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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ १२८५ उपादानकारण एवं कार्य (पूर्वोत्तरपर्यायें ) शंका-क्या उपादानकारण एवं कार्य में समयभेद होना आवश्यक नहीं ? समाधान-पूर्वपरिणामसहित द्रव्य कारणरूप है और उत्तर परिणामसहित द्रव्य कार्यरूप है। 'पुव्व परिणामजुत्तं कारणभावेण वदे दव्वं । . उत्तर परिणामजुवं तं चिय कज्ज हवेणियमा ॥ २२२ ॥ ( स्वा. का.) __टीका-"द्रव्यं जीवादि वस्तु पूर्वपरिणामयुक्त पूर्व पर्यायाविष्टं कारणभावेन उपादानकारणत्वेन वर्तते । तदेव द्रव्यं जीवादिवस्तु उत्तरपरिणामयुक्तम् उत्तरपर्यायाविष्टं । तदेव द्रव्यं पूर्वपर्यायाविष्टं कारणभूतं मणिमंत्रादिना अप्रतिबद्धसामर्थ्य कारणान्तरावैक्लयेन उत्तरक्ष कार्य निष्पादयत्येव ।'' टीकार्थ-पूर्वपरिणामसहित जीवादिवस्तु उपादानकारण है और वही जीवादि वस्तु उत्तरपर्यायसहित कार्यरूप होता है । कारणभूत पूर्वपर्यायसहित वही द्रव्य, जिसकी सामर्थ्य मणि-मंत्रादि के द्वारा रोकी नहीं गई है, अन्य कारणों की सहकारिता से उत्तरक्षण में कार्य को उत्पन्न करता है। पूर्वपरिणाम और उत्तरपरिणाम की दृष्टि से उपादान कारण और कार्य में समय भेद है। -जं. ग. 4-7-66/IX/ प्रो. मनोहरलाल शंका-उपादान कमजोर होता है उसमें कर्म का निमित्त है या नहीं ? अथवा यह आत्मा के पुरुषार्थ की नबलाई है । आत्मा में नबलाई या सबलाई क्यों होती है, कुछ आभ्यन्तर निमित्त है या नहीं ? समाधान-'उपादान का कमजोर होना' उपादान की स्वाभाविक अवस्था है या वैभाविक अवस्था है। 'कमजोरी' अर्थात् 'वीर्यगुण की अपूर्णता' स्वाभाविक अवस्था तो हो नहीं सकती, क्योंकि स्वाभाविक अवस्था में गुण अपूर्ण नहीं होता, पूर्ण होता है। दो भिन्न द्रव्यों के बन्ध होने पर विभाव ( अशुद्धदशा ) होता है। केवल एक द्रव्य में विभाव नहीं होता जैसे-धर्म, अधर्म, आकाश, कालाणु, सिद्धजीव, पुद्गलपरमाणु में विभाव नहीं है। पूगल परमाणु का दूसरे परमाणु के साथ बन्ध हो जाने पर विभाव हो जाता है । संसारीजीवमें भी अनादिकाल से कर्मबन्ध होने के कारण विभाव है । ( पं० का. गाथा ५ व १६ पर श्री जयसेनाचार्य कृत टीका ) प्रात्मा की कमजोरी में द्रव्य कर्मोदय अवश्य निमित्त है। यदि द्रव्य कर्मोदय को निमित्त न माना जावे तो 'कमजोरी' जीव का स्वभाव हो जायगी और सिद्धों में भी कमजोरी माननी पड़ेगी। कमजोरी कार्य है और कोई भी कार्य अन्तरंग व बाह्य कारणों के बिमा नहीं होता, ऐसा जैनागम का कथन है। जो इस प्रागम के कि बाह्यकारण को कार्य की उत्पत्ति में अकिचित्कर (Good for Nothing ) कहते हैं, वे जैनमत से बाह्य हैं। -जे. ग. 28-12-61 शंका--पेड़ से टूटा हुआ आम पड़ा-पड़ा बड़ा क्यों नहीं होता ? - समाधान-उस ग्राम में यद्यपि बढ़ने की अन्तरंग शक्ति विद्यमान है तथापि वृक्ष से पृथक हो जाने के बाद उन बाह्य कारणों का अभाव हो गया जो उस ग्राम के बढ़ने में निमित्त थे । अतः टूटा ग्राम बड़ा नहीं होता। कार्य की सिद्धि बाह्यसहकारीकारण और अन्तरंगउपादानकारण से होती है। (अष्टसहस्री पृ. १४९ कारिका २१) जो कार्य दो कारणों से उत्पन्न होता है वह एक कारण से कभी उत्पन्न नहीं हो सकता । कहा भी है---- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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