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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] है। तो मिट्टी नैमित्तिक है या घटपर्याय नैमित्तिक है ? समाधान --- फलटन से प्रकाशित समयसार पृ० १२ पर निमित्त का व्युत्पत्ति अर्थ इसप्रकार दिया है" उपादानस्य परिणमनक्रियया सहैव तत्परिणमनानुकूलं परिणमनं कस्य भवति तस्यैव निमिशत्वं, निमेदति सह करोतीति निमित्तमिति निमित्तशब्दस्य व्युत्पत्तेः भवितृभवनव्यापारानुकूल व्यापारवन्निमित्तमिति । " निमित्त शब्द की निरुक्ति 'निमेदति सह करोतीति निमित्तं" ऐसी है । इस निरुक्ति में 'करोति' इस मिङन्त या तिङन्तपद से परिरगमनक्रिया का बोध होता है, क्योंकि परिणमन के बिना 'करोति' इस पद की वाच्यभूत क्रिया नहीं हो सकती । इस परिणमनक्रिया का आश्रय निमित्तसंज्ञक पदार्थ होता है । इस क्रिया का आश्रय होने से वह निमित्तसंज्ञक पदार्थ कर्तृ संज्ञा को प्राप्त होता है । यह उसकी संज्ञा अनुपचरित अर्थात् यथार्थ है । उपादान की परिणतिक्रिया के निमित्त की परिणति अनुकूल होने से निमित्त को दी जानेवाली कर्तृ संज्ञा उपचरित अर्थात् व्यवहारनय को दृष्टि से दी गई है, क्योंकि निमित्त की परिणतिक्रियाको उत्पत्ति की दृष्टि से प्राश्रय निमित्तभूत पदार्थ से भिन्न जो उपादानभूत पदार्थ होता है वह नहीं होता । निरुक्ति में प्रयुक्त किया गया 'सह' यह शब्द 'यौगपद्य' इस अर्थ का द्योतक अथवा वाचक है । इस शब्द से दो पदार्थों का या उनकी परिणतियों का अस्तित्व ध्वनित होता है, क्योंकि दो पदार्थों के या परिणतियों के बिना यौगपद्य इस शब्द का या साहचर्य इस शब्द का भाव व्यक्त नहीं होता । इससे जब दो पदार्थों की परिणितियाँ समकालभाविनी होनेपर जिसकी परिणति उपादानभूत अन्यपदार्थों की परिणतिक्रिया में सहायक होती है तब उस पदार्थ को निमित्त यह संज्ञा प्राप्त होती है, यह बात स्पष्ट हो जाती है । उपादान की कार्यरूप परिणति में सहायक होनेवाली अन्यद्रव्य की परिणति को सहायकपरिणति कहने का कारण यह है कि वह उपादान की विशिष्ट कार्यरूपसे परिणति होने की शक्ति को अपनी शक्ति के द्वारा उत्तेजित प्रबोधित करता है । समयसार फलटन पृ. २६ । इससे स्पष्ट हो जाता है कि उत्पन्न होनेवाली पर्याय तो नैमित्तिक है । उस पर्याय की उत्पत्ति में अन्य द्रव्य की जो पर्याय सहकारीकारण होती है वह पर्याय निमित्त होती है । मिट्टीद्रव्य की घटरूप पर्याय तो मित्तिकपर्याय है तथा कुम्भकार जीवद्रव्य की घटोत्पत्ति के अनुकूल योग - उपयोगरूप पर्याय निमित्त है। मिट्टीरूप पुद्गलद्रव्य नैमित्तिक नहीं है और कुम्भकार जीवद्रव्य निमित्त नहीं है, क्योंकि द्रव्य तो द्रव्यदृष्टि से अनादि-निधन होने के कारण प्रकार्य कारण होता है, क्योंकि द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा द्रव्य का न उत्पाद है और न व्यय है । पर्यायदृष्टि से उत्पाद व व्यय होता है अतः उपादान की पर्याय नैमित्तिक है और अन्यद्रव्य की सहकारीपर्याय निमित्त है । यदि द्रव्य को ही नैमित्तिक और निमित्त मान लिया जाय तो निमित्त नैमित्तिकभाव का कभी विनाश नहीं होने का प्रसंग आ जायगा । श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने कहा भी है जीवो ण करेदि घडं लेव पडं रोव जोगुवओगा उप्पादगा य तेसि टीका- आत्मनो विकल्पव्यापाररूपौ विनश्वरौ योगोपयोगावेव तत्रोत्पादकौ भवतः । ण कुदोचि वि उप्पणो जह्मा कज्जं ण तेण सो आदा । उप्पादेदि ण किंचिवि, कारणमवि तेण ण सो होइ ॥ ३१० ॥ स. सा. Jain Education International सेसगे दव्वे । हवदि कत्ता ॥ १०० ॥ समयसार उप्पत्ती व विणासो दव्वस्स य णत्थि अस्थि सम्भावो । विगमुप्पादधुवरां करेंति तस्सेव [ १२८३ पज्जाया ॥ ११ ॥ पं० काय० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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