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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] कोई संस्था अगर उनकी इस समग्र सामग्री को सुन्दर सम्पादन के साथ पुस्तकाकार प्रकाशित करा देवे तो ज्ञान-रसिकों को काफी लाभ हो और यही उनकी सच्ची सार्थक श्रद्धाञ्जलि हो। उन्होंने ज्ञान तपस्या में ही अपना अधिकांश जीवन व्यतीत किया था वे सरल स्वभावी, शांत, स्वाध्याय शील, घर-गृहस्थी से प्रायः विरक्त ज्ञानी व्रती नर रत्न थे। मुझ पर तो उनका-अत्यंत स्नेह था। एक दफा मैं सख्त बीमार हो गया था तो वे मुझसे मिलने के लिये पधारे थे उनकी हार्दिक सद्भावना ही कहिये कि-मैं रोग मुक्त हो गया । जो काम दवा से नहीं होता वह दुआ से हो जाता है। ऐसे ज्ञान-समर्पित जीवी महान् विद्वान् के प्रति मैं सादर स्नेहांजलि प्रकट कर कृतज्ञता व्यक्त करना अपना कर्तव्य समझता हूँ। विशिष्ट विद्वान् * पं० नाथूलालजी जैन शास्त्री, प्राचार्य, दि. जैन महाविद्यालय इन्दौर पू० ब्र० रतनचन्दजी मुख्तार से मेरा दो बार प्रत्यक्ष मिलना हुआ था। प्रथम बार इन्दौर में महासभा प्रबन्धकारिणी की बैठक के अवसर पर जयधवला के प्रतिमाभिषेक प्रकरण पर ग्रन्थाधार पर चर्चा हई थी। दूसरी बार सर हुकमचन्द संस्कृत महाविद्यालय में मुख्तार सा० पधारे थे । अभिषेक के विषय में त्रिलोकप्रज्ञप्ति आदि के आधार पर दो बार मुख्तार सा० के प्रश्न भी आये थे जिनका उत्तर भेजा गया था। मुख्तार सा० ने जैन पत्रों में शंका समाधान स्तम्भ के माध्यम से अपने अनुभव से समाज को बहुत लाभ पहुँचाया है। उनकी 'स्वरूपाचरण' व 'पुण्य-शुभोपयोग' आदि पर विस्तृत रचनाएँ मैंने पढ़ी हैं। प्राचार्य कल्प श्र तसागरजी महाराज आदि के पास महीनों रहकर मुख्तार सा० ने स्वाध्याय द्वारा साधू-सेवा की है । धवला आदि पर उनका गहरा अध्ययन था। इस दृष्टि से वे जैन समाज के विशिष्ट विद्वान थे। जन्म लेने वाले की मृत्यु अटल है, परन्तु स्व० ब० रतनचन्दजी का नाम तो अमर रहेगा। वर्षों तक उनका नाम व काम दिगम्बर जैनियों को प्रेरणा देता रहेगा। सिद्धान्त सूर्य * पं० फतेहसागर शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य, उदयपुर कैसे लिखू ? क्या लिखू ? पूज्य मुख्तार सा० के सम्बन्ध में ! सतत अध्ययनशील, उच्च विचारवान व्यक्तित्व के धनी मुख्तार सा० का सम्पूर्ण जीवन धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र में ही व्यतीत हुआ। उनका आदर्श कृतित्व और व्यक्तित्व समाज के लिये प्रेरणास्पद है। सिद्धान्त ग्रन्थों के तलस्पर्शी ज्ञान के धनी होने के कारण हम इन्हें 'सिद्धान्तसूर्य' भी कह सकते हैं । इनकी वाणी में सत्यता, मधुरता, गम्भीरता एवं रोचकता थी। एक बार जो कोई उनके प्रवचन सुन लेता था, वह अप्रभावित नहीं रह पाता था। उनकी कथनी एवं लेखनी दोनों ही में अनेकान्त पक्ष झलकता था। उन्होंने कभी मतभेद जैसी बात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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