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________________ साधना में आहार का स्थान १६३ . जो साधक कम खाता है, कम बोलता है, कम नींद लेता है और धर्मोपकरण की सामग्री कम रखता है उसे देवता भी नमन करते हैं। वृत्तिसंक्षेप-वृत्तिसंक्षेप का आशय है-खाद्य वस्तुओं की संख्या कम करना। इससे स्वादविजय का लाभ होता है। आज के आहारशास्त्री भी कहते हैं कि परस्पर विरोधी गुण वाली बहुत सी चीजें स्वास्थ्य के लिए भी हानिकर हैं। बिना दूसरी वस्तु के मिलावट के एक वस्तु का आमिल आहार पाचन और स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़ा लाभदायक माना गया है। जैनियों में आमिल यानी आयंबिल का बड़ा महत्त्व है। जैन पुराणों में मैनासुन्दरी ने अपने पति को आयंबिल द्वारा कुष्ट रोग से मुक्ति दिलाई थी। मोनोडायट (Monodiet) एक बार भोजन में एक ही प्रकार की चीज खाना स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम माना जाता है। ___रस-परित्याग-रस-परित्याग में घी, दूध, मक्खन शहद तथा मद्य का त्याग आता है। आज का विज्ञान बताता है कि मक्खन, मलाई, दूध आदि का अतिसेवन हानिप्रद होता है। खासकर अधिक उम्रवालों के लिए तो हानिप्रद ही है। इसलिए रस-परित्याग का महत्व धार्मिक दृष्टि से शरीर स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। वसायुक्त पदार्थों से मोटापा आता है और खाने पर जड़ता आती है इसलिए साधना की दृष्टि से रस-परित्याग आवश्यक है। डॉक्टर भी स्निग्ध चीजों का अधिक उपयोग हानिकारक मानते हैं। इस तरह जैन साधना में तप का स्थान महत्त्वपूर्ण है और बाह्य तपों में छ: में से चार आहार विषयक हैं । शेष दो साधना की पार्श्वभूमि के रूप में आसन और एकांत साधना की दृष्टि से आवश्यक ही हैं। इससे पता चलता है कि यदि आत्मसाधना करनी हो तो शरीर को स्वस्थ तथा साधना के लिए उपयुक्त बनाने में आहार का स्थान महत्त्वपूर्ण है और बाह्यतप द्वारा यही किया जाता है। जिन्हें आत्मसाधना करनी है उनके लिए ऐसा आहार जो दूसरों को दुःख देने वाला, अथवा किसी के प्राण हरने वाला हो वह सर्वथा अयुक्त है। गुरु नानक ने कहा है कि कपड़े पर खून लगने पर वह गंदा होता है तो वह खून जब आहार में आवेगा तो मनुष्य को चित्तवृत्ति अवश्य ही मलिन होगी। शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अनुसन्धान करने पर पता चला है कि मांसाहार से वनस्पत्याहार ही अधिक लाभदायक है। अमेरिका, ब्रिटेन की मेडिकल एसोशियेसनों ने अपने अनुसंधानों में बताया है कि मांस के प्रोटीन से बनस्पति के प्रोटीन अधिक स्वास्थ्यप्रद व सुपाच्य हैं। प्राणीमात्र के प्रति मैत्री और आत्मीयता की साधना करने वाले साधक के लिए मांसाहार उचित नहीं हो सकता । स्व० डा. राजेन्द्रप्रसाद ने कहा था-युद्ध के मूल में मांसाहार है, जब व्यक्ति प्राणी के प्रति दया गॅवा देता है तो वह मनुष्य के प्रति भी दयाहीन हो जाता है। आहार-शुद्धि का आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व बताते हुए महात्मा गांधी ने कहा था कि 'मनुष्य खाने के लिए पैदा नहीं हुआ और न खाने के लिए जीता है, बल्कि अपने को पैदा करने वाले को पहचानने के लिए पैदा हुआ है और उसी के लिए जीता है। इसलिए साधक का आहार ऐसा हो जो शरीर को स्वस्थ रख सके और साधना में उपयोगी हो सके। शारीरिक स्वास्थ्य के साथ स्फूर्ति होना आवश्यक है तभी साधना में प्रगति हो सकती है। इसलिए साधक का आहार ऐसा सात्त्विक और संतुलित होना चाहिए जिससे शरीर को स्वस्थ और स्फूर्तिमय रखने के लिए उपयुक्त द्रव्य प्राप्त हो सके। खाद्य तत्त्वों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, जल, विटामिन तथा खाद्योज व खनिज लवण उचित मात्रा में होना आवश्यक है। जिस भोजन में कार्बोहाइड्रेट दो-तिहाई, स्निग्ध या वसा छठवां हिस्सा और प्रोटीन तथा खनिज व खाद्य लवण का छठवां हिस्सा होता है वह संतुलित भोजन समझा जा सकता है। यदि हम इन द्रव्यों के गुणों और कार्य को समझ लें तो आहार कैसे लिया जाय यह समझने में आसानी होगी। प्रोटीन का मुख्य कार्य शरीर का पोषण, संवर्धन, रक्षण और छीजन को दूर करना होता है । यह शक्ति दूध, दही, पनीर, हरी सब्जियों से प्राप्त होती है। वसा या स्निग्धतापूर्ण चीजें शरीर में गर्मी पैदा करने में काम आती हैं। यह दूध, दही, मक्खन व तेल से प्राप्त होती है। कार्बोहाइड्रेट, जो पोषण और गर्मी देता है, गेहूँ, चावल, जौ, ज्वार, मकई तथा बाजरे से प्राप्त होती है। गुड़ और चीनी से भी मिलता है। खनिज लवण कैलशियम, पोटेशियम, लोहा, मैग्नेशियम, फास्फोरस आदि जो हड्डियों का मज्जा व रक्त के निर्माण और संचरण में सहायक होते हैं, ये फल और साग-सब्जियों से प्राप्त होते हैं। साधक को इसका प्रमाण आहार में अधिक रखना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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