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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ११४३ उसीप्रकार संसाररूप वन में रागद्वेषरूप आग लग रही है। असंयत सम्यग्दृष्टि को रागद्वेषरूप प्राग से बचने के मार्ग का ज्ञान भी है, श्रद्धान भी है, किन्तु चारित्ररूप क्रिया न करने से रागद्वेष की अग्नि में जलता रहता है और संसार में नानाप्रकार के कष्ट उठाता हुमा दुःखी रहता है। वन में आग लग जाने पर अंधा पुरुष जहां-तहाँ दौड़नेरूप क्रिया तो करता है, किन्तु यथार्थ मार्ग का ज्ञान न होने से आग से बच नहीं सकता, उसी प्रकार मिथ्याइष्टि प्रतादिरूप क्रिया तो करता है. किन्तु मोक्षमार्ग का यथार्थज्ञान व श्रद्धान न होने से राग-द्वेषरूप आग से बच नहीं सकता और संसार में नानाप्रकार के दाख सहता है। इसप्रकार चारित्ररहित असंयतसम्यग्दृष्टि की और द्रव्यलिंगी मिथ्याष्टि की एक सी दशा है । संसार में राग-द्वेषरूप ज्वाला से बचने का उपाय मात्र एक सम्यकचारित्र है। श्री समन्तभद्राचार्य ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में कहा भी है "रागद्वषनिवृत्यै चरणं प्रतिपद्यते साधुः।" अर्थात-साधु पुरुष राग द्वेष को दूर करने के लिये सम्यक चारित्र को धारण करता है। चारित्र के बिना मात्र सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान से राग-द्वेष दूर नहीं होते हैं । सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान के बिना सम्यकचारित्र नहीं हो सकता। अतः तीनों की युगपत्ता से ही मोक्षसुख की प्राप्ति होती है। फिर भी कहीं पर सम्यग्दर्शन की मुख्यता से कथन है और कहीं पर सम्यग्ज्ञान की मुख्यता से कयन है और कहीं पर सम्यक्चारित्र की मुख्यता से कथन है। -. ग. 18-2-71/VIII/ सुल्तानसिंह रत्नत्रय ( तीनों मिलकर ) ही मोक्ष के मार्ग हैं शंका-"सम्यग्दर्शनजानचारित्राणि मोक्षमार्गः" यह सूत्र है। ये तीनों भिन्न भिन्नरूप से मोक्षमार्ग हैं या इन तीनों को एकता मोक्षमार्ग है ? माह समाधान-'सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' इस सूत्र में 'मोक्षमार्ग:' शब्द एक वचन है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र इन तीनों की एकता मोक्षमार्ग है। "मार्ग इति चैकवचननिर्देशः समस्तस्य मार्ग भावज्ञापनार्थः। तेन व्यस्तस्य मार्गस्वनिवृत्तिः कृता भवति । अतः सम्यग्दर्शनं सम्यग्ज्ञानं सम्यक्चारित्रमित्येतत् त्रितयं समुदितं मोक्षस्य साक्षान्मार्गो वेदितव्यः।" सर्वार्थसिद्धि । सूत्र में मार्गः इस प्रकार जो एकवचनरूप से निर्देश किया है वह सब मिलकर मोक्षमार्ग है, इस बात को जताने के लिये किया गया है। इससे प्रत्येक में मार्गपना है, इस बात का निराकरण हो जाता है। अतः सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र ये तीनों मिलकर मोक्ष का साक्षात् मार्ग हैं ऐसा जानना चाहिये। प्रवचनसार में भी श्री अमृतचन्द्राचार्य ने कहा है "मागमज्ञानतत्त्वार्थधदानसंयतत्वानां योगपद्यस्यैव मोक्षमार्गस्वं नियम्येत ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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