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________________ १४२ ] [ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : उदयावष्णसरीरोदयेण तह हवयणचित्ताणं । णोकम्मवग्गणाणं, गहणं आहारयं णाम ॥६६४॥ आहरदि सरीराणं तिण्हं एयवरवग्गणाओय। मासमणाणं णियदं तम्हा आहारयो भणियो ॥६६५॥ ( गो० जी०) अर्थ-शरीर नाम कर्मोदय से देह वचन और द्रव्यमनरूप परिणमन के योग्य नोकर्मवर्गणा का जो ग्रहण होता है उसको आहार कहते हैं। औदारिक, वैक्रियिक और आहारक इन तीन शरीरों में से किसी भी एक शरीर के योग्य वर्गणाओं को तथा वचन वमन के योग्य वर्गणामों अर्थात नोकर्म वर्गणाओं को यथायोग्य जीवसमास तथा काल में जीव आहारण ( ग्रहण ) करता है, इसलिए इसको आहारक कहते हैं। यहाँ पर तैजसवर्गणा व कार्माणवर्गणा को नोकर्मवर्गणा नहीं कहा गया है, किन्तु पोदारिक, वैक्रियिक और आहारक इन तीन शरीर के योग्य वर्गणाओं को नोकर्मवर्गणा कहा है। इससे सिद्ध है कि प्रौदारिक, वैक्रियिक, माहारक ये तीन शरीर ही नोकर्म हैं, तैजस व कार्माण शरीर नोकर्म नहीं हैं। -जें. ग. 16-1-69/..../t. ला.जन समुद्घात समुद्घात शंका-समुद्घात कितने प्रकार के होते हैं ? उन्हें जीव कब और किस तरह करता है ? समाधान-वेदना प्रादि निमित्तों से कुछ प्रात्मप्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना समुद्घात है। समुद्घात सात प्रकार का है-१ वेदना २ कषाय ३ वैक्रियिक ४ मारणान्तिक ५ तेजस ६ आहारक और ७ केवलीसमुद्घात । मूल शरीर को न छोड़ कर तैजस-कामरण रूप उत्तर देह के साथ-साथ जीव प्रदेशों के शरीर से बाहर निकलने को समुद्घात कहते हैं । ( गो० सा० जी० गा० ६६७-६८) नेत्रवेदना. शिरोवेदना आदि के वश से जीवों के अपने शरीर से बाहर एक प्रदेश को आदि करके उत्कर्षतः अपने वर्तमान शरीर से तिगुणे प्रमाण प्रात्मप्रदेशों का फैलना वेदना समुद्घात है । क्रोध, भय आदि के वश से जीवप्रदेशों का अपने शरीर से तिगुने प्रमाण फैलने को कषाय समुद्घात कहते हैं। क्रियिकशरीर के उदयवा देव और नारकी जीवों का अपने स्वाभाविक आकार को छोड़ कर अन्य आकार से रहने का नाम वैक्रियिक समुद्घात है अथवा किसी प्रकार की विक्रिया (छोटा या बड़ा शरीर अथवा अन्य शरीर ) उत्पन्न करने के लिए मूल शरीर को न त्याग कर जो आत्मा के प्रदेशों का बाहर जाना है उसको 'विक्रिया' समुद्घात कहते हैं । अपने वर्तमानशरीर को नहीं छोड़कर ऋजुगति द्वारा अथवा विग्रहगति द्वारा आगे जिसमें उत्पन्न होना है ऐसे क्षेत्र तक जाकर, शरीर से तिगुने विस्तार से प्रथवा अन्यप्रकार से अन्तर्मुहूर्त तक रहने का नाम मारणान्तिक समुद्घात है। तेजस्क शरीर के विसर्पण (फैलने) का नाम तेजस्क शरीर समुद्यात है। वह दो प्रकार का होता हैजिस्मरणात्मक और अनिस्सरणात्मक । उनमें जो निस्सरणात्मक तेजस्क शरीर विसर्पण है वह भी दो प्रकार का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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