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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] समाधान - कोई व्रत लेने के पश्चात् उसकी दृढ़ता के लिये भावना भानी चाहिये । 'तत्स्यैर्यार्थ भावनाः पंच पंच ॥ ३॥ वाङ्गमनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपण समित्यालोकितपान भोजनानि पंच ॥४॥ स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहरांग निरीक्षण पूर्वता नुस्मरणवृष्येष्ट रसस्वशरीरसंस्कार त्यागाः पंच ॥७॥ - तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ७ व्रतों की दृढ़ता के लिये श्री उमास्वामी आचार्य ने पाँच पाँच भावनायें कही हैं । जैसे अहिंसाव्रत की दृढ़ता के लिये वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति ( चार हाथ पृथिवी देखकर चलना ), श्रादाननिक्षेपणसमिति ( देखकर पदार्थ को रखना और उठाना ). सूर्यप्रकाश में देखकर भोजन करना । इन कार्यों से अहिंसाव्रत में दृढता श्राती है और इनसे विपरीत कार्यों से अहिंसाव्रत में कमजोरी आती है। इसी प्रकार ब्रह्मचर्यव्रत की दृढ़ता के लिये (१) स्त्रियों में राग उत्पन्न करने वाली कथा के सुनने का त्याग, (२) स्त्रियों के मनोहर अंगों को देखने का त्याग, (३) पूर्व में भोगे हुए भोगों को याद करने का त्याग, (४) कामोत्पादक भोजन का त्याग, (५) अपने शरीर को सजाने का त्याग; ये पाँच भावना हैं । इन पांच भावनाओं से विपरीत कार्यों से ब्रह्मचर्यव्रत कमजोर होता है । सर्ग १४ अर्थ -- जो मुनि तपस्वी, व्रती, मौनी, संवरस्वरूप तथा जितेन्द्रिय हो और स्त्री की संगति करले तो वह अपने संयम को कलंक ही लगावे है । इस प्रकार व्रतों को दृढ़ करने के लिये व्रतों के अनुकूल वातावरण बनाये रखना चाहिये, व्रतों के प्रतिकूल वातावरण नहीं उत्पन्न करना चाहिये । परीषह या उपसर्ग के आने पर व्रत की दृढ़ता की जांच स्वयमेव हो जायगी । [ ७६१ यस्तपस्वी व्रती मौनी संवृतात्मा जितेन्द्रियः । कलङ्कयति निःशंकं स्त्रीसखः सोऽपि संयमं ॥ ३ ॥ ज्ञानार्णव, श्मसान में मुनित्व का अभ्यास करना, कड़ी धूप में तप करना, वर्षाऋतु में, वृक्ष के नीचे और शीत में नदी के तीर ध्यान लगाना, ये सब कार्य अभ्यास के लिये हैं, न कि व्रतों की दृढ़ता की जांच के लिये । अवसर आने पर व्रतों की दृढ़ता की परीक्षा स्वयमेव हो जाती है । जान बूझकर व्रतों के प्रतिकूल परिस्थितियाँ नहीं जुटानी चाहिए, किन्तु जहां तक सम्भव हो उन परिस्थितियों से दूर रहना चाहिए । - जै. ग. 10-8-72 / IX / र. ला. जैन, मेरठ मुनि रात्रि में न बोलें शंका - मुनि रात्रि में १०-११ बजे तक स्त्री पुरुषों से संकेतों से बात कर सकता है या नहीं ? समाधान - रात्रि में मुनि महाराज मौन से रहते हैं । फिर भी रात्रि में धर्मकार्यवश कुछ संकेत कर दें तो वह अपवाद है । हस्तिनागपुर में श्री प्रकंपन आदि ७०० मुनियों पर जब उपसर्ग हुआ तो अन्य स्थान में रात्रि को नक्षत्र देखकर दूसरे मुनि महाराज ने 'हा' शब्द का उच्चारण किया था । - जं. सं. 27-11-58/V / पं. बंशीधर शास्त्री चिकित्सा हेतु श्रावक मुनि के शरीर पर चन्दन के तेल की मालिश कर सकता है शंका- मुनि चन्दन के तेल की मालिश करवा सकता है या नहीं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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