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________________ ९३४ ] [ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : अर्थ-ज्ञान का मद, पूजा का मद कुल का मद, जाति का मद, बल का मद, धन सम्पत्ति का मद, तप का मद और शरीर का मद अर्थात ज्ञान प्रादि इन पाठ को पाश्रय करके मान करने को मद कहते हैं। कुदेवगुरुशास्त्राणां तद्भक्तानां गृहे गतिः। षडनायतनमित्येवं वदन्ति विदितागमाः॥ अर्थ- कुगुरु कुदेव और कुशास्त्र और उनके भक्तों के स्थान पर जाना इन छहों को आगम के ज्ञाता पुरुष छह अनायतन कहते हैं। कुवेवस्तस्यभक्तश्च कुज्ञानं तस्य पाठकः । कूलिङ्गी सेवकस्तस्य लोकोऽनायतनानिषट। अर्थ-१ कुदेव २ कुदेव के भक्त ३. कुशास्त्र ४ कुशास्त्र के बांचने वाले मनुष्य, ५. कुगुरु, ६. कुगुरु के सेवक ये छह अनायतन हैं । 'प्रभाचन्द्रस्त्वेवं वदति मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्राणि त्रीणि त्रयश्च तद्वन्तः पुरुषाः षडनायतानि । अथवा असर्वज्ञः, असर्वज्ञायतनं, असर्वज्ञज्ञानसमवेतपुरुषः, असर्वज्ञानुष्ठानं, असर्वज्ञानुष्ठानसमवेत पुरुषश्चेति ।" ॥६॥ श्री प्रभाचन्द्र आचार्य ने छह अनायतन इस प्रकार कहे हैं १. मिथ्यादर्शन, २. मिथ्याज्ञान, ३. मिथ्याचारित्र, ४. मिथ्यादर्शन का धारक पुरुष, ५. मिथ्याज्ञान का धारक पुरुष, ६. मिथ्याचारित्र का धारक पुरुष । अथवा १. असर्वज्ञ, २. असर्वज्ञ का आयतन, ३. असर्वज्ञ का ज्ञान, ४. प्रसर्वज्ञ के ज्ञान से युक्त पुरुष, ५. प्रसर्वज्ञ का अनुष्ठान, ६. असर्वज्ञ के अनुष्ठान से सहित पुरुष ये छह अनायतन हैं। 'शंकाकांक्षाविचिकित्सामूढदृष्टिः अनुपगृहनं अस्थितीकरणं अवात्सल्यं अप्रभावना चेति अष्टौ शंकादयः।' -चारित्र पाहुड गा० ६ टीका शंकादिक पाठ दोष निम्न प्रकार हैं-१. शंका, २. कांक्षा, ३ विचिकित्सा, ४ मूढदृष्टि, ५. अनुपगृहन, ६. प्रस्थितिकरण, ७. अवात्सल्य, ८. अप्रभावना । इनसे विपरीत सम्यग्दर्शन के आठ अंग हैं। हिस्संकिय णिक्कंखिय णिग्विविगिछा अमूढविट्ठी य । उवगृहण ठिविकरणं वच्छल्ल पहावणाय ते अट्ठ ॥७॥ चारित्र पाहुड १. निःशङ्कित, २. निःकांक्षित, ३. निर्विचिकित्सा, ४. अमूढ-दृष्टि, ५. उपगूहन, ६. स्थितिकरण, ७. वात्सल्य, ८. प्रभावना ये सम्यक्त्व के आठ अंग हैं। -. ग. 24-12-70/VII/र. ला. जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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