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________________ ११२२ ] [पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : वाले म्लेच्छमनुष्य चक्रवर्ती के साथ आर्यखण्ड में आवें और म्लेच्छ राजाओं का चक्रवर्ती आदि के साथ विवाहादि संबंध पाइए है तिनके दीक्षा का ग्रहण संभवे है। [ल. सा० गाथा १९५ को संस्कृत टीका ] इन म्लेच्छ के भी ऐसे उत्कृष्टसंयम लब्धिस्थान नहीं होते जो उसी भव से मोक्ष हो सके। ऐसा लब्धिसार गाथा १९५ की संस्कृत टीका से प्रतीत होता है। विद्वत्मंडल इस पर विशेष विचारने की कृपा करें। -. ग. 5-12-66/VIII/ र. ला. जैन गणधरों के तद्भव मोक्षगामी होने का नियम नहीं शंका-क्या गणधर तद्भव मोक्षगामी ही होते हैं ? समाधान-सभी गणधरों के तद्भव मोक्षगामी होने का नियम नहीं है। -जं. ग. 23-5-63/ /प्रो. मनोहरलाल ६ मास ८ समय के ६०८ वें भाग में एक जीव की मुक्ति का नियम नहीं शंका-६ महिने ८ समय में ६०५ जीव निगोव से निकलते हैं और इतने समय में इतने ही जीव मोक्ष जाते हैं, यह नियम है। यह ६ महीना ८ समय का काल कब से कब तक का है। अर्थात कब से आरम्भ होकर चलता है अर्थात् उत्सपिणी-अवसर्पिणी आदि कोई काल आरम्भ होने के साथ या और किसी प्रकार । यदि ऐसा न हो और कभीका ६ महीना ८ समय माना जाय तब तो ६ महीने ८ समय के पूरे काल में बराबररूप से विभक्त समयों में मोक्ष होना व निगोद से निकलना होना चाहिये ? समाधान-छह महिने और आठसमय की गणना अनादिकाल से चली पा रही है। छहमहिने पाठसमय की ऐसी संख्या है कि जिससे एकवर्ष या कल्पकाल पूरा विभाजित नहीं होता। अत: छयस्थ यह नहीं जान सकता कि छह महिने और पाठसमय काल किस समय प्रारम्भ हुआ और किस समय समाप्त होगा। किन्तु मात्र छद्मस्थ के न जानने से, आर्ष ग्रंथ का कथन भूठ या अप्रमाण नहीं हो सकता। जिसप्रकार हम यह नहीं जानते कि अमुक निश्चित समय हमको दर्शनोपयोग होता है या इससमय हो रहा है तो क्या दर्शनोपयोग का प्रभाव है? दर्शनोपयोग अवश्य है, किन्तु हमारा ज्ञान इतना कम है कि हम उसको नहीं जान सकते। श्री गौतम गणधर ने दिव्यध्वनि के आधार पर द्वादशाङ्ग में नानाजीवों की अपेक्षा मोक्ष जाने का उस्कृष्ट अन्तर छह महिना कहा है और निरंतर मोक्ष जाने का उत्कृष्ट काल ८ समय कहा है अतः छहमहिने आठसमय का काल ६०८ बराबर भागों में विभक्त नहीं है । कहा भी है चदुण्हं खवगाणं अजोगिकेवलोणमतरं केवचिरं कालादो होवि, णाणाजीवं पडुच्च जहणेण एगसमयं ॥१६॥ उक्कस्सेण छम्मासं ॥१७॥ध० पु० ५ पृ० २०-२१ । चारों क्षपक और अयोगिकेवली का अन्तर कितने काल होता है ? नानाजीवों की अपेक्षा जघन्य से एकसमय होता है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छहमास होता है। "अट्टसमयाहिय-छ-मासम्भतरे खवगसेढि पाओग्गा अट्ठसमया हवंति ।" [ध० पु० ३ पृ० ९२ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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