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________________ १४४६ ] [पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : कहना । ६. किसी विवक्षित पदार्थ की अपेक्षा से दूसरे पदार्थ के स्वरूप का कथन करना इसको प्रतीत्यसत्य कहते हैं । जैसे किसी छोटे या पतले पदार्थ की अपेक्षा से दूसरे पदार्थ को दीर्घ (बड़ा लम्बा स्थूल) कहना । ७ नैगमादि नयों की प्रधानता से जो वचन बोला जाय उसको व्यवहारसत्य कहते हैं। जैसे नैगमनय की प्रधानता से-भात पकता है। ८. असंभवता का परिहार करते हुए वस्तु के किसी धर्म का निरूपण करने में प्रवृत्त वचन को संभावनासत्य कहते हैं। जैसे शक ( इंद्र ) जम्बूद्वीप को उलट सकता है। ९. पागमोक्त विधि-निषेध के अनुसार अतीन्द्रिय पदार्थों में संकल्पित परिणामों को भाव कहते हैं, उसके आश्रित जो वचन हों उसको भावसत्य कहते हैं। जैसे शुष्क, पक्व, तप्त और नमक, मिर्च, खटाई आदि से अच्छी तरह मिलाया हया द्रव्य प्रासूक होता है। यहां पर यद्यपि सूक्ष्म जीवों को इंद्रियों से देख नहीं सकते तथापि आगम-प्रमाण से उसकी प्रासुकता का वर्णन किया जाता है। १०. प्रसिद्ध सदृश पदार्थ को उपमा कहते हैं। इसके प्राश्रय से जो वचन बोला जाय उसको उपमासत्य कहते हैं। जैसे पल्य । यहां पर रोमखण्डों का आधारभूत खड्डा 'पल्य' होता है। इसलिये उसको पल्य कहते हैं । इस संख्या को उपमासत्य कहते हैं । ये दस प्रकार के सत्य के दृष्टान्त हैं। अन्य भी इसी तरह जानना चाहिए। व्यवहारनय के विषय भी इन दसप्रकार के सत्य में प्राजाते हैं। व्यवहारनय को असत्य कहना उचित नहीं है। -जं. ग. 24-12-64/VIII-XI/ र. ला. जैन, मेरठ सापेक्ष पर्याय दृष्टि से मोक्षमार्ग सम्भव है शंका-क्या पर्यायदृष्टि से मोक्षमार्ग सम्भव है ? समाधान—जो वस्तु जिसरूप से है उस वस्तु का उसीरूप से श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। आलापपद्धति सूत्र ९५ में कहा है कि वस्तु सामान्य विशेषात्मक है। 'सामान्यविशेषात्मक वस्तु ॥९॥' सामान्य-विशेषात्मक वस्तु में से 'सामान्य' को द्रव्य कहते हैं और 'विशेष' को पर्याय कहते हैं। श्री पूज्यपादाचार्य ने कहा भी है 'द्रव्यं सामान्यमुत्सर्गः अनुवृत्तिरित्यर्थः। तद्विषयो द्रव्याथिकः। पर्यायो विशेषोऽपवादो व्यावृत्तिरित्यर्थः । तद्विषयः पर्यायाथिकः ।' सर्वार्थ सिद्धि ११३३ द्रव्य का अर्थ सामान्य, उत्सर्ग और अनुवृत्ति है। इस सामान्य को विषय करनेवाला नय अथवा दृष्टि द्रव्याथिकनय अथवा द्रव्यदृष्टि है। पर्याय का अर्थ विशेष अपवाद और व्यावृत्ति है। इस विशेष को विषय करने वाला पर्यायाथिकनय अथवा पर्यायष्टि है। श्री अमृतचन्द्राचार्य ने भी इसी प्रकार कहा है अनुप्रवृत्तिः सामान्यं द्रव्यं चैकार्थवाचकाः । नयस्तद्विषयो यः स्याज्जयो द्रव्याथिको हि सः॥३९॥ व्यावृत्तिश्च विशेषश्च पर्यायश्चैकवाचकाः । पर्यायविषयो यस्तु स पर्यायाधिक मतः ॥४०॥ तत्त्वार्थसार प्रथमाधिकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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