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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] अनुभाग उदय, अनुभाग प्रपकर्षण, अनुभाग बन्ध एवं अनुभागकाण्डकघात सम्बन्धी सूक्ष्म नियम शंका-स्थिति-बन्ध तथा स्थिति-उदय; ये विषय तो स्पष्ट हैं, परन्तु अनुभाग बन्ध तथा अनुभाग उदय का परिज्ञान आगम पढ़ने के पश्चात् भी स्पष्टतया नहीं हो पा रहा है। वर्तमान में जैसे हमारे मन:पर्यय ज्ञानावरण के कौनसे स्पर्धक स्वमुख से उदित हो रहे हैं ? एक निषेक में क्या अनुभाग स्पर्धक अनन्त होते हैं ? यदि नहीं तो 'अनन्त स्पर्धक होते हैं, यह वचन भी बाधित हो जायगा, क्योंकि सकल स्थिति निषेक भी मध्यम असंख्यात से अधिक नहीं हैं। क्या प्रत्येक निषेक ( उदीयमान निषेक ) में देशघाती तथा सर्वघाती; दोनों प्रकार के स्पर्धक होते हैं ? स्पष्ट करें। इसके साथ ही अनुभागकाण्डकघात का स्वरूप स्पष्ट करें। क्या अनुभाग काण्डकघात में स्थितिघात होना जरूरी है ? क्या स्थितिकाण्डक के साथ अनुभागकाण्डकघात होना जरूरी है ? अनुभाग अपकर्षण कब तथा किस रूप होता है ? [ ५०७ समाधान- प्रत्येक समय एक-एक समयप्रबद्ध बंधता है जिसमें अनन्त कार्मणवर्ग होते हैं, जो अभव्यों से अनन्तगुणे एवं सिद्धों के अनन्तवेंभाग प्रमाण होते हैं । अङ्कसंदृष्टि में इस संख्या को ६३०० माना गया है। इस प्रबद्ध वर्गसमूह की स्थितिबन्ध की अपेक्षा अबाधा-काल को छोड़कर निषेकरूप रचना ( बंटवारा ) हो जाती है । स्थितिबन्ध असंख्यात समयों का होता है, अतः निषेक भी असंख्यात हो जाते हैं । प्रत्येक निषेक में अनन्त ( श्रभव्यों अनन्तगुणे और सिद्धों के अनन्त भाग ) कार्मणवर्ग ( परमाणु ) होते हैं । प्रत्येक कार्मणवर्ग में फलदानशक्ति होती है । उसे अविभागप्रतिच्छेदों के द्वारा बताया जाता है। अनुभागबन्ध की अपेक्षा अनन्त कार्मणवर्गों की एक वर्गणा तथा अनन्तवर्गणाओं का एक स्पर्धक होता है । प्रथम वर्गणा में फलदानशक्ति हीन होती है । फिर उत्तरोत्तर बढ़ते हुए अन्तिमस्पर्धक की अन्तिमवर्गणा में सबसे ( सर्व प्रधस्तन वर्गणात्रों से ) अधिक शक्ति होती है । इन शक्तियों को स्थूलरूप से ४ भागों में विभाजित किया गया है - १. लता २. दारू ३. अस्थि ४. शैल । पुण्य प्रकृतियों का गुड़ आदि रूप तथा पापप्रकृतियों का नीम, काँजीर आदि रूप शक्तिनाम है । होते हैं, क्योंकि प्रत्येक निषेक में मध्यम अनंतानन्त कार्मणवर्ग होते हैं । स्पर्धक उदय में आते हैं, किन्तु स्तिबुकसंक्रमण के द्वारा समस्त स्पर्धकों का जैसे मतिज्ञानावरण के अस्थि व शैलरूप सर्वघाती स्पर्धकों का अनुभाग भी उदय में आता है। वर्तमान में भरत क्षेत्र के मनुष्यों के मन:पर्ययज्ञानावरण के स्तिबुकसंक्रमण द्वारा शैल नामक सर्वघातीस्पर्धकरूप परिणत होकर उदय में आते हैं। स्पर्धकों के होने में कोई बाधा नहीं है । प्रत्येक निषेक में देशघातीस्पर्धक भी होते हैं भी होते हैं । स्थिति की अपेक्षा जो निषेक रचना हुई है उसमें से प्रत्येक निषेक में अनुभाग की अपेक्षा अनन्त स्पर्धक अतः उदयरूप प्रत्येक निषेक में अनन्त अनुभाग एकरूप से उदय में आता है । देशघातीरूप दारू में परिणत होकर लता - दारू रूप देशघातीस्पर्धक भी एक निषेक में अनन्त और सर्वघाती स्पर्धक Jain Education International अर्थात् फलदानशक्ति ऊपर के निषेकों में अनुभाग काण्डक द्वारा पाप प्रकृतियों का अनन्त बहुभाग अनुभाग घातित होता है, अनन्तगुणी हीन हो जाती है । परन्तु कार्मणवर्ग अपने-अपने निषेक में स्थित रहते हैं; नीचे या नहीं जाते । अनुभागघात के साथ-साथ स्थितिघात होना आवश्यक नहीं है । इसका भी कारण यह है कि एक स्थितिकाण्डकघात के काल में हजारों अनुभागकाण्डकघात हो जाते हैं। स्थिति में अनन्तगुणी हानिवृद्धि नहीं होती । प्रथम अनुभागकाण्डकघात होने पर अनुभाग तो अनन्तगुणा हीन हो जाता है, किंतु कर्मस्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है, उसमें कोई हानि नहीं होती । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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