SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 703
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ६५९ व्यवहार की अपेक्षा पाषाण आदि से निर्मित प्रतिमा स्थावर प्रतिमा है और समवशरण से मण्डित जङ्गम जिन प्रतिमा है। कहा भी है 'व्यवहारेण तु चन्दन - कनक - महामणि- स्फटिकावि घटित प्रतिमा स्थावरा । समवसरण मण्डिता जङ्गमा जिनप्रतिमा प्रतिपाद्यते ।' अष्टपाहुड़ पृ. ४५ — जै. ग. 2-11-72 / VII / रो. ला. जैन प्रतिमा का अभिषेक श्रागमानुसारी है। शंका- प्रतिमा अरिहंत अवस्था को है । न्हवन जन्म समय की क्रिया है । पूजन विषयक प्रतिमा का म्हवन करना उचित है या नहीं ? समाधान - केवलज्ञानी की साक्षात् पूजा विषै न्हवन नाहीं, प्रतिमा की पूजा हवनपूर्वक ही कही है। जहाँ पूजा की विधि का निरूपण है तहाँ प्रथम न्हवन ही कह्या है— 'स्नपनं पूजनं स्तोत्रं जपो ध्यानं श्रुतस्तव: । षोढा त्रिपोदितासद्भिः देवसेवासु गेहिनां ।' यशस्तिलक काव्य चर्चा समाधान पृ० ५७ पर पं० भूवरदासजी ने भी इसी प्रकार समाधान किया है। मूर्ति पर अभिषेक श्रागमोक्त क्रिया है शंका-अरहन्त भगवान का तो अभिषेक होता नहीं फिर उनकी मूर्ति का अभिषेक क्यों किया जाता है ? ब्राह्मणों में शिव को पिंडी पर जल चढ़ाया जाता है, संभव है यह अभिषेक की प्रथा ब्राह्मणों से आ गई हो । यदि ऐसा है तो इस का निषेध करना चाहिये । मूर्ति की सफाई के लिये मूर्ति को वस्त्र से पोंछा जा सकता है । - जै. सं. 27-3-58 / VI / कपूरीदेवी समाधान - साक्षात् प्ररहन्त भगवान और उनकी प्रतिमा में कथंचित् अंतर है, जिस प्रकार पिता और पिता के फोटू में अंतर है । पिता के फोटू को सुरक्षित रखने के लिये और आदर भाव के कारण फोटू को उत्तम चौखटे व कांच में जड़कर ऊपर दीवार पर टांगा जाता है, किन्तु पिता के साथ तो इस प्रकार का व्यवहार नहीं होता है । फोटू व पिता में अंतर होते हुए भी फोटू के देखने से पिता के गुणों का स्मरण होता है और जीवन में सफलता के लिये प्रेरणा मिलती है, क्योंकि पिता की मुद्रा ज्यों की त्यों फोटू में है । जिस प्रकार पिता और पिता के फोटू के प्रति आदर आदि में अंतर है उसी प्रकार श्री अरहंत भगवान और प्रतिमा की पूजा में अंतर है। श्री अरहंत भगवान की तो प्रतिष्ठा नहीं होती है और न मंत्रों द्वारा शुद्धि होती है, किन्तु प्रतिमा की प्रतिष्ठा भी होती है और मंत्रों द्वारा शुद्धि भी होती है । यद्यपि श्री अरहंत भगवान का अभिषेक नहीं होता है और वे सिंहासन से अन्तरिक्ष में रहते हैं, किन्तु प्रतिमा का अभिषेक भी होता है और सिंहासन पर विराजमान की जाती है । Jain Education International आज से लगभग १५०० वर्ष पूर्व महान विद्वान् वीतराग दिगम्बर आचार्य श्री यतिवृषभ हुए हैं जिन्होंने कषायपाहुड जैसे महान् ग्रन्थ पर चूर्णिसूत्र लिखे हैं तथा तिलोयपण्णत्तो ग्रन्थ लिखा है । उन्होंने नन्दीश्वरद्वीप कथन करते हुए प्रकृत्रिम जिनप्रतिमानों के अभिषेक का कथन किया है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy