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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ६७७ रागद्वेष बैठा है। इस वास्ते भगवान की भक्ति उनमें उनके गुणों का चितवन करने से रागद्वेष की निवृत्ति होती है। अतएव सम्यष्टि को भगवान् की भक्ति करनी चाहिये । अपने विरोधी मानकर, जैनधर्मी तो रागद्वेष रहित है, कोई उनका अन्तरंग से विरोधी नहीं है, भैया ! कोई भी मनुष्य जो है, कानजी स्वामी का विरोधी नहीं है, वह तो यह चाहता है कि तुम जो इतनी इतनी भूल पकड़े हो, इससे तो तमाम संसार उल्टा डूब जायेगा। वो दो हजार के भले की बात कहते हों वह तो उल्टा डूबने का मार्ग है । मिथ्यात्व का अश ही बुरा होता है। अरे हमारी बात रह जाय, वह बात काहे की । जब पर्याय ही चली जाय, जिस पर्याय में महंबुद्धि है तब बात काहे की है तुम्हारा यह पर्याय सम्बन्धी ज्ञान, यह पर्याय सम्बन्धी चारित्र, यह पर्याय सम्बन्धी सुन्दरता और आयु को अन्त । अरे! सुन्दरता तो अब ही चली जाय। द्रव्य से विचार प्रब करो, वह रख लेवे अब ये जवान हैं, रख लेवे कि हम ऐसे ही बने रहें, नहीं रख सकते, अरे ! तुम जो बोलना चाहो उसको भी नहीं रख सकते। क्यों ? वह तो उदय में आया और चला गया ........। हम तो अभी भी कहते हैं कि स्थितिकरण की आवश्यकता है ***** दर्शनाच्चरणाद्वापि, प्रत्यवस्थापन चलतां धर्मवत्सलः । । आप, हमको तो शत्रुभाव उनमें रखना भी नहीं चाहिए। कषाय के उदय में मनुष्य क्या-क्या काम करता है— कौन नहीं जानता है ? हम तो कहते हैं अब भी समझाने को आवश्यकता है अव भी उपेक्षा करने की श्रावश्यकता नहीं है । ऐसा व्यवहार करो कि वो समझ जाँय । बड़े से बड़े आप समझो कि जो नाहरि उसका पेट विदारण कर दिया, अपने बच्चे का सुकोशल मुनि का वो नाहरि ने जब विदारण कर दिया तब मुनि उनके पिता यशोधर वहाँ आये वो देव केवलज्ञान निर्वाण की पूजा करने वगैरह को, उससे कहते हैं कि जिस पुत्र के वियोग से यह दशा भई आज उसोको विदार दिया तो उसी समय उसके परिणामों ने पलटा खाया, वह सिर धुनने लगी। अरे! सिर घुनने से क्या होता है। महाराज अब तो पाप का प्रायश्चित क्या है ? इस पाप का प्रायश्चित यही है कि सबका त्याग करो, तब इससे बढ़कर क्या कर सकती थी ? और जब नाहरि जैसी सुधर जाती है तो मनुष्य न सुधर जाय ? मगर यह बात हमारे मन में हो जब तो यह कल्पना नहीं होनी चाहिये कि ये हमारे विरोधी हैं। वह कषाय के उदय में बोलता है-बड़े-बड़े बोलते हैं – क्या बड़ी बात है । रामचन्द्रजी कषाय के उदय में ६ महीने मुर्दा को लिए फिरे, सीता का वियोग हुआ तो मुनि से पूछता है कोई उपाय है बताओ तो हमारा कल्याण कैसे होगा ? तद्भव मोक्षगामी, देशभूषण - कुलभूषण से सुन चुका और एक स्त्री के वियोग में इतना पागल हो गया । अरे तुम बता तो दो जरा, कबै हमारो भलो हुइयै, तो उन्होंने जो उत्तर दिया जो देना था- सीता के वियोग का उत्तर नहीं दिया। यह उत्तर दिया कि जब तक लक्ष्मण से स्नेह है, तब तक तेरा कल्याण नहीं होगा। और जिस दिन लक्ष्मण से स्नेह छूटा तेरा कल्याण हो गया, देख लो उसी दिन हुआ। मेरी समझ में तो आप लोग विद्वानजन हैं। ऐसी कोई चिट्ठी लिखो जिससे मिथ्या मान्यता छूट जाय । हम तो यही कहेंगे अन्त तक यही कहेंगे । ... 9 हमारो मत इन्होंने इन्कार कर दिया। जो उनकी इच्छा है—उसमें हम क्या कर सकते हैं। उनके पण्डाल में नियम से ३ दिन गये ४ दिन गये उनका सुना, करा, सब कुछ किया, उन्होंने जो अभिप्राय लगाया हो और आप लोगों ने जो 1 Jain Education International स्थितिकरणमुच्यते ॥ १६ ॥ २० श्रा० ******** १. नोट- यहां कोई १०-१५ शब्द मात्र छूट गये हैं। दीमक के ग्रास बन जाने से नोट नहीं किया जा सका । --सम्पादक For Private & Personal Use Only ...TAM www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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