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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ३५ यहाँ मैं उनके लघुभ्राता बाबू नेमिचन्दजी वकील का भी उल्लेख करना उचित समझता हूँ । उनका ज्ञान और त्याग भी मुख्तार सा० से कम नहीं है । उन्होंने भी अपनी चलती वकालत त्याग कर शेष जीवन स्वाध्यायपूर्वक बिताया है। चूँकि वे समाचारपत्रों की दुनियाँ से दूर रहते हैं अतः लोग उन्हें जानते नहीं हैं । ये युगल भ्राता आदरणीय हैं । इनके जीवन से शिक्षित समाज को शिक्षा लेनी चाहिए । स्मरणशक्ति के धनी * पण्डित मनोरञ्जनलालजी जैन शास्त्री, उदयपुर श्रीमान् पूज्य ब्रह्मचारी रतनचन्दजी मुख्तार एक आदर्श सच्चरित्र व्यक्ति थे । आप जैन समाज के मूर्धन्य विद्वानों में थे । आपकी स्मरणशक्ति विलक्षण थी । करणानुयोग के तो आप महत्तम विद्वान् थे। कई वर्षों तक आपने 'जैनसन्देश' के शङ्का समाधान विभाग का सञ्चालन किया । श्रीमज्जिनेन्द्रदेव से प्रार्थना है कि स्व० पण्डितजी अब शीघ्र ही मनुष्यभव पाकर अष्टमभूमि को प्राप्त हों । श्रागमज्ञानी अटूट श्रद्धानी * श्री धर्मप्रकाश जैन शास्त्री, महामंत्री प्रा० महावीरकीर्ति धर्मप्रचारिणी संस्था, अवागढ़ परमादरणीय पण्डित रतनचन्दजी मुख्तार का नाम समाज के उन महान् लगनशील ज्ञानियों में प्रमुख है। जिन्होंने अपनी लेखनी और वाणी को समाज के कल्याण हेतु अनेक प्रकार से अविरल गतिशील किया है । मैं जिस समय मोरेना विद्यालय में था तभी सन् १९४७ से बराबर उनके ज्ञान स्तम्भों का रसास्वादन करता रहा हूँ । अनेक ट्रैक्टरों, पुस्तकों तथा समाचार पत्रों में प्रकाशित लेखों तथा 'शङ्का समाधान' प्रादि के रूप में उनकी ज्ञान साधना का स्मरण सम्पूर्ण जैनजगत् को है । यह निर्विवाद सत्य है कि उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन ज्ञान साधना में व्यतीत किया । उनके त्याग, उनकी आगमश्रद्धा, उनकी लगन व उनकी सहनशीलता की प्रशंसा कहाँ तक की जावे, उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करके समाज को सच्चा ज्ञान दिया है । ऐसे धैर्यवान, कर्मठ, निर्लोभ धर्मात्मा का उनकी महान् सामाजिक सेवाओं के लिए अवश्य स्मरण किया जाना चाहिए। मैं उनकी स्मृति में प्रकाशित ग्रन्थ की सफलता की कामना करता हुआ स्वर्गीय पूज्य मुख्तार सा० के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हूँ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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