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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] । ११४१ ( तन्मयो ) है तथा अन्य कुछ भी करता नहीं है या छोड़ता नहीं है, वह प्रात्मा निश्चय से मोक्षमार्ग कहा गया है ।। १६१ ।। जिसको सम्यग्दर्शन होगा उसको पंचास्तिकाय, छहद्रव्य, साततत्त्व और नवपदार्थों का श्रद्धान अवश्य होगा। अतः पंचास्तिकाय आदि के श्रद्धान की अपेक्षा सम्यग्दर्शन का कथन करना व्यवहारसम्यग्दर्शन है, क्योंकि यह पराश्रित कथन है। किन्तु वह सम्यग्दर्शनरूप जो भाव है. उसका आत्मा से तादात्म्य सम्बन्ध है। अत: आत्मा ही सम्यग्दर्शन है, ऐसा कयन निश्चयनय से सम्यग्दर्शन है, क्योंकि यह स्वाश्रित है। इसीप्रकार सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र के विषय में जानना । सम्यग्दर्शन ज्ञान-चारित्र व्यवहारमोक्षमार्ग है और तन्मयी प्रात्मा निश्चयसम्यग्दर्शन है। निश्चय और व्यवहाररूप सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र लक्षणवाला मोक्षमार्ग आत्मा को मोक्षपद प्राप्त कराता है। कहा भी है सम्यक्त्व-चारित्र-बोध-लक्षणो मोक्षमार्ग इत्येषः। मुख्योपचाररूपः प्रापयति परमपदं पुरुषम् ॥ २२२ ॥ (पु० सि० उ० ) -जं. ग. 14-11-63/VIII-IX/ सरनाराम जैन निश्चय मोक्षमार्ग साध्य एवं व्यवहार मोक्षमार्ग साधन है शंका-भेद-व्यवहार का आश्रय छुड़ाने के हेतु 'आत्मधर्म' पत्रिका में कहा गया है-"निश्चय को मुख्य कहना ठीक नहीं है, किन्तु मुख्य को निश्चय कहना ठीक है ।" क्या यह ठीक है ? समाधान-साध्य-साधन के भेद से मोक्षमार्ग निश्चय ( मुख्य ) व्यवहार ( उपचार ) दो प्रकार का है। श्री अमृतचन्द्र आचार्य ने कहा भी है निश्चयव्यवहाराभ्यां, मोक्षमार्गो द्विधा स्थितः । तत्राद्यः साध्यरूपः स्याद द्वितीयस्तस्य साधनम् ।।२॥ तत्त्वार्थसार उपसंहार अर्थ-निश्चय और व्यवहार की अपेक्षा मोक्षमार्ग दो प्रकार का है। उनमें पहला अर्थात् निश्चयमोक्षमार्ग साध्यरूप है और दूसरा अर्थात् व्यवहारमोक्षमार्ग उसका साधन है। "नचेतद्विप्रतिषिद्ध निश्चयव्यवहारयोः साध्यसाधनभावत्वात् सुवर्ण-सुवर्णपाषाणबत् । अतः एवोभनयायत्ता पारमेश्वरी तीर्थप्रवर्तनेति ।" पंचास्तिकाय गाथा १५९ टीका। निश्चयमोक्षमार्ग और व्यवहारमोक्षमार्ग में परस्पर विरोध प्राता हो ऐसा भी नहीं है, क्योंकि सुवर्ण और सुवर्णपाषाण की भांति निश्चय-व्यवहार को साध्य साधनपना है। जिन भगवान की तीर्थप्रवर्तना दोनों नयों के प्राधीन है। सम्यक्त्व बोध चारित्रलक्षणो मोक्षमार्ग इत्येषः । मुख्योपचाररूपः प्रापयति परं पदं पुरुषम् ॥ २२२॥ पुरुषार्थसिद्धि उपाय इसप्रकार यह निश्चय और व्यवहाररूप सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र लक्षणवाला मोक्षमार्ग आत्मा को परमात्मपद प्राप्त कराता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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