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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ५२३ ___एक जीव के युगपत् पांचों भाव सम्भव हैं, जघन्यतः तीन शंका-गोम्मटसार कर्मकांड में ५ भावों के वर्णन में एक जीव के एक समय में कितने भाव हो सकते हैं? क्या मात्र एक औवयिकभाव भी हो सकता है? क्या पारिणामिकभाव और क्षायोपश मिकभाव न हो और केवल औदयिकमाव हो ऐसा भी सम्भव है ? गाथा ८२४ का क्या अभिप्राय है ? समाधान-एक साथ एक जीव के कम से कम तीन भाव हो सकते हैं १.पारिणामिक, २. क्षायोपशमिक, ३. औदयिक । अधिक से अधिक एक जीव के एक साथ ( औपश मिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक, पारिणामिक ) पांचों भाव हो सकते हैं। क्षायिकसम्यग्दृष्टिजीव उपशांतमोह गुणस्थान में जब चारित्रमोह का उपशम कर देता है तो उसके चारित्रमोह की अपेक्षा प्रौपशमिकभाव, दर्शनमोहनीय की अपेक्षा क्षायिकभाव, ज्ञान-दर्शन-वीर्य की अपेक्षा क्षायोपशमिकभाव, गतिजाति आदि की अपेक्षा औदयिकभाव तथा जीवत्व की अपेक्षा पारिणामिकभाव इस प्रकार एक जीव के एक साथ पांचों भाव सम्भव हैं। गति-जाति आदि का उदय चौदहवें-गुणस्थान के अन्त तक रहता है, अतः प्रौदयिकभाव सब गुणस्थानों में रहता है। चेतनारूप जीवत्वपारिणामिकभाव संसारी और मुक्त दोनों प्रकार के जीवों में सदा रहता है, किन्तु भायु आदि प्राणरूप जीवत्व अशुद्धपारिणामिकभाव चौदहवें गुणस्थान तक ही रहता है। मुक्त जीवों में प्रायु आदि प्राण नहीं पाये जाते हैं । ज्ञान, दर्शन और वीर्य की अपेक्षा क्षायोपशमिकभाव क्षीणमोह बारहवें गुणस्थान तक पाये जाते हैं। जिनके उपशम या क्षायिक सम्यग्दर्शन नहीं है उन जीवों के औदयिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक ये तीन भाव होते हैं। ऐसा कोई भी जीव नहीं है जिसके मात्र प्रौदयिकभाव रह सकता हो, क्योंकि चेतनारूप जीवत्वपारिणामिकभाव तो सब जीवों के होता है और औदयिकभाव सब संसारी जीवों के पहले गुणस्थान से चौदहवं गुणस्थान तक रहता है। गोम्मटसार कर्मकांड गाथा ८२४ में तो यह बतलाया है कि 'मिथ्यारष्टि आदि दो गुणस्थानों में क्षायोपशमिकभाव के ३ स्थान, मिश्रादि तीन गुणस्थानों में क्षायोपशमिकभाव के २ स्थान और प्रमत्त आदि सात गुणस्थानों में क्षायोपशमिकभाव के ४ स्थान होते हैं। किंतु इन सब बारह गुणस्थानों में से प्रत्येक गुणस्थान में औदयिकभाव का एक एक ही स्थान होता है। इस गाथा से यह सिद्ध नहीं होता कि किसी भी जीव के मात्र एक मौदयिकभाव हो सकता है । -ज. ग. 9-5-66/IX/ र. ला. जैन क्षायिक और प्रौपशमिक भावों का सन्निकर्ष शंका-क्षायिकभाव और औपशमिकमाव का सन्निकर्ष किसप्रकार सम्भव है ? म समाधान-क्षायिक सम्यग्दष्टि मनुष्य यदि उपशमश्रेणी चढ़ता है तो उसके ग्यारहवें गुणस्थान में क्षायिकभाव और औपशमिकभाव का सन्निकर्ष सम्भव है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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