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________________ मुनिश्री ने स्वयं गायत्री मन्त्र सुनाते हुए कहा यह भी अद्भुत मन्त्र है। आप निष्ठा के साथ इसका जप कीजिए । मैंने अपनी रुद्राक्ष की माला मुनिश्री के हाथ में देते हुए कहा यह माला शुद्ध है या नहीं । मुनिश्री ने माला को अच्छी तरह से देखकर कहा कि यह शुद्ध है, और उन्होंने माला किस तरह से फेरनी चाहिए जप की विधि पर गहराई से विश्लेषण किया । मैंने निवेदन किया- जैसे कबीर को नाद सुनायी पड़ता था, अमृत रस पीने को मिलता था, मीरा को श्रीकृष्ण की मुरली की स्वरलहरियाँ सुनायी पड़ती थीं, उन्हें श्रीकृष्ण के दर्शन होते थे, संक्षेप में अन्य सन्तों ने भी अपनी बानियों कुछ दिव्य अनुभव व्यक्त किये हैं वैसे क्या साधना के अनुभव आपको हुए हैं ? में मैंने पुनः निवेदन किया, यदि यह गोप्य न हो तो अवश्य ही बताइये जिससे हमारी श्रद्धा भी साधना पर हो सके । मेरे स्नेही साथी यह संवाद दत्तचित्त होकर सुन रहे थे और मुनिश्री जी के मन्त्रशास्त्र सम्बन्धी ज्ञान पर वे मुग्ध थे और उन्होंने मुझसे कहा और भी प्रश्न कीजिए। पण्डित दलसुख भाई मालवणिया ने कहा- महाराजश्री को मैं बहुत दिनों से जानता हूँ । किन्तु आज जो महाराज श्री से परिचय मुझे मिला वह कभी नहीं मिला । स्नेही साथियों के अत्याग्रह पर मैंने मुनिश्री से पूछा आध्यात्मिक चिकित्सा पद्धति बहुत ही लोकोपकारी है । आपके साधना के अनुभव क्या हैं ? मुनिश्री ने कहा, मेरी प्रस्तुत चिकित्सा पद्धति आधुनिक मुनिश्री ने कहा- साधना के अनुभव से क्या तात्पर्य साइकियाट्री या मानसिक चिकित्सा पद्धति से पृथक् है, यह है ? जरा स्पष्ट करें । आध्यात्मिक है । मैं स्वयं के लिए साधना करता हूँ और ध्यान व जप के शुभ परमाणुओं से दूसरों को सहज रूप से लाभ हो जाता है । आप स्वयं भी अनुभव कर देख सकते हैं । मैं इस पर अपने मुँह से अधिक बताना उचित नहीं समझता। मुझे यह जो कुछ पद्धति मिली है उसका मूल ध्यान धारणा ही है । मुनिश्री ने कहा, आप सभी अधिकारी व्यक्ति हैं, प्रतापपूर्ण प्रतिभा के धनी है, अतः मुझे बताने में संकोच नहीं है। जैनश्रमण बनने पर भी प्रारम्भ में मुझे जपसाधना के प्रति कोई आकर्षण नहीं था, यद्यपि मेरे गुरुदेव रात-दिन में आठ-आठ दस-दस घण्टे जप साधना करते थे । मैं उसे निरर्थक समझता था और स्वाध्याय में ही लगा रहा था । एक दिन गुरुदेव के आदेश से मैं जप करने के लिए बैठा, मन में अनेक विचार उत्पन्न हो रहे थे, इतने में मुझे एक दिव्य और अलौकिक प्रकाश के दर्शन हुए और कानों में ये शब्द सुनायी दिये कि साधना करता हुआ चला जा, तेरे मन की सारी परेशानियाँ समाप्त हो जायेंगीं । और तुझे वास्तविक आनन्द की उपलब्धि होगी। तब से मुझे जप साधना के प्रति रुचि जागृत हुई और मुझे अत्यधिक आनन्द अनुभव होता है। मैं भोजन छोड़ सकता हूँ किन्तु जप- साधना नहीं छोड़ सकता । आज मेरी यह स्थिति प्रथम खण्ड श्रद्धाचंन Jain Education International ७५ है कि नियमित समय पर जप साधना के लिए न बैठूं तो मानसिक उद्विग्नता का अनुभव होता है। उसके पश्चात् विचार चर्चा का विषय परिवर्तित हुआ मुनिश्री मधुर मुस्कान बिखेरते हुए बोले- हाँ, मेरे भी कि विद्वान् व सन्तों का समाज एवं राष्ट्र के लिए क्या कुछ अनुभव हैं । कर्तव्य है ? विचार चर्चा के दौरान में मैंने कहा, मुनिश्री जी, आप जैसे सन्त लोकहित का कार्य कर रहे हैं, यह श्रेष्ठ बात है । किन्तु भारत में अत्यधिक गरीबी है, दरिद्रता का साम्राज्य है । भारतवासियों को कब सुख और समृद्धि प्राप्त होगी ? संकटकालीन स्थिति ने तो सभी का मुँह बन्द कर दिया है और कलम पर प्रतिबन्ध लगा दिया है । मैंने कहा, क्या साधना के चमत्कार भी कभी हुए हैं ? मुनिश्री ने कहा, साधक चमत्कार के लिए साधना नहीं करता, और न मुझे चमत्कार दिखाने में ही रुचि है । मैं आत्म-शान्ति के लिए साधना करता हूँ । मेरे अत्यधिक निवेदन पर उन्होंने कहा, अनेक मानसिक व्यथा से व्यथित व्यक्ति जब मेरे सामने ध्यान में बैठते हैं तो वे उन व्याधियों से पूर्ण मुक्त हो गये हैं, कितने ही व्यक्तियों को शारीरिक आदि दृष्टि से भी लाभ हुआ है । मुनिश्री जी ने कुछ व्यक्तियों के नाम भी बताये । मालवणिया जी ने कहा, मैं आज तक महाराज श्री के इस अद्भुत गुण से अनभिज्ञ ही था किन्तु पाण्डेय जी के कारण सहसा इस गुण का प्रकाशन हो गया । यह For Private & Personal Use Only मुनिश्री ने एकक्षण चिन्तन के पश्चात् कहा कि यह आपत्कालीन स्थिति दीर्घकाल तक नहीं रहेगी। भारत में एक नवीन क्रान्ति आयेगी और शासन परिवर्तित हो जायगा । भारत का भविष्य उज्ज्वल है, अभी कुछ समय अवश्य ही संकट काल का है । मैंने वार्तालाप में यह अनुभव किया पुष्कर मुनि जी एक सच्चे महात्मा हैं जो बहुत ही सरल और सीधे हैं । उनका बाह्य और भीतर का जीवन एक है। जो गुण एक उत्कृष्ट जैन श्रमण में होने चाहिए वे सभी गुण उनमें हैं । जो उनके निकट सम्पर्क में आता है उसे असीम आनन्द का अनुभव होता है, वे स्वयं विद्यानुरागी हैं। उन्होंने शिष्यों को भी विद्वान् बनाया है। उनके शिष्य देवेन्द्र मुनि जी उत्कृष्ट विद्वान् हैं । उन्होंने संगोष्ठी में मोक्ष और मोक्षमार्ग पर www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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