SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 705
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्तिस्व और कृतित्व ] [ ६६१ समाधान-संस्कृत कोष में 'यज्ञ' का अर्थ है-पूजा का कार्य, कोई भी पवित्र या भक्ति सम्बन्धी क्रिया । अग्नि का नाम भी यज्ञ है। जैनधर्म के अनुसार जो जल, चन्दन प्रादि अष्टद्रव्य से जिनेन्द्रदेव की पूजा की जाती है, वह यज्ञ है। अथवा विशेष विधान के पश्चात् जैन शास्त्रानुसार जो अग्नि में हवन किया जाता है वह यज्ञ है। जिसमें जीवहिंसा होती हो, पशु प्रादि का अग्नि में होम किया जाता हो वह वास्तव में यज्ञ नहीं है, क्योंकि वह पवित्र क्रिया नहीं है । -न. ग. 6-4-72/VII/ एन. जे. पाटील पूजा के प्रारम्भ में प्राह्वान किसका होता है ? शंका-पूजन के प्रारम्भ में अत्रावतर अवतर संवोषट् आह्वानम् ........... इत्यादि बोलते हैं। इस मंत्र द्वारा किनको सम्बोधन किया जाता है, किनसे सन्निधि करना अपेक्षित होता है तथा किनको निकट किया जाता है? समाधान-पूजन के प्रारम्भ में ऐसा कहकर स्थापना में भगवान् का आह्वान किया जाता है तथा हृदय में विराजमान किया जाता है। -पत्राचार 5-12-15/न. ला. जैन, भीण्डर जिनेन्द्र पूजा के समय ठोने की आवश्यकता शंका-बेबी में भगवान की प्रतिमा स्थापित है तो ठोने में स्थापना करनी चाहिये या नहीं ? समाधान-श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार श्लोक ११९ की टीका में पं० सदासुखदासजी ने इसप्रकार लिखा है-"बहरि व्यवहार में पूजन के पंचअंगनि की प्रवृत्ति देखिये है। आह्वानन, स्थापना, सन्निधीकरण, पूजन और विसर्जन सो भावनि के जोड़ वास्ते आह्वानन आदि के पुष्प क्षेपण करिये है । पुष्पनिको प्रतिमा नहीं जाने हैं। ए तो आह्वाननादिकनिका संकल्प ते पुष्पांजलि क्षेपण है । पूजन में पाठ रच्या होय तो स्थापना करले नाहीं होय तो नाहीं करे। अनेकांतिनिके सर्वथा पक्ष नाहीं।" इससे स्पष्ट है कि यदि पूजन में आह्वानन आदि का पाठ हो तो ठोने में स्थापना करले, अन्यथा नहीं; किन्तु ठोने की स्थापना को प्रतिमा नहीं जानना । प्रतिमा में अरहंत सिद्ध प्राचार्य उपाध्याय साधु के रूप का निश्चय कर 'प्रतिबिंब' में ध्यान पूजन स्तवन करना चाहिए। विशेष के लिये उक्त टीका देखनी चाहिये। -जें. सं. 25-9-58/V/ कॅ. च. जैन, मुजफ्फरनगर देवपूजा : स्थापना शंका-जिन श्रीजी की प्रतिमा वेदी में विराजमान हो अगर उनका पूजन करना चाहें तो उनकी स्थापना करनी चाहिए या नहीं ? वेदी में श्री महावीर स्वामी विराजमान नहीं हैं, मुझे उनकी पूजन करना है सो स्थापना करनी चाहिए या नहीं ? जैसे नन्दीश्वर द्वीप की पूजा करते हैं तो स्थापना करते हैं कारण नन्दीश्वर अपने यहां पर स्थापित नहीं है । इसलिए जिस प्रतिमा की पूजा करे वे श्रीजी सम्मुख वेदी में विराजमान हैं तो उनकी स्थापना करना वाजिब है या नहीं ? प्रमाण लिखें। समाधान -श्री रत्नकरण्डश्रावकाचार (भाषा टीका ) के श्लोक ११९ की टीका में पण्डित सदासखशासजी ने इस प्रकार लिखा है-"पक्षपाती कहै है जिस तीर्थंकर की प्रतिमा होय तिनके आगै तिनही की पूजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy