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________________ ६०० ] [ पं० रतनचन्द जन मुख्तार । "मणुसा मणुसपन्नता संखेज्जवासाउमा मासा मणुसे हि कालगवसमाणा कदि गदिओ गच्छति ? १४१॥ चत्तारि गदीओ गच्छंति णिरयगई तिरिक्खगई मणुसगई देवगई चेदि ॥१४२॥ तिरिक्खेसु गच्छंता सम्वतिरिक्खेसु गच्छति ॥१४४॥" धवल पु०६१०४६८-६९। ___ अर्थ- मनूष्य व मनुष्य पर्याप्त मिथ्यारष्टि संख्यातवर्षायुष्क मनुष्य मनुष्य पर्याय से मरण कर कितनी गतियों को जाते हैं ? उपयुक्त मनुष्य चारों गतियों में जाते हैं-नरकगति, तियंचगति, मनुष्यगति और देवगति । तियंचों में जाने वाले मनुष्य, उपर्युक्त मनुष्य सभी तियंचों में जाते हैं । मिथ्याइष्टि मनुष्य मरकर सभी तिर्यचों में उत्पन्न होता है इस सूत्र से स्पष्ट हो जाता है कि मिथ्याष्टि मनुष्य मरकर अग्निकायिक और वायुकायिक में भी उत्पन्न हो सकता है। अग्निकायिक और वायुकायिक जीव मरकर मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते हैं। कहा भी है सर्वेऽपि तेजसा जीवाः सर्वे चानिलकायिकाः। मनुजेषु न जायन्ते जन्मन्यनन्तरे ॥२।१५७॥ तत्वार्थसार सब अग्निकायिक और वायुकायिक जीव मरकर जन्मान्तर में मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते हैं । "तेउकाइया वाउकाइया, वावरा सुहमा पज्जत्ता अपज्जत्ता तिरिक्खा तिरिक्खेहि कालगवसमाणा कवि गदीओ गच्छति ? ११५॥ एक्कं चेव तिरिक्ख गदि गच्छति ॥ ११६ ॥धवल पु० ६ पृ. ४५८ । अग्निकायिक और वायुकायिक वादर व सूक्ष्म पर्याप्तक व अपर्याप्तक तियंच, तियंचपर्याप से मरण करके कितनी गतियों में जाते हैं तयंच एकमात्र तिथंच गति में ही जाते हैं। -णे. 1. 27-7-69/VI/सु. प्र. जन पंचमकाल के मनुष्य को स्वर्ग में गमन सोमा शंका-पंचम काल का जीव कौनसे स्वर्ग तक जा सकता है ? कहीं सुनने में आता है कि पांचवें स्वर्ग तक जाता है। कोई विद्वान बारहवें स्वर्ग तक गमन बताते हैं। कृपया समाधान करावें। समाधान- पंचमकाल में तीन हीन संहनन होते हैं । अर्द्धनाराच संहनन वाला अच्युत स्वर्ग तक जा सकता है। गो०० गाथा २९,कर्मप्रकृति एवं त्रिलोकसार। [ उक्त कथन से प्रतीत होता है कि पंचम काल में जन्मा योग्य मनुष्य अच्युत स्वर्ग तक जा सकता है। ] -पनावार 28-1-78/ ज. ला. जेन, त्रीण्डर लन्ध्यपर्याप्तक की आयु बाँधने वाला भोगभूमि में जा सकता है। शंका-लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य की आयु का बन्ध करने वाला जीव क्या वान देने पर भोगभूमि में जा सकता है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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