SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 653
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ६०६ सौधर्म स्वर्ग के प्रथम विमान तथा उसमें स्थित प्रासादों की ऊँचाई शंका-सुमेरुपर्वत के ठीक ऊपर पहला इंद्रक विमान है। उस इन्द्रक विमान के ध्वज दण्ड का शिखर सुमेरु पर्वत के शिखर से कितनी दूरी पर है अर्थात प्रथम इन्द्रक विमान की कुल कितनी ऊँचाई है ? समाधान-प्रथम इन्द्रक विमान-तल का बाहल्य ११२१ योजन है तथा उस पर स्थित प्रासाद ६०० योजन ऊँचे हैं। इस प्रकार पहले इंद्रक विमान के ध्वजदण्ड का शिखर सुमेरु पर्वत के शिखर से एक बालाग्र सहित १७२१ योजन दूरी पर है । प्रथम इंद्रक विमान की कुल ऊँचाई १७२१ योजन है । एकविंशशत चैकं, सहस्र च घनो द्वयो। एकोनशतहीनं च बहला परमोदयोः ॥७३॥ प्रसादा षट्छतोच्छायाः योजनः पूर्वकल्पयोः। ततः पञ्चशतोच्छायाः परयोः कल्पयो योः ॥७६॥ लोकविभाग सर्ग १० सौधर्म और ऐशान इन दो कल्पों में विमान तल का बाहल्य एक हजार एक सौ इक्कीस योजन है तथा इन दो कल्पों में स्थित प्रासाद छह सौ योजन ऊँचे हैं। प्रथम इंद्रक विमान सौधर्म स्वर्ग में है अतः उसके विमानतल का बाहल्य एक हजार एक सौ इक्कीस योजन है, उसमें स्थित प्रासाद छहसौ योजन ऊँचा है। ( ११२१+ ६०.)=१७२१ योजन । -जे. ग. 13-1-72/VII/र. ला.जन, मेरठ तमःस्कन्ध को अवस्थान; किन-किन स्वर्गों में अन्धकार है ? शंका-अरुणवर समुद्र जिससे ब्रह्म स्वर्ग तक तमःस्कंध बना हुआ है, कौनसा समुद्र है ? बीच में जो विमान पड़ते होंगे वे भी उस तमःस्कंध से ग्रसित हैं या नहीं। समाधान-अरुणवर समुद्र ६ वाँ समुद्र है । अर्थात् नंदीश्वर समुद्र के पश्चात् अरुणवर समुद्र है (ति. १०।१-७)। अरुणवर द्वीप की बाह्य जगती से जिनेन्द्रोक्त संख्या प्रमाण योजन जाकर अरुण समुद्र के प्रणिधि भाग में १७२१ योजन प्रमाण ऊपर आकाश में जाकर वलय रूप से तमस्काय स्थित है। यह तमस्काय प्रादि के चार कल्पों में देशविकल्पों को अर्थात कहीं-कहीं अन्धकार उत्पन्न करके उपरिगत ब्रह्म कल्प सम्बन्धी प्रथम इंद्रक के प्रणिधितल भाग को प्राप्त हुआ है। उसकी विस्तार परिधि मूल में संख्यातयोजन, मध्य में असंख्यात योजन और इससे ऊपर असंख्यात योजन है। ८।५९७.६०० तिलोयपण्णत्ती। इससे सिद्ध है कि ब्रह्म स्वर्ग से नीचे चार स्वर्गों में कहीं कहीं पर अन्धकार है। -जे. ग. 19-9-66/IX/ र. ला. जैन मेरठ पांडुकशिला प्रर्द्ध चन्द्राकार है शंका--पाण्डुक शिला का आकार क्या चौकोर है या अर्धचन्द्राकार है ? समाधान-तिलोयपण्णत्ती अधिकार ४ गा. १८१८, जंबूदीव पण्णत्ती उद्दस ४ श्लोक १४१, लोक विभाग प्रथम विभाग श्लोक २८३, त्रिलोकसार गा० ६३५ में पाण्डुकशिला को अर्ध चन्द्राकार बतलाया है। अतः पाण्डक शिला को अर्धचन्द्राकार बनाना चाहिये, चौकोर नहीं बनाना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy