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________________ ६४६ ] [पं. रतनचन्द जैन मुख्तार : इसप्रकार दिगम्बरजनाचार्यों ने सप्तम्यसन करने से सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति का निषेध किया है। -जं. ग. 20-8-70/VII/ सुलतानसिंह भक्ष्याभक्ष्य दूध भक्ष्य है शंका-दूध भक्ष्य है या नहीं ? समाधान-दूध भक्ष्य है । षट् रस में दूध भी एक रस है । यदि गाय या भैंस का सब दूध उनके बच्चों को पिला दिया जावे तो बच्चों को बड़ा कष्ट होता है और कभी-कभी मृत्यु तक हो जाती है। दूध निकालने से गाय या भैंस को काट नहीं होता यदि दूध न निकाला जावे तो कष्ट होता है। तत्त्वार्थसार निर्जरा अधिकार श्लोक ११ में कहा है-तैल, दूध, मठा, दधि, घी इन पाँच रसों में से एक, दो, तीन, चार या पाँचों का त्याग करना रस परित्याग नाम तप होता है । यदि दूध अभक्ष्य होता तो उसके सर्वथा त्याग का उपदेश होता। इससे सिद्ध है कि गाय, भैंस का दूध भक्ष्य है। -णे. सं. 25-9-58/V/ के. घ. जैन, मुजफ्फरनगर असंयतसम्यक्त्वी के मिल्क पाउडर भक्ष्य है या नहीं ? शंका-एक अविरतसम्यग्दृष्टि अमेरिकन मिल्कपाउडर से बना हुआ दूध चाय पीते हुए अपने सम्यक्त्व को कायम रखता है या नहीं? समाधान-मनुष्य, तियंच, देव, नारकी चारों ही गतियों में अविरत सम्यग्दष्टि होते हैं। इसी प्रकार नाना-क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न कालों में अविरतसम्यग्दृष्टि होते हैं । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव की अपेक्षा नाना अविरतसम्यग्दृष्टियों के आहार में भी भेद हो जाता है, एकप्रकार का नहीं होता। अतः अविरतसम्यग्दृष्टि के आहार के विषय में कोई विशेष नियम नहीं कहा गया है। अविरतसम्यग्दृष्टि मनुष्य अभक्ष्य का सेवन नहीं करता। यदि मद्या मांस आदि अभक्ष्यपदार्थों का सेवन करता है तो वह सम्यग्दृष्टि नहीं रह सकता। सम्यग्दष्टि शरीर और भोगों से विरत रहता है वह शरीर या भोग उपभोग के लिये अभक्ष्य का सेवन नहीं करता। यदि अमेरिकन मिल्कपाउडर में प्रशूद्धपदार्थ का मेल है तो अविरतसम्यग्दृष्टि उसको ग्रहण नहीं कर सकता। -जं. ग.1-11-65/VII/ ओमप्रकान षट् रस शंका-दूध की मलाई षट् रस में से किस रस में आती है ? समाधान-दूध की मलाई दूध रस में आती है। -जै. ग. 29-8-66/VII/र. ला. जैन, मेरठ तीन दिन का दही अशुद्ध है। शंका-आजकल कुछ लोग २४ प्रहर ( तीन दिन ) के वही की छाछ बनाकर घी निकालते हैं, तो क्या वह घी शुद्ध है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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