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________________ १२६२ ] [पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : प्राप्त हुए अपने पूर्व प्रानन्द का स्मरण कर रहा हो, ऐसे स्मृतिज्ञान को क्या तर्क द्वारा सिद्ध किया जा सकता है ? 'अग्नि उष्ण है' यह प्रत्यक्षप्रमाण से जाना जाता है । क्या अग्नि का उष्णपना किसी तर्क से सिद्ध हो सकता है ? तर्क से सिद्ध न होने पर भी प्रत्यक्ष व स्मृतिप्रमाण के द्वारा सिद्ध है, अतः स्वीकार करना चाहिये । उसीप्रकार परमाणु आदि सूक्ष्मपदार्थ तथा राम, रावण आदि कालान्तरितपदार्थ, मेरु-स्वर्ग-नरक आदि क्षेत्रान्तरितपदार्थ भी तर्क के विषय नहीं हैं। वे आगमप्रमाण से मानने योग्य हैं । प्रागम तर्क का विषय नहीं है । (ध० पु० १ पृ० २०६ व १७१; पु० १४ पृ० १५१) सर्वज्ञ के वचन को पागम कहते हैं। जिस आगम का अरहंत ने अर्थरूप से व्याख्यान किया है, जिसको गणधर ने धारण किया है, जो ज्ञान-विज्ञान गुरु-परम्परा से चला पा रहा है, जिसका पहले का वाच्यवाचक भाव अभी तक नष्ट नहीं हुआ है और जो दोषावरण से रहित तथा निप्रतिपक्ष सत्य स्वभाववाले पुरुषों के द्वारा व्याख्यान होने से श्रद्धा के योग्य है ऐसे आगम की प्राज भी उपलब्धि होती है । (ध. पु. १ पृ. १९६) मात्र तर्क से सिद्ध वस्तु ही मानने योग्य नहीं है, किन्तु प्रत्यक्ष आगमप्रमाण के द्वारा जानी गई वस्तु भी मानने योग्य है। यदि ऐसा न माना जावेगा तो मात्र तर्क-प्रमाण ही रह जावेगा और इसके अतिरिक्त अन्य प्रमाणों का अभाव हो जायगा। और जो वस्तु तर्क का विषय नहीं उसके भी प्रभाव का प्रसंग आजायगा, किन्तु उनका अभाव है ही नहीं, क्योंकि प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से उनका सद्भाव सिद्ध है। -जे. ग. 10-10-63/1X/ गुलजारीलाल सम्यक्त्वाभाव तुच्छाभावरूप नहीं है शंका-अनादिकाल से सम्यकपर्याय का अभाव है । उस अभाव का अभाव होने पर सम्यक्त्व की उत्पत्ति होती है । अभाव तो अवस्तु है फिर अभाव का अभाव कैसे सम्भव है ? समाधान-अभाव तुच्छाभावरूप नहीं है, किन्तु भावान्तर से सद्भावरूप है। "भावान्तरस्वभावत्वादभावस्य भावन्तरस्वभावो हि क्वचित्त व्यपेक्षया घटाभावस्य कपालस्वभाववत्" -प्र. र. मा. पृ. ३७ अभाव भी भावान्तरस्वभाववाला होता है, तुच्छाभावरूप नहीं। घट का अभाव कपाल के सद्भावरूप है। इसीप्रकार सम्यक्त्व का अभाव मिथ्यात्व के सद्भावरूप है । अतः मिथ्यात्व के अभाव से सम्यक्त्व की उत्पत्ति होती है। -जं. ग. 7-1-71/VII/ रो. ला. मित्तल द्रव्यत्व, सत्व तथा जीवस्व में परस्पर भिन्नत्वाऽमिन्नत्व शंका-द्रव्यत्व, सत्ता और जीवत्व ये तीनों अभिन्न हैं या इनमें कोई भेद है ? समाधान-द्रव्यत्व, सत्ता और जीवत्व ये तीनों जीवद्रव्य के पारिणाभिकभाव हैं। इन तीनों में संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन की अपेक्षा परस्पर भेद है, किन्तु प्रदेशभेद नहीं है, क्योंकि ये तीनों जीवद्रव्य के प्राश्रय हैं ।। १. 'मर्ववचनं तावदागमः। (समयसार गाथा ४४ आत्मख्याति टीका)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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