गुरुदेव महास्थविर ताराचन्दजी महाराज की पुण्यस्मृति में पदराड़ा में श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय की संस्थापना हुई। पिताश्री के पुण्य प्रताप से मुझे ग्रंथालय का अध्यक्ष पद दिया गया। तब से आज तक में सेवा कर रहा हूँ । मुझे यह लिखते हुए आल्हाद हैं कि स्वल्प समय में ही पूज्य गुरुदेव श्री की अपार कृपा से श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय ने अत्यधिक विकास किया है। उसके दिव्य भव्य और मौलिक प्रकाशनों ने जनता जनार्दन का हार्दिक आदर प्राप्त किया है । श्रद्धेय गुरुदेव के निकट सम्पर्क में मैं रहा हूँ। मुझे ऐसा अनुभव हुआ है कि गरुदेव की पवित्र छत्र छाया में आधि-व्याधि और उपाधि से सन्त्रस्त कोई भी व्यक्ति पहुँचता है उसे अपार आनन्द की अनुभूति होती है। वे इतने परम श्रद्धेय सद्गुरुवर्य को मैं तभी से जानता हूँ जब मैं छोटा बालक था । मेरे पूज्य पिताश्री नाथूलाल जी गुरुदेव श्री के परम भक्तों में से थे। एक श्रावक में जिन सद्गुणों की आवश्यकता हैं वे सारे गुण पिता जी में थे। पिता श्री मेवाड प्रान्त के पूज्य श्री अमरसिंह जी महाराज के सम्प्रदाय के प्रमुख श्रावकों में से थे। वे बहुत ही विवेकशील तथा धर्मनिष्ठ थे। उन्होंने सैकड़ों व्यक्तियों में गुरु भक्ति तथा धर्मप्रेम जागृत किया था। पिताश्री के साथ मैं भी गुरुदेवश्री की सेवा में जाता रहा। श्रद्धेय गुरुदेव का सन् १९६६ में पदराडा वर्षावास हुआ जबकि उस वर्ष बड़े-बड़े संघ वर्षावास के लिए लालायित थे, किन्तु गुरुदेव ने पिता श्री की हार्दिक भावना देखकर उसी नन्हें से गाँव में चातुर्मास किया और उसी चातुर्मास में बड़े 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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