SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 566
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२२ ] [ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार । भाव भावपञ्चक शंका-जीव के भाव पांच प्रकार के कहे गये हैं ? १. औपशमिक २. क्षायिक ३. क्षायोपशमिक ४. औदयिक ५. पारिणामिक । इनका मतलब क्या है और ये किस प्रकार होते हैं ? समाधान-मोहनीयकर्म के अतिरिक्त अन्य कर्मों का उपशम नहीं होता। मोहनीयकर्म के दो भेद हैंदर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय । अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवत्तिकरण द्वारा दर्शनमोहनी अन्तर्मुहर्त के लिये अन्तर करके उसके पश्चात् स्थित दर्शनमोहनीयकर्म का उपशम करने पर जो सम्यग्दर्शनरूप आत्मा के भाव होते हैं वह उपशम सम्यग्दर्शन है। इस काल में अनन्तानुबन्धी कर्म का भी अनुदय रहता है। इसी प्रकार अधःकरण आदि तीन करणों द्वारा चारित्रमोहनीय कर्म का उपशम होने पर जो यथाख्यातचारित्ररूप आत्मा का भाव होता है वह प्रौपशमिकचारित्र है। कर्म का उपशम होना कारण है और प्रात्मा के परिणाम अर्थात भाव कार्य हैं प्रतः वे भाव औपशमिकभाव हैं। प्रतिपक्षी कर्मों के सत्ता में से नष्ट हो जाने से प्रात्मा में जो भाव उत्पन्न होते हैं, वे क्षायिक भाव हैं। क्षायिकज्ञान, क्षायिकदर्शन, क्षायिकसम्यग्दर्शन, क्षायिकचारित्र, क्षायिकदान, क्षायिकलाभ, क्षायिकभोग, क्षायिकउपभोग क्षायिकवीर्य। इसप्रकार ये नौ क्षायिकभाव हैं। ये ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय कर्मके क्षय होने पर उत्पन्न होते हैं । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय इन चार घातिया कर्मों के स्पर्द्धक दो प्रकार के फलदान शक्ति वाले होते हैं। एक सर्वघाती जो आत्मा के गुण का सर्वघात करे; दूसरे देशघाती-जो गुण का एकदेश घात करते हैं या उस गुण में दोष उत्पन्न करते हैं। वर्तमानकाल में उदय आने योग्य सर्वघातियों का तो उदयाभावी क्षय अर्थात स्वोन्मुख उदय में न आकर देशघातीरूप में उदय में आवें और आगामी काल में स्थित सर्वघातियों का सदवस्थारूप उपशम तथा देशघाती का उदय होने पर आत्मा के जो भाव होते हैं वे क्षायोपश मिकभाव हैं। अथवा उदय का अभाव और देशघाती का उदय होने पर जो भाव होते हैं वे क्षायोपशमिकभाव हैं। भायोपशमिकभाव १८ प्रकार के हैं-सात ज्ञान, तीन दर्शन, सम्यग्दर्शन, संयमासंयम, चारित्र, दान, लाभ. भोग. उपभोग और वीर्य । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के निमित्त से कर्मों का फल देना उदय है। कर्म के उदय से जो भाव आत्मा में होते हैं वे औदयिकभाव होते हैं। आठों ही कर्मों के उदय से औदयिकभाव नाना प्रकार के होते हैं। जो भाव कमों के उपशमादि की अपेक्षा न रखकर द्रव्य के निजस्वरूप मात्र से होते हैं वे पारिणामिकभाव हैं। जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व ये तीन पारिणामिकभाव हैं। अथवा कर्म के उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशम किसी की अपेक्षा न रखने वाले मात्र द्रव्य की स्वभावभूत अनादि पारिणामिक शक्ति से ही आविर्भत ये भाव पारिणामिक हैं। -जं. ग. 23-11-61/VII/........ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy