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________________ भ्यक्तित्व और कृतित्व ]. [ ६३६ अर्थ-मद्यत्याग, मांसत्याग, मधुत्याग, रात्रिभोजनत्याग, पंचदम्बरफलत्याग, देवदर्शन या पंचपरमेष्ठी स्मरण, जीवदया, छने जल का पान । ये पाठ श्रावक के मूलगुण अर्थात् श्रावकधर्म के प्राधारभूत मुख्यगुण हैं। श्रावक के रात्रिभोजनत्याग है अतः उनको रात्रि में बना हुआ भोजन भी नहीं करना चाहिये । श्रावक के मद्य, मांस, मधु व पंच उदम्बरफल का त्याग होता है. विदेशी दवाओं में इनके प्रयोग की सम्भावना है, अतः विदेशी दवानों का प्रयोग नहीं करना चाहिये । -जै. ग. 26-11-70/VII/ ग. म. सोनी पानी छानने की समीचीन भागमोक्त विधि शंका-जैन ग्रंथों में पानी छानने का सही-सही क्या विधान है? क्या कपड़े के छन्ने से छना हुआ पानी पूर्ण रूप से प्रहण करने योग्य हो जाता है या नहीं ? जबकि विज्ञान के प्रयोगों द्वारा यह प्रमाणित है कि पानी को जब तक उबाला या अन्य क्रियाओं द्वारा विश्लेषित न किया जाय तब तक पानी पीने योग्य नहीं होता। उबालने से तो जीव हिंसा होती है, उस समय कौनसा उपयुक्त जैनधर्मानुसार साधन अपनाना चाहिये, स्पष्ट लिखिये ? समाधान-पानी छानने के दो अभिप्राय हैं। पानी में त्रसजीव पाये जाते हैं यह विज्ञान के प्रयोगों द्वारा सिद्ध हो चुका है। उन त्रसजीवों की हिंसा से निवृत्त होने के लिये पानी छाना जाता है। दूसरे उन जीवों के पेट में पहुंच जाने से स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है और स्वास्थ्य खराब हो जाने से संयम की साधना ठीक नहीं हो सकती। संयम मोक्षमार्ग है। अतः जो मोक्ष के इच्छुक हैं उनको अनछने पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिये। छन्ना ३६ अंगुल लम्बा और २४ अंगुल चौड़ा होना चाहिये, किंतु किसी भी हालत में बर्तन (भांड) के मुख से तिगुने से कम नहीं होना चाहिये । छन्ने का कपड़ा इतना गाढ़ा हो कि उसको दोहरा करने पर उसमें से सूर्य की किरणें न दिखें। छन्ने को दोहरा करके बर्तन के मुह पर रखें और उसमें गड्ढा कर दें। पानी छानते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि अनछना पानी इधर-उधर गिरने न पावे और छन्ने के चारों कोने भी गीले न होने पावें। जब पानी छान लिया जावे तब उस छन्ने के उपरि भाग पर छना हा पानी डालकर उस पानी को एक बर्तन में ले लें जिससे उस छन्ने के ऊपर के त्रसजीव उस बर्तन में प्रा जावें। उस जीवानी के पानी को कडेदार बाल्टी द्वारा कुए में, जिस तरफ से पानी भरा था, पहुँचा दिया जावे। जिससे वे त्रसजीव जल में अपने स्थान पर पहुंच जावें । छन्ना मैला नहीं होना चाहिए। पानी भरते समय डोल या बालटी को ऊपर चाहिये। कड़ेदार बाल्टी जब पानी तक पहुंच जावे तब उलटी करनी चाहिये । जीवानी का जा डालना चाहिये। छनने का कपड़ा नया होना चाहिये अर्थात् अन्य किसी काम में न लाया गया हो। इसप्रकार पानी छानने से पानी त्रसजीव रहित हो जाता है। जलकाय के जीव उसमें पाये जाते हैं और वे भी कभी कभी हानिकारक हो जाते हैं। इसलिये तथा रसना इंद्रिय को जीतने के लिये पानी उबालकर अथवा किसी पदार्थ से अचित्त करके जल ग्रहण करना उत्तम है । जो सचित्त त्यागी नहीं हैं वे जल छानकर बिना अचित्त किये भी ग्रहण कर सकते हैं । विशेष के लिये श्रावक धर्मसंग्रह व क्रियाकोष देखना चाहिये। -जं. सं. 12-6-58/V/ कोमलचन्द जैन, किशनगढ़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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