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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] श्रदयिक पारिणामिक भावों में जीव को सम्यक्त्व रह सकता है शंका-क्या प्रधिक पारिणामिक भावों में जीव सम्यग्दृष्टि नहीं रहता ? समाधान- ओदयिक और पारिणामिक भावों में जीव सम्यग्दष्टि हो सकता है । औदयिक और पारिणामिकभाव तो चौदहवें गुणस्थान तक रहते हैं । अण्णय रवेयणीयं मणुयाऊ मणुयगई य बोहवा । पाँचदिय जाई वि य तस सुभगादेज्ज पज्जतं ॥४२॥ वायरजस कित्ती वि य तित्थयरे उच्चोगाइयं चैव । एए बारह पयडी उजोइम्हि उदयवोच्छिष्णा ॥४३॥ चौदहवें अयोगिकेवली गुणस्थान में कोई वेदनीय, मनुष्यायु मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रस, सुभग, श्रादेय, पर्याप्त, बादर, यशः कीर्ति, तीर्थंकर और उच्चगोत्र इन बारहप्रकृतियों का उदय रहता है जो अन्तिमसमय में उदय से व्युच्छिन्न होती हैं । इन बारह कर्म-प्रकृतियों के उदय से चौदहवेंगुणस्थान में भी श्रदयिकभाव होता है । जैसे मनुष्यगति नामकर्म के उदय से गति औदयिकभाव होता है । चैतन्यरूप जीवत्व पारिणामिकभाव भी चौदहवें गुणस्थान में होता है । [ ९२५ " चैतन्यमेव वा जीवशब्दार्थः ।" चैतन्यं जीवशब्देनाभिधीयते तच्चानादि द्रव्यभवन निमित्तत्वात् पारिणामिकम् । रा० वा० २२७१६ क्षायिकसम्यग्दर्शन तो चौदहवेंगुणस्थान में होता ही है । इस प्रकार चौथेगुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान तक औदयिक व पारिणामिकभाव के साथ सम्यग्दशन पाया जाता है । Jain Education International 'औवयिकक्षा किपारिणामिकसा निपातिकजीवभावो नाम मनुष्यः क्षीणदर्शन मोहोजीवः ।' रा.वा. २७-२२ मनुष्यगति श्रदयिकभाव, क्षायिकसम्यग्दर्शन क्षायिकभाव, जीवत्व पारिणामिकभाव इसप्रकार औदयिक, क्षायिक और पारिणामिकभावों का सन्निकर्ष पाया जाता है । सम्यक्त्व को व्यवहार सापेक्ष निश्चय का बोध होता है। जै. ग. 11-3-71 / VII / सुलतानसिंह शंका-क्या उत्कृष्ट आवक को निश्चय का बोध नहीं होता है ? समाधान - सम्यग्दष्टि को निश्चयनय और व्यवहारनय इन दोनों नयों का परस्पर सापेक्षरूप से बोध होता है । इन दोनों में से मात्र किसी एक नय का बोध होवे और दूसरे नय का सापेक्षरूप से बोध न होवे तो वह मिध्यादृष्टि है । मिच्छादिट्ठी सच्चे विणया सपक्ख-पडिबद्धा । अष्णोष्णणिस्सिया उणलहंति सम्मत्तसमावं ॥ १०२ ॥ For Private & Personal Use Only [ कषायपाहुड पु० १ पृ० २४९ ] www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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