SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कदम-कदम पर पदम खिले २७१ . है जिस दिन यह संस्था शतशाखी के रूप में विकसित होकर दक्षिण भारत के लिए वरदान के रूप में सिद्ध होगी। गुरुदेवश्री ने प्रस्तुत संस्था की संस्थापना कर दक्षिण भारतीयों के लिए विकास का पथ प्रशस्त कर दिया है। पूज्य गुरुदेवश्री के उपदेश से प्रभावित होकर 'शंकर नेत्र चिकित्सालय' (मद्रास) के लिए और मद्रास विश्वविद्यालय में 'जैन इण्डेमेन्ट' के लिए 'बापा लाल कम्पनी' ने लाखों का दान देकर अपने उदात्त हृदय का परिचय दिया। इस वर्षावास में केरल की राज्यपाल ज्योति बहिन वेंकटाचरम् ने तथा मद्रास के राज्यपाल श्री प्रभुदास पटवारी, एवं सुप्रसिद्ध गांधीवादी वयोवृद्ध नेता रविशंकर महाराज, राजसभा दिल्ली के उपाध्यक्ष रामनिवासजी मिर्धा, डा. एस. एस. बद्रीनाथ, डॉ. पी. एस. देवदास, सत्यनारायणजी गोयनका, प्रभृति अनेक शासन के उच्चपदाधिकारी, कार्यकर्ता व मूर्धन्य मनीषियों ने सद्गुरुवर्य से मिलकर सत्संग का ही लाभ प्राप्त नहीं किया अपितु विविध विषयों पर विचार चर्चाएं भी की। उन्हें अनुभव हुआ कि गुरुदेवश्री धर्मदर्शन के गम्भीर ज्ञाता हैं। आन्ध्र प्रान्त के भावुक-भक्तगणों के अन्तर्मानस में जब श्रद्धेय सद्गुरुवर्य राजस्थान में थे तभी से ये विचार लहरियाँ तरंगित हो रही थीं कि कब गुरुदेवश्री आन्ध्र में पधारेंगे और कब हमें जिनवाणी के अमृत रस का पान करायेंगे। सुप्रसिद्ध उद्योगपति रतनचन्द जी रांका (रांका केबल्स प्राइवेट लिमिटेड कडपा) तिरुपति, नेयाल, कर्नूल, हैदराबाद-सिकन्दराबाद प्रभूति आन्ध्र के प्रमुख संघों के व्यक्ति अनेक बार शिष्टमण्डल लेकर उपस्थित हुए। उनकी प्रार्थनाएं भी ठुकराई नहीं जा सकती थीं । सद्गुरुदेवश्री मद्रास के उपनगरों को पावन करते हुए आन्ध्र में पधारे। । तिरुपति आन्ध्र प्रान्त का ही नहीं अपितु भारत का प्रमुख आकर्षण केन्द्र बना हुआ है। जहां पर देशविदेश के प्रतिदिन हजारों व्यक्ति पहुंचते हैं और अपने श्रद्धा के सुमन समर्पित कर अपने आपको धन्य अनुभव करते हैं। मन्दिर के अधिकृत-अधिकारियों की प्रार्थना को संलक्ष्य में रखकर गुरुदेवश्री वहां पर पधारे। ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि से उस स्थान का अवलोकन किया जिससे यह परिज्ञात हुआ कि इस स्थान का सम्बन्ध किसी न किसी दिन जैन संस्कृति के साथ अवश्य ही रहा है। ऐसे अनेक चिह्न हैं जो जैन संस्कृति को आज भी याद दिलाते हैं। श्रद्धेय सद्गुरुवर्य के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ 'श्रावकधर्म-दर्शन' का विमोचन समारोह भी हुआ। गुरुदेवश्री आन्ध्र में ऐसे अनेक स्थलों पर पधारे जहाँ पर जैन श्रमण प्रथम बार पहुंचे। जैन श्रमणों को अपने यहाँ पर देखकर वहाँ के लोग फूले नहीं समाये । हजारों व्यक्तियों ने नमस्कार महामन्त्र स्मरण किया और सैकड़ों व्यक्तियों ने मांस-मदिरा और अन्य व्यसनों का त्याग कर सात्त्विक जीवन जीने का दृढ़ संकल्प किया। श्रद्धेय सद्गुरुवर्यश्री वृद्धावस्था में भी युवकों की तरह अपने मुस्तैदी कदम आगे बढ़ाते हुए आन्ध्र की राजधानी हैदराबाद पधारे हैं जहाँ पर महाराष्ट्र से विहार करते हुए आचार्य सम्राट महामहिम श्री आनन्द ऋषिजी भी पधारे। उनसे श्रमण संघ सम्बन्धी विविध विषयों पर विचार चर्चाएं भी हई। इस प्रकार पूज्य गुरुदेवधी के कदमकदम पर पदम खिलते रहे हैं । *** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy