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________________ [ ५६५ व्यक्तित्व और कृतित्व ] "खवणाए पट्टवगो जहि भवे जियमसा तवो अपले । णाधिच्छदि तिष्णिमवे दंसणमोहम्मि खीणम्मि ॥११३॥ क० पा० जयधवल टीका- जो उण पुम्बाउ अबंधवसेण भोगभूमिज तिरिक्खमणुस्से सुप्पज्जइ तस्स खवणापटुवणभवं मोतून अण्णे तिष्णिमवा होंति ।" ज० ध० १३।१० यहाँ पर कहा गया है कि क्षायिक सम्यग्दष्टि उस भव से अतिरिक्त अन्य तीन भवों से अधिक संसार में नहीं रहता । जिसने पूर्व में तिर्यंच या मनुष्य श्रायु का बंघ कर लिया है, वह क्षायिक सम्यग्दष्टि मरकर भोग भूमि का हो तिर्यंच या मनुष्य होगा उसके तीन भव होते हैं ।" "क्षायिक सम्यग्दृष्टीनां भोगभूमिमन्तरेणोत्पत्तेरभावात् । धवल पु० १ क्षायिक सम्यग्दष्टि मनुष्य मरकर भोगभूमि के अतिरिक्त अन्यत्र उत्पन्न नहीं होता । यहाँ पर यह प्रश्न हो सकता है कि सम्यग्दृष्टि मनुष्य मर कर भोगभूमि में ही क्यों उत्पन्न होता है कर्मभूमि के मनुष्य या तियंच में क्यों नहीं उत्पन्न होता ? उत्तर यह है । "यत्र क्वचन समुत्पद्यमानः सम्यग्दृष्टिस्तत्र विशिष्टवेदादिषु समुत्पद्यत इति गृह्यताम् ।" ध० पु० १ मनुष्य सम्यग्दष्टि जिस किसी गति में उत्पन्न होता है वह विशिष्ट वेद आदिक प्रर्थात् तत्र गति सम्बन्धी विशिष्ट गति में ही उत्पन्न होता है । यदि देवों में उत्पन्न होता है तो वैमानिक उच्च देवों में ही उत्पन्न होता है । यदि सम्यग्दष्टि मनुष्य मर कर मनुष्य या तियंचों में उत्पन्न होता है तो भोगभूमियों में ही उत्पन्न होता है । इस प्रकार सम्यग्दृष्टि मनुष्य मरकर मनुष्यों में उत्पन्न होता है तो भोगभूमि में ही उत्पन्न होता है कर्मभूमि में उत्पन्न नहीं होता । सम्यक्त्व की विराधना कर मिथ्यात्व में जाकर मिध्यादृष्टि मनुष्य ही कर्मभूमि का मनुष्य या तिथंच हो सकता है। यह कहना ठीक नहीं है कि विदेह क्षेत्र का सम्यग्दृष्टि मनुष्य मरकर सम्यक्त्व सहित भरत क्षेत्र के पंचमकाल में मनुष्य हुआ । - जै. ग. 17-11-77 / VIII / नारेजी शास्त्री पंचमकाल में सम्यक्त्वी जीवों का उत्पाद नहीं होता शंका- क्या पंचम काल में भरत क्षेत्र में सम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न होते हैं ? समाधान - पंचमकाल निकृष्टकाल है, इस काल में भरत क्षेत्र में सम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न नहीं होते । प्रायः पापी जीव ही उत्पन्न होते हैं । Jain Education International भरतक्षेत्र का सम्यक्त्वी मरकर भरतक्षेत्र में जन्म नहीं लेता शंका- क्या भरत क्षेत्र का चौथे पंचम काल का मनुष्य सम्यक्त्व सहित मरण कर भरत क्षेत्र में मनुष्य नहीं हो सकता ? क्या देवों में ही पैदा होता है ? - जै. ग. 27-6-66/1X / हेमचंद समाधान - सम्यक्त्व सहित मनुष्य या तियंच के देवायु का ही बन्ध होता है क्योंकि सम्यग्दर्शन देवायु के बम्ध का कारण है, जैसा कि तस्वायंसूत्र अध्याय ६ में 'सम्यक्त्वं च सूत्र के द्वारा कहा है। भरत क्षेत्र में चतुर्थं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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