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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ १४२९ विपाक की अपेक्षा इन चारप्रकार के कर्मों में से, जीवविपाकी ५५ प्रकृतियां ( ५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, ५ अंतराय, २८ मोहनीयकर्म, २ गति, ४ जाति, १ स्थावर, १ सूक्ष्म ), पुद्गलविपाकी ३ प्रकृतियाँ ( १ उद्योत, १ प्रातप, १ साधारण ), भवविपाकी की ३ प्रकृतियां (नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु) और क्षेत्रविपाकी २ प्रकृतियाँ ( नरकगत्यानुपूर्वी, तियंचगत्यानुपूर्वी ) इन ( ५५+३+३+२) ६३ प्रकृतियों के नाश होने पर तेरहवेंगुणस्थान में अरहंतावस्था प्रगट होती है । जीव विपाकी, पुद्गलविपाकी, भवविपाकी, क्षेत्रविपाकी इन चारकर्मों की ये ६३ प्रकृतियाँ हैं अतः पूजन में 'चउकर्म की त्रेसठ प्रकृति नाश ।' यह पाठ ठीक प्रतीत होता है । विद्वान् इस पर विशेष विचारने की कृपा करें। -. ग. 17-6-71/IX/रो ला. मित्तल ध० पु. १ पृ० २०८ पर उद्धृत सूत्र शंका-ध० पु० १ पृ० २०८ पर 'पंचिदिय-तिरिक्ख अपज्जत्त-मिच्छाइट्ठी दव्वपमारण केवडिया, असंखेज्जा इदि ।' सूत्र कहाँ से उद्धृत किया गया ? समाधान-यह सूत्र धवल पु० ३ पृ० २३९ पर सूत्र ३७ है, किन्तु वहाँ 'मिच्छाइट्ठी' शब्द नहीं है । और वहाँ अन्य गुणस्थानों की संख्या को बताने वाले सूत्र भी नहीं हैं, इससे सिद्ध होता है कि यह सूत्र मिथ्याष्टि के सम्बन्ध में है, क्योंकि प्रत्येक गतिमार्गणा में मिथ्यात्वगुणस्थान अवश्य होता है । -जं. ग. 19-10-67/VIII/ र. ला. जैन; मेरठ अष्टमी व चतुर्दशी का महत्त्व शंका–अष्टमी और चतुर्दशी का महत्त्व क्या है और क्यों है ? शास्त्रोक्तविधि से स्पष्ट कीजिये । यदि पक्ष में उक्त दोनों दिवसों को छोड़कर कोई भी दो दिन धर्मोत्सव के लिये निश्चित कर लिये जावे तो आगम में क्या बाधा आती है ? स्पष्ट कीजिये। समाधान-मोक्षमार्ग में चारित्र का बहुत महत्त्व है । कहा भी है 'चारित्तं खलु धम्मो' अर्थात् चारित्र ही धर्म है । चारित्र की सर्व जघन्यअवस्था श्रावक के निरतिचार अष्टमूलगुण हैं और सर्वोत्कृष्ट अवस्था चौदहवें गुणस्थान में परमयथाख्यातचारित्र है। अतः अष्टमूलगुण की सूचक अष्टमी और चौदहवें गुणस्थान की सूचक चौदस पर्व दिवस हमेशा से मनाये जा रहे हैं।' अन्य दिवस की अपेक्षा पर्व के दिन चारित्र में विशेष प्रवृत्ति होती है। अष्टमी, चतुर्दशी को पर्व मानने में अन्य भी कारण हो सकते हैं। हमेशा से अष्टमी, चतुर्दशी पर्व माने जा रहे हैं इनको छोड़कर अन्य दिन को पर्व मानना स्वेच्छाचारी बनना है। जिससे पूर्वाचार्यों की आज्ञा की अवहेलना अथवा प्राचार्यों की प्रविनय का दोष पाता है। फिर जो भी पर्व दिवस माना जावेगा उसमें भी 'क्यों' का प्रश्न खड़ा रहेगा। अतः अष्टमी चतुर्दशी को परम्परा अनुसार पर्व दिवस मानना उचित है। -णे. सं. 4-9-58/V/ भागचंद जैन, बनारस १. अग्यन भी एक शंका-समाधान में आया था कि अष्ट कर्मों का नाम करने का सन्देश अष्टमी द्वारा तथा चतुर्दन गुणस्थानों से पार होने का संदेश चतुर्दशी द्वारा ( यथासंख्या ) प्राप्त होता है; अतः अष्टमी वया चतुर्दशी का महत्व है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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