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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ११५५ प्रवचनसार गाथा १८९ को टीका में 'शुद्धद्रव्य' का प्रयोजन निरुपाधि- आत्मद्रव्य से नहीं है, क्योंकि निरुपाधि- आत्मद्रव्य रागादि विकारोपरिणामों का कर्त्ता नहीं हो सकता है, किन्तु 'एकद्रव्य' से प्रयोजन है, क्योंकि रागादि परिणाम का कर्त्ता व कर्म दोनों एकद्रव्य की पर्यायें हैं । 'निश्चयनय' का प्रयोजन सद्भूतव्यवहारनय है, क्योंकि एकद्रव्य में कर्त्ता कर्म का भेद सद्भूतव्यवहारनय का विषय है । 'व्यवहारनय' का प्रयोजन असद्भूतव्यवहारनय से है, क्योंकि सोपाधि आत्मा और पौद्गलिककमों में अर्थात् दो भिन्न वस्तुओं में कर्त्ता कर्म का सम्बन्ध बतलाना असद्भूतव्यवहारनय का विषय है । इसप्रकार प्रवचनसार गाथा १८९ की टीका का द्रव्यदृष्टि व पर्यायदृष्टि से कोई सम्बन्ध नहीं है अतः द्रव्यदृष्टि व पर्यायदृष्टि की चर्चा में प्रवचनसार गाथा १८९ की टीका का उल्लेख करना श्रप्रासंगिक है । २७ मई १९७१ के जैनसंदेश के सम्पादकीय लेख में प्रवचनसार गाथा ९४ का उल्लेख है । इस गाथा में 'जे पज्जयेसु णिरवा जीवा परसमयिग ति णिद्दिट्ठा ।' जो यह कहा गया है, वह एकान्त पर्यायदृष्टिवालों की अपेक्षा से कथन है । जैसा कि श्री अमृतचन्द्राचार्य की टीका के 'निरगंलैकान्तदृष्टयो' शब्दों से स्पष्ट है । सापेक्ष पर्यायदृष्टिवाला भी मिध्यादृष्टि है, ऐसा नहीं कहा गया है । यदि द्रव्यदृष्टि भी निरपेक्ष पर्याय दृष्टि है तो वह भी मिथ्यादृष्टि है । श्री जयसेनाचार्य ने प्रवचनसार गाथा ९३ की टीका में कहा है - " वज्जयमूढा हि परसमया - यस्मादित्थंभूत द्रव्यगुणपर्यायपरिज्ञानमूढा भवाम्यहमिति भेदविज्ञानमूढाश्च परसमया मिथ्यादृष्टयो भवन्तीति ।" पज्जयमूढ़ा हि परसमया अर्थात् जो इसप्रकार द्रव्य, गुरण, पर्याय के यथार्थज्ञान से मूढ़ है, श्रथवा मैं नारकी आदि पर्यायरूप सर्वार्थं नहीं हूँ इसप्रकार भेदविज्ञान में मूढ़ है वह वास्तव में मिध्यादृष्टि है । अतः सापेक्ष द्रव्यदृष्टि सुदृष्टि, निरपेक्ष द्रव्यदृष्टि मिथ्यादृष्टि । सापेक्ष पर्यायदृष्टि सुदृष्टि, निरपेक्ष पर्यायदृष्टि मिध्यादृष्टि | प्रवचनसार गाथा १० में कहा भी है "नस्थि विणा परिणामं अत्यो अत्थं विरह परिणामो ।" अथवा नारकादिपर्यायरूपो न इस लोक में पर्याय के बिना पदार्थ नहीं है और पदार्थ के बिना पर्याय नहीं है । प्रदेश की अपेक्षा पर्याय और पर्यायी अपृथक् हैं । अतः सापेक्ष पर्यायदृष्टि से मोक्षमार्ग संभव है । - जै. ग. मई-जून 1973 / मुकुटलाल, बुलन्दशहर भावस्त्री को मोक्ष सम्भव, द्रव्य स्त्री को नहीं शंका- भास्त्री को मोक्ष कहा गया है । यहाँ पर भावस्त्री से क्या प्रयोजन है ? Jain Education International समाधान - जिन मनुष्यों का शरीर तो द्रव्यपुरुषरूप हो, किन्तु उनके स्त्रीवेद नोकषाय का उदय हो. ऐसी भावस्त्रियों को मोक्षगति सम्भव है । जिन मनुष्यों का शरीर भी द्रव्य स्त्रीरूप है । ऐसी स्त्रियों अर्थात् महिलाओं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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