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________________ ७० श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ MPSC थी। क्योंकि महिला और बालकों का एक विचित्र संसार यह कार्य हमारा है और हम इस कार्य को पूर्ण करवा होता है । दर्शन (फिलोसफी) के गुरु गम्भीर रहस्य उनकी देंगे। मुनिश्री जी की प्रेरणा से मेरे मन में पुनः नैतिक बल समझ से परे हैं। फिर आवाज न पहुँचने के कारण एक का संचार हुआ। मुनिश्री जी ने श्रीमान् नवलभाई फिरोअजीब-सा कोलाहलपूर्ण वातावरण हो गया । उस कोला- दिया, सेठ लालचन्द हीराचन्द, रिषभदास जी रांका आदि हलपूर्ण वातावरण पर बिना ध्वनिविस्तारक यन्त्र के विजय को बुलाकर उस पर चर्चाएं की और उनकी शंकाओं का पाना संभव नहीं था । पट्ट पर विराजित मुनिश्री ने इस निरसन कर जैन-चेयर की महत्ता पर प्रकाश डाला। इस स्थिति पर विजय प्राप्त करने हेतु गम्भीर गर्जना के साथ प्रकार मुनि श्री जी की प्रेरणा से पूना विश्वविद्यालय में संगीत प्रारम्भ कर दिया । मुनिश्री की गम्भीर गर्जना जैन-चेयर की संस्थापना हो सकी। यदि मुनिश्री जी का सुनकर मैं विस्मित था। मुनिश्री ने जनता को सम्बोधित अपूर्व सहयोग मुझे नहीं मिलता तो जैन-चेयर की संस्थाकरते हुए कहा-प्रतिभा के धनी विज्ञगण यहाँ आये हैं। पना कदाचित् संभव नहीं थी। इसका सम्पूर्ण श्रेय मुनि इनका गम्भीर चिन्तन सभी के लिए प्रेरणादायी है। मुनि श्री जी को है। श्री ने सभी श्रोताओं को मौन रहने का संकेत किया। मैंने पूना विश्वविद्यालय में जैनदर्शन पर विचारसभा में एक अपूर्व शांति छा गयी और मुनिश्री ने मुझे संगोष्ठी का आयोजन किया। उस संगोष्ठी में पंडित प्रवर आज्ञा प्रदान की कि मैं अपना भाषण प्रारम्भ करूं । मैंने श्रीदलसुख मालवणिया, पं० कैलाशचन्दजी, पं० दरबारी अपने भाषण में "जैनदर्शन, स्वरूप और विश्लेषण" ग्रन्थ लाल कोठिया, डा० कमलचन्द सोगानी, डा० टी०जी० की महत्ता पर प्रकाश डाला । श्रोताओं ने मेरे विचार बहुत कलघटगी आदि अनेक विद्वान् उपस्थित थे। मैंने पूज्य ही शांति से सुने । मुनिश्री का अद्भत प्रभाव देखकर मैं पुष्कर मुनि जी को प्रार्थना की कि वे इस संगोष्ठी में प्रथम दर्शन में ही अत्यधिक प्रभावित हुआ। वे सिंह की अवश्य ही पधारें। मुनिश्री जी ने अपने अन्य कार्यक्रम तरह दहाड़ते हैं। उनके लिए ध्वनिविस्तारक यन्त्र की स्थगित कर तीन दिन तक विद्वानों को सुना । इस संगोष्ठी कोई आवश्यकता नहीं है। में देवेन्द्र मुनिजी ने मोक्ष और मोक्ष मार्ग पर अपना शोधमेरी चिरकाल से यह उत्कट अभिलाषा थी पूना पत्र पढ़ा जिसे विद्वानों ने बहुत ही पसन्द किया। विश्वविद्यालय में जैनदर्शन के गम्भीर अध्ययन के लिए इसके पश्चात् मैं अनेकों बार उपाध्याय पुष्कर मुनि जैन-चेयर की स्थापना हो। जैनदर्शन जो भारत का एक जी से व देवेन्द्र मुनि जी से मिला। उनके प्रति मेरे अन्तमुख्य दर्शन है जिसके सिद्धान्त अत्यधिक उदात्त और मानस में गहरी निष्ठा है और अनेक मधुर संस्मरण भी मौलिक हैं, जब तक उनका प्रचार विश्वविद्यालय के स्तर हैं जिसे कंजूस की भाँति स्मृति कोश में सुरक्षित रखने में पर नहीं किया जायगा तब तक वे सिद्धान्त विश्व के विविध ही आनन्द की अनुभूति करता हूँ। अंचलों में प्रसारित नहीं हो सकते । मैंने उसके लिए प्रयत्न मैं अपना परम सौभाग्य समझता हूँ कि पुष्कर मुनि भी किया, किन्तु मेरी आवाज किसी ने न सुनी। मैं निराश जी व देवेन्द्र मुनिजी का मधुर सम्पर्क मुझे मिला जिससे व हताश होने लगा। मैं इस विषय को लेकर दूसरी बार मैं एक महान कार्य भी कर सका । मुनिश्री का यह विराट आदरणीय पुष्कर मुनिजी व देवेन्द्र मुनि जी से मिला। कार्य अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। यह हमारे उन्होंने मेरी बात को बहुत ही ध्यान से सुना। उसकी लिए गौरव की बात है। मैं अपनी श्रद्धा उनके श्री चरणों उपयोगिता, रूपरेखा आदि पर विस्तार से चर्चा की। मुनि में समर्पित करता हूँ और वे अधिक से अधिक भूले-भटके श्री जी ने मुझे प्रबल प्रेरणा देते हुए कहा-इस सम्बन्ध जीवन राहियों को मार्ग-दर्शन देते रहें यही कामना करता में आपको हताश व निराश होने की आवश्यकता नहीं है। हैं। 00 एक पालोकपुंज : उपाध्याय श्री श्री चीमनलाल सो० शाह, सोलिसिटर, अध्यक्ष-स्थानकवासी जैन श्री संघ, बम्बई उपाध्याय पुष्कर मुनि जी महाराज स्थानकवासी दिव्य-नेत्र उनके बाह्य व्यक्तित्व की असाधारणता का समाज के एक प्रसिद्ध सन्त हैं। श्रमणसंघ के उपाध्याय प्रतीक है । सहस्रों व्यक्तियों की भीड़ में भी उनके व्यक्तित्व हैं। उनका बाह्य और आन्तरिक व्यक्तित्व असाधारण है। की गरिमा उन्हें पृथक्ता प्रदान करती है। उनके प्रशान्त लम्बा कद, गोधूमी वर्ण, दीप्तिमान भालस्थल, उन्नत चित्ताकर्षक मुख-मण्डल पर दर्शक की आँखें स्थिर हो नासिका और गहराई में झांकती हुई करुणा की झील-से जाती हैं । बाह्य व्यक्तित्व से भी उनका आन्तरिक व्यक्तित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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