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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ६४७ समाधान-तीन दिन ( २४ प्रहर ) का दही मर्यादा रहित हो जाने के कारण अशुद्ध है, अतः अशुद्ध दही से निकाला हुआ घी कैसे शुद्ध हो सकता है ।" - जै. ग. 5-9-74 / VI / ब्र. फूलचन्द दही व छाछ की मर्यादा शंका- वही व छाछ की क्या मर्यादा है ? समाधान -- दही व छाछ की मर्यादा आर्ष ग्रन्थों में दो दिन की कही गई है । नीलो सूरणकंदो दिवसद्वितयोषिते च दधिमथिते । विद्ध' पुष्पितमन्नं कालिगं द्रोणपुष्पिका त्याज्या ॥ ६-८४ ।। अमितगति श्रावकाचार " षोडश प्रदरावुपरि त दधि च त्यजेत् । " ( षट्प्राभृत संग्रह, चारित्रपाहुड़, श्लोक २१ की टीका पृ. ४३) बधितादिकं सर्वं त्यजेदृध्वं दिनद्वयात् । सुधीः पापाविभीतस्तु मृतं द्वये केन्द्रियादिभिः ॥१७ १०९ ॥ प्रश्नोत्तर श्रावकाचार इन सब प्रग्रन्थों में दही व छाछ की मर्यादा सोलहपहर अर्थात् दो दिन बतलाई गई है । यदि उससे पूर्व भी रस चलित हो जावे तो वह अभक्ष्य हो जाता है । - जै. ग. 26-10-67/ VII / र. ला. जैन, मेरठ मक्खन अभक्ष्य है शंका- नौनी घी ( मक्खन ) की कुछ मर्यादा है क्या ? उस बीच तो वह खाया जा सकता है ?.. समाधान - नवनीत ( लूणी, मक्खन ) की यद्यपि दो मुहूर्त की मर्यादा है सो तपावने की अपेक्षा है, खाने की अपेक्षा नहीं कही गई है। खाने का तो निषेध है । यन्मुहूर्तयुगतः परः सदा, मूच्छंति प्रचुरजीवराशिभिः । तलिंति नवनीतमत्र ये, ते व्रजंति खलु कां गतिंगृताः ॥ ५ ॥ ३६ ॥ -अमितगति श्रावकाचार अर्थ - लूणी दोय मुहूर्त पीछे प्रचुर जीवनि के समूहनि करि मूच्छित होय है । जो लूणी को खाय हैं मरकर कौन गति को जाय हैं ? अर्थात् कुगति को जाय हैं । Jain Education International अल्प फलवहुविघातान्मूलक मार्द्राणि शृङ्गवेराणि । नवनीत निम्बकुसुमम् कैतकमित्येवमवहेयम् ॥८५॥ रत्नकरण्ड श्रावकाचार अर्थ – फल थोड़ा और हिंसा अधिक होने से गीले अदरक, मूली, मक्खन, नीम के फूल, केतकी के फूल तथा इनके समान और दूसरे पदार्थ भी छोड़ने चाहिये । 1. गर्म के दही की मर्यादा तीनों ऋतुओं में १६ पहर की है। अतः सोलह पहर से ऊपर के दही का त्याग दूध कर देना चाहिये । चा. पा., टीका २१1४3: अमित श्र. ६८४; सा. ध. 31११; व्रतविधान संग्रह ३१ | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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